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नोएडा पर लगे 'अपशकुन' के कलंक को मिटाने आ रहे हैं योगी

सीएम योगी का नोएडा आना उन तमाम आशंकाओं, मिथकों, अंधविश्वास और अपशकुन को तोड़ने का काम करेगा जिसके डर से अखिलेश, मुलायम और खुद योगी भी अबतक नोएडा यात्रा को टालते रहे

Kinshuk Praval

यूपी की राजनीति में नोएडा का दखल भर इतना है कि यूपी का कोई भी मुख्यमंत्री नोएडा का रुख कभी नहीं करता है. बड़े दिग्गज नेता नोएडा से सटे गाजियाबाद,मेरठ, बुलंदशहर और मथुरा तक दस्तक दे देंगे लेकिन नोएडा में कदम रखने से उन्हें 'अपशकुन' के साए में लिपटा इतिहास रोकता है. पिछले कई सालों से नोएडा से ये अंधविश्वास जुड़ा हुआ है कि यहां जो भी मुख्यमंत्री आता है उसकी कुर्सी चली जाती है.

लेकिन ऐसा लगता है कि अबकी बार यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ नोएडा से जुड़े 'अपशकुनी' इतिहास को पलटने की कमर कस चुके हैं. योगी ने नोएडा आने का मन बना लिया है. खुद सीएम ऑफिस ने योगी के संभावित नोएडा दौरे की पुष्टि की है. दरअसल 25 दिसंबर को नोएडा में मेट्रो की मैजेंटा लाइन का पीएम मोदी उद्घाटन करेंगे. जाहिर तौर पर सूबे में पीएम की मौजूदगी के मौके पर योगी आदित्यनाथ का रहना जरूरी है.


नोएडा ने ही ऐसा योग बना दिया है कि पीएम के स्वागत सत्कार के लिए सीएम योगी को आना ही पड़ेगा. योगी का नोएडा आना उन तमाम आशंकाओं, मिथकों, अंधविश्वास और अपशकुन को तोड़ने का काम करेगा जिसके डर से अखिलेश, मुलायम और खुद सीएम योगी भी अबतक नोएडा यात्रा को टालते रहे.

खासबात ये है कि यूपी के सीएम रहते हुए कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह यादव और अखिलेश ने भी नोएडा की तरफ मुंह तक नहीं किया. चुनावों के वक्त 'कुर्सी भय' की वजह से रैलियों की जगह भी नोएडा की बजाए गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर और मथुरा रखी जाती रही.

दरअसल नोएडा के कथित 'अपशकुनी' इतिहास की कहानी यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के साथ हुई घटना से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि साल 1988 में नोएडा से लौटने के तुरंत बाद ही वीर बहादुर सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ गई थी. केंदीय नेतृत्व ने वीर बहादुर के नोएडा से लौटने के तुरंत बाद ही इस्तीफा मांग लिया था. इसके बाद 1989 में नारायण दत्त तिवारी और 1999 में कल्याण सिंह की भी नोएडा आने के बाद कुर्सी चली गयी . साल 1995 में मुलायम सिंह को भी नोएडा आने के कुछ दिन बाद ही अपनी सरकार गंवानी पड़ गई थी. नोएडा यात्रा से नेताओं की मुख्यमंत्री यात्रा पर विराम लगने से नोएडा पर 'अपशकुनी' होने का कलंक लगता चला गया. हालांकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने यूपी का मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं किया.

साल 2007 में यूपी की सीएम बनने के बाद उनके कार्यकाल में कई सरकारी कार्यक्रम और योजनाएं नोएडा से ही लागू की गईं. मायावती ने नोएडा यात्रा को कभी टाला भी नहीं. लेकिन साल 2012 में जब बीएसपी की सरकार सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले के बावजूद समाजवादी पार्टी से परास्त हो गई तो नोएडा के सीएम कनेक्शन को लेकर मनहूस होने का ठप्पा फिर सुर्खियां बन कर लौट आया. इसके बाद जब अखिलेश यादव यूपी के सीएम बने तो उन्होंने नोएडा की तरफ न झांकने में ही भलाई समझी. नोएडा से जुड़ी यमुना एक्सप्रैस वे जैसी योजनाओं पर उन्होंने लखनऊ से ही नजर बना कर रखी.

नोएडा बीजेपी के लिए यूपी की राजनीति में गढ़ बनता जा रहा है. केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा यहां से सांसद हैं तो पंकज सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र से भारी मतों से जीतकर विधायक बने हैं. लेकिन बीजेपी के गढ़ होने के बावजूद मुख्यमंत्रियों का पुराना इतिहास उन्हें नोएडा आने से रोकता रहा है. खुद योगी भी मुख्यमंत्री बनने के बावजूद नोएडा से दूरी बना कर ही रहे.

राजनीति के नक्शे पर नोएडा अकेला शहर है जहां मुख्यमंत्री कुर्सी खोने के डर से आने से बचते रहे. ऐसे ही कई मिथक नेताओं के बंगलों को भी लेकर जुड़े रहे. दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके का आलीशान बंगला नंबर 33 भी 'मनहूस' माना जाता है. इस बंगले को लेकर कहा जाता है कि यहां न सिर्फ लोगों की असमय मौत हुई बल्कि राजनीतिक करियर भी तबाह हुआ.

दिल्ली विधानसभा से लगभग 100 कदम की दूरी पर मौजूद इस बंगले में कोई भी मुख्यमंत्री रहने को तैयार नहीं है. न ही अरविंद केजरीवाल ने इसे अपना ठिकाना बनाया और न ही उनसे पहले शीला दीक्षित यहां रहने को तैयार हुईं. इस बंगले में दो मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्मप्रकाश और मदन लाल खुराना को समय से पहले अपना पद छोड़ना पड़ा था. फिलहाल यहां दिल्ली डायलॉग कमीशन का दफ्तर है.

देहरादून में न्यू कैंट रोड के बंगले को भी मनहूस माना जाता रहा है. कहा जाता है कि ये बंगला या तो राजा बनाता है या फिर रंक. बंगले से जुड़ी कहानी कहती है कि उत्तराखंड के तीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल, बीसी खंडूरी और विजय बहुगुणा इस बंगले में रहने की वजह से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे. इन्हीं अफवाहों की वजह से उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत बंगले की बजाए गेस्टहाउस से सरकार चलाते रहे. लेकिन यूपी के नए सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बंगले के 'अपशकुनी' होने के मिथक को तोड़ दिया और वो बंगले में शिफ्ट हो गए.

अपशकुन और मनहूस जैसे अंधविश्वास सिर्फ बंगले तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि उन्होंने शहर को भी बदनाम कर दिया. अब राजनीतिक मजबूरी योगी आदित्यनाथ को भी नोएडा बुला रही है और योगी उस मिथक को तोड़ने का मन बना चुके हैं.