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प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस पर योगी सरकार कसेगी लगाम, जल्द लाएगी बिल

उपमुख्यमंत्री शर्मा ने बताया कि प्रस्तावित विधेयक प्राइवेट स्कूलों द्वारा वसूली जा रही मनमानी फीस को विनियमित करने के उद्देश्य से लाया जा रहा है

Bhasha

स्कूलों की मनमानी फीस पर रोक लगाने के मकसद से उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रस्तावित 'उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क निर्धारण) विधेयक 2018' पर विचार विमर्श किया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रस्तावित विधेयक पर विचार विमर्श किया गया. यह जानकारी उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने दी.

शर्मा ने बताया कि प्रस्तावित विधेयक प्रदेश के छात्र-छात्राओं को बेहतर शिक्षा मुहैया कराते हुए प्राइवेट स्कूलों द्वारा वसूली जा रही मनमानी फीस को विनियमित करने के उद्देश्य से लाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस विधेयक को शैक्षिक सत्र 2018-19 से लागू किया जाना प्रस्तावित है. विधेयक के प्रावधान प्रदेश के अल्पसंख्यक विद्यालयों सहित 20,000 रुपए सालाना या इससे अधिक फीस वसूलने वाले सभी प्राइवेट शैक्षणिक संस्थाओं पर भी प्रभावी होंगे.


उप मुख्यमंत्री ने कहा कि विधेयक में शुल्क को विनियमित किए जाने के लिये प्रत्येक मण्डल में मण्डलायुक्त की अध्यक्षता में मण्डलीय शुल्क नियामक समिति के गठन का प्रावधान किया जा रहा है, जिसे सिविल प्रक्रिया संहिता-1908 के अधीन शुल्क सम्बन्धी मामलों का निस्तारण करने के लिए दीवानी न्यायालय और अपीलीय न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होंगी. मण्डलायुक्त की अध्यक्षता में गठित की जाने वाली समिति के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल दो वर्ष का होगा.

प्रस्तावित निर्णय से छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों को सीधा लाभ प्राप्त होगा. शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार होगा और विद्यार्थियों-अभिभावकों पर प्राइवेट स्कूलों द्वारा डाले जा रहे वित्तीय अधिभार से मुक्ति मिलेगी. साथ ही प्राइवेट स्कूल मनमाने ढंग से फीस नहीं बढ़ा सकेंगे.

शर्मा ने कहा कि यह विधेयक उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई), इण्टरनेशनल बेक्कलारेट (आईबी) और इण्टरनेशनल जनरल सर्टीफिकेट आफ सेकेण्ड्री एजूकेशन (आईजीसीएसई) या सरकार द्वारा समय-समय पर परिभाषित किन्हीं अन्य परिषदों द्वारा मान्यता/सम्बद्धता प्राप्त ऐसे समस्त स्ववित्तपोषित पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट कालेजों पर लागू होगा, जिनमें किसी विद्यार्थियों के लिए कुल सम्भावित देय शुल्क बीस हजार रुपये से अधिक हो.

यह विधेयक इन परिषदों में से किसी परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त/सम्बद्ध अल्पसंख्यक संस्थाओं पर भी लागू होगा.