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वर्ल्ड हेल्थ डे: डिप्रेशन को पहचानिए, बात करिए और साथ दीजिए

ये वो वक्त है जब इसके बारे में बात करना बेहद जरूरी हो चुका है

Ankita Virmani

फर्ज कीजिए कि आपने रात में खराब खाना खाया है और सुबह आपको उल्टी हुई तो ऐसे में अक्सर खराब चीजें बाहर निकल जाती हैं. लेकिन जब वो आपके शरीर में ही रह जाए तो ऐसे में आपके बीमार होने की संभावनाए बढ़ जाती हैं.

आपका दिमाग भी कुछ ऐसे ही काम करता है. अगर कोई चीज आपको परेशान कर रही है या अंदर ही अंदर आपको खाए जा रही है तो जरूरी है आप अपने दोस्त से, अपने परिवार में किसी से उस बारे में बात कीजिए. यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो ऐसी ही छोटी-छोटी चीजें एक दिन आपके डिप्रेशन का करण बन सकती हैं.


आज वर्ल्ड हेल्थ डे है और साल 2017 का थीम है डिप्रेशन. ये वो वक्त है जब इसके बारे में बात करना बेहद जरूरी हो चुका है.

नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस के द्वारा 12 राज्यों में किए गए एक सर्वे के मुताबिक, भारत में हर 20 लोगों में से 1 डिप्रेशन का शिकार है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, भारत दुनिया के डिप्रेस्ड देशों में से एक है और लगभग 36 प्रतिशत आजादी ने इसका सामना किया है.

क्या अकेलापन है कारण?

हालांकि, माना जाता है कि अकेलेपन का ये कॉन्सेप्ट पश्चिमी देशों के लिए सही हो सकता है लेकिन भारत के लिए नहीं. क्योंकि भारत में अकेलेपन की जगह ही नहीं है. बड़े बड़े परिवार, दोस्तों के बीच आपके पास अकेले रहने का वक्त ही कहां है.

लेकिन हमें ये समझना होगा कि शारीरिक अकेलापन मानसिक अकेलेपन से अलग है.

क्या आपको पता है कि डिप्रेशन आत्महत्या का कारण बन सकता है? और आत्महत्या 15 से 29 साल के उम्र की लोगों में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है.

इसकी एक मुख्य वजह है बात ना करना. हमारे आस पास जब हम किसी को अकेला देखते हैं या देखते हैं कि वो सबसे कटने लगा है, तो हम ऐसी धारणा बना लेते हैं कि ये उसका घमंड है या वो बात नहीं करना चाहता. और ये ही है हमारा इगनोरेंस. ऐसे में जरूरी है आप उस इंसान से बात कीजिए, शायद वो अकेला है.

डिप्रेशन का मतलब पागलपन नहीं

क्या आपने कभी उस दर्द के बारे में सोचा है जो इंसान महसूस करता है आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठने से पहले. ये वो कदम है जिसे फिर वापस नहीं लिया जा सकता है. सोचने वाली बात ये है कि सारी भावनाओं के बीच वो कौन सी भावना है जिसके उपर मौत जिंदगी से आसान लगती है.

आपके दिल और किडनी की तरह दिमाग भी आपके शरीर का हिस्सा है.  उसका बीमार होना भी उतना ही जायज है जितना शरीर के बाकी अंगों का और ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि आपके डिप्रेशन के पीछे कोई वजह होना जरूरी हो.

जरूरी नहीं के ब्रेकअप हो या परीक्षा में फेल होना, ये बिना किसी वजह के भी हो सकता है. डॉक्टर से मिलना और इसका इलाज कराना भी उतना ही नॉर्मल है जितना किसी और रोग का.

जरूरी है बात कीजिए

संवेदना सोसाइटी आॅफ मेंटल हेल्थ के डॉ एस. त्यागी का कहना है कि भावनात्मक दुर्घटनाएं शारिरिक दुर्घटनाओं से ज्यादा चोट पहुंचाती हैं क्योंकि उन चोटों का इलाज करना ज्यादा आसान है जिसे हम देख सकते हैं.

यदि आपके आस पास कोई ऐसा है, जो डिप्रेशन का शिकार है तो जरूरी है बात कीजिए. उसे वक्त दीजिए. बाद में पछताने से बेहतर है कि आप आज ही उसका साथ दें.