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यूपी में नर्सरी से इंग्लिश: योगी का कदम 'संघ एजेंडे' के खिलाफ संदेश है

अंग्रेजी के लिए संघ के बैरभाव से सब परिचित हैं.

Akshaya Mishra

योगी आदित्यनाथ ने हैरान करना बंद नहीं किया है. ठीक उस समय जब हर कोई सोच रहा था कि योगी के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में जोरदार तरीके से संघ परिवार का एजेंडा लागू करेगी, मुख्यमंत्री ने नर्सरी स्तर से अंग्रेजी की शुरूआत करके संघ को एक बड़ा झटका दिया है.

अंग्रेजी के लिए संघ के बैरभाव से सब परिचित हैं. पिछले साल, केंद्रीय मानव संसाधन विकास को एक पत्र में आरएसएस से जुड़े छात्र शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने मांग की थी कि शिक्षा के माध्यम के तौर पर अंग्रेजी सभी स्तरों से हटाई जाए.


मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यह संगठन एक नई शिक्षा नीति चाहता था जो भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता प्रदान करे. इसने तो यहां तक सुझाव दिया था कि आईआईटी और आईआईएम भी स्थानीय भाषा में कर दिए जाएं.

इस साल की शुरुआत में गोवा से ही संघ से जु़ड़े एक दूसरे समूह, भारतीय भाषा सुरक्षा मंच ने मांग की थी कि राज्य सरकार अंग्रेजी-माध्यमिक विद्यालयों को दिए ये जाने वाले अनुदान वापस ले ले और इसके बजाय प्रमुख स्थानीय भाषा को बढ़ावा दे.

कुछ साल पहले एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा था कि अंग्रेजी भाषा ने भारत को काफी नुकसान पहुंचाया है. उन्होंने कहा, "हमने इन दिनों अपने धर्म और संस्कृति को भूलना शुरू कर दिया है," उन्होंने पछताते हुए कहा कहा कि संस्कृत ने देश में अपनी अपील खो दी है. बाद में उन्होंने कहा कि उनकी टिप्पणी को गलत संदर्भ में लिया गया है. हालांकि, उनकी असल टिप्पणी को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का समर्थन मिला था.

अंग्रेजी को हटाने की मांग वेबकूफी

बेशक, शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी को हटाने की मांग साफ तौर पर बेवकूफी है. वैश्वीकरण की दुनिया में जहां राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर लोगों के बीच बातचीत पसंद की नहीं बल्कि जरूरत की बात है.

पुल भाषा यानी कि सूत्र-भाषा के रूप में अंग्रेजी के महत्व के बखान के लिए ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है. भारत भूमि कई भाषाओं का घर है. यहां भी यही बात लागू होती है. कुछ लोग तर्क देते हैं कि अंग्रेजी ने भारतीय संस्कृति को नष्ट कर दिया है और एक राष्ट्र के रूप में इसके विकास को बाधित कर दिया है. इस तर्क में कोई बुद्धिमानी नज़र नहीं आती इसलिए इसे उपेक्षा की नज़रों से ही देखने की ज़रूरत है. इस सोच के पैरोकार आमतौर पर माध्यम और विषयवस्तु के बीच भटक जाते हैं. उनकी वास्तविक समस्या विषयवस्तु को लेकर होनी चाहिए जो कि एक अलग इकाई है.

ऐसा नहीं है कि भाजपा को यह नहीं पता था कि अपने वैचारिक भाईचारे के भीतर अंग्रेजी विरोधी दृष्टिकोण बेतुका है. लेकिन इसके समर्थन के जरिए राष्ट्रीयता को केंद्रबिंदु बना कर पार्टी ने पहले के सत्तारूढ़ शासन को परेशान करने में मदद की. अब चूंकि हालात बदल गए हैं जो नीति निशाने पर थी, अब अपनी नीति बन चुकी है. इस स्थिति में इस मसले को लेकर एक साफ समझ जाहिर करनी होगी और इस बहस को हमेशा के लिए रोकना होगा.

योगी आदित्यनाथ ने यह दिखाया है कि पार्टी इस दिशा में कैसे आगे बढ़ सकती है. '... हमने नर्सरी से सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी शुरू करने का फैसला किया है. भाषा सीखने के लिए छठी कक्षा तक इंतजार करने का कोई कारण नहीं है.' उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया.

योगी का फैसला छवि के उलट

कट्टरपंथी हिंदू के तौर पर जाने जाने वाले उनके जैसे नेता से यह सुनना एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं है. चूंकि वह एक प्रसिद्ध मठ के मुखिया हैं, हिंदुत्व के ठेकेदार युवाओं की एक सेना उनके पीछे चलती है. और तो और चूंकि वह हर समय भगवा पहनते हैं इसलिए उनकी तरफ से ऐसा कोई प्रगतिवादी कदम हैरानी में डाल देता है. क्या ऐसी पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को अंग्रेजी के बजाए संस्कृत को बढ़ावा नहीं देना चाहिए?

योगी अलग किस्म की शख्सियत हैं. वो एक सख्त इंसान हैं और ये तो पक्की बात है कि उनके जैसे इंसान को दबा कर आप बस में नहीं कर सकते. अपने इस व्यक्तित्व के चलते राज्य-काज चलाते समय वह आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों के किसी भी दबाव के सामने आत्मसमर्पण नहीं करने वाले. अंग्रेजी पर उनका कदम एक तरह से इन सगठनों के लिए एक छोटा और मुंहफट संदेश है : दूर रहिए!

यदि वे गौ-रक्षकों और हिंदुत्व की आड़ में आपराधिक गतिविधियों में शामिल दूसरे सतर्कता समूहों को एक-जैसा संदेश देने में कामयाब रहते हैं तो उनका ये कदम दूसरी भाजपा सरकारों के लिये मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा.

अभी पार्टी के लिये सबसे बड़ा खतरा वामपंथियों या धर्मनिरपेक्षतावादियों की तरफ से नहीं है, बल्कि वो हिन्दुत्व के इन बाहरी समूहों से है जिनमें राज्य के कानून और उसके अधिकार के लिए सम्मान कम है. कुछ खास बातों को लेकर तो जल्दी ही भाजपा को ऐसे तत्वों के लिए एक लक्ष्मण रेखा तैयार करनी होगी. इस मार्ग का नेतृत्व करने के लिए योगी आदित्यनाथ बिलकुल सही व्यक्ति सिद्ध हो सकते हैं.