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अदालतों में महिला जजः जानिए देशभर में क्या है इनकी संख्या

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और दादरा और नगर हवेली में एक भी महिला जज नहीं

FP Staff

भारत के 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 17 में जिला अदालतों और नीचे की अदालतों में, एक-तिहाई से भी कम जज महिलाएं हैं. यह जानकारी नई दिल्ली स्थित कानूनी विचारक मंच, ‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ द्वारा फरवरी 2018 के विश्लेषण में सामने आई है.

सामान्य जनसंख्या में 48.5 फीसदी महिलाएं शामिल हैं, और निचली न्यायपालिका में पुरुषों का वर्चस्व, न्याय की उम्मीद में बैठी हजारों महिलाओं की स्थिति को प्रभावित कर सकती है.


यह 'कानूनी पेशे और नियुक्ति प्रक्रिया में अवसरों की समानता का भी संकेत देता है जो यह मेरिट-आधारित, निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण है.'

अंडमान और दादर और नगर हवेली में एक भी महिला जज नहीं

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और दादरा और नगर हवेली में एक भी महिला जज नहीं थी. विश्लेषण किए गए सभी राज्यों में नीचे की अदालतों में, 11.5 फीसदी महिला जजों के साथ बिहार की न्यायपालिका में महिला जजों का अनुपात सबसे कम था. इसके बाद झारखंड (13.9 फीसदी), गुजरात (15.1 फीसदी) और जम्मू और कश्मीर (18.6 फीसदी) का स्थान रहा है.

नीचे की न्यायपालिका में महिला जजों का उच्चतम अनुपात मेघालय (73.8 फीसदी) में था. इसके बाद गोवा (65.9 फीसदी) और सिक्किम (64.7 फीसदी) का स्थान रहा है.

विश्लेषण से पता चलता है कि नीचे के स्तरों की तुलना में जिला न्यायाधीश के स्तर पर महिला जजों का अनुपात कम है. उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में, जूनियर डिवीजन में महिला जज 42.1 फीसदी थीं, जबकि जिला जज महिलाएं 13.6 फीसदी थीं.

भारतीय न्यायपालिका में लिंग विविधता पर डेटा का अभाव

अगर अब की तुलना में, 1995 में जूनियर डिवीजन में कुछ महिला न्यायाधीश होतीं तो वर्तमान में नीचे की आदालतों में वे उच्च पदों पर होतीं, चूंकि उच्च पद ज्यादातर पदोन्नति के माध्यम से भरा जाता है, जैसा कि रिपोर्ट में समझाया गया है.

रिपोर्ट कहती है कि, 'इन स्तरों के बीच लिंग संतुलन में अंतर पूर्वाग्रह का संकेत दे सकता है. यह देखते हुए कि पुरुषों और महिलाओं के समान गुण हैं, भेदभाव की अनुपस्थिति में, भी कोई भी ये मान लेगा कि न्यायिक अधिकारियों के किसी भी बैच के लिए, महिला न्यायाधीशों का अनुपात निम्न स्तर से उच्च स्तर तक समान रहेगा.'

रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारतीय न्यायालयों के विभिन्न स्तरों में महिला न्यायाधीशों के अनुपात पर नियमित आंकड़ों को नियमित रूप से संकलित और प्रकाशित करने के लिए कोई व्यवस्थित प्रयास नहीं हैं.'

यहां तक कि न्यायपालिका में उच्च स्तर में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है. चूंकि 1950 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई थी, उसके पास केवल छह महिला न्यायाधीश थे, और वर्तमान में 25 में से एक महिला न्यायाधीश हैं.

आठ उच्च न्यायालयों में एक भी महिला न्यायाधीश न होने के साथ, भारत के 24 हाईकोर्ट में, महिला जजों की संख्या 10 फीसदी से थोड़ा अधिक है.

(साभारः इंडियास्पेंड.कॉम)