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एडल्ट्री पर SC का फैसला न केवल महिलाओं के हित में,बल्कि लैंगिक तटस्थता वाला भी :महिला आयोग

एडल्ट्री के लिए दंड का प्रावधान करने वाली धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जाने वाले फैसले का महिला आयोग ने स्वागत किया है

Bhasha

राष्ट्रीय महिला आयोग ने एडल्ट्री के लिए दंड का प्रावधान करने वाली धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जाने वाले फैसले का स्वागत किया है. आयोग ने गुरुवार को कहा कि यह सभी महिलाओं के हित में होने के साथ साथ, लैंगिक तटस्थता वाला फैसला भी है.

आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, 'मैं धारा 497 को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करती हूं. यह ब्रिटिशकालीन कानून था. अंग्रेजों ने इससे बहुत पहले ही मुक्ति पा ली थी, लेकिन हम इसे लेकर चल रहे थे. इसे बहुत पहले ही खत्म कर देना चाहिए था.'


उन्होंने कहा, 'महिलाएं अपने पतियों की संपत्ति नहीं हैं. यह फैसला न सिर्फ सभी महिलाओं के हित में है, बल्कि लैंगिक तटस्थता वाला फैसला भी है.' सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने व्यभिचार के लिए दंड का प्रावधान करने वाली धारा को सर्वसम्मति से असंवैधानिक घोषित किया.

धारा 497 का प्रावधान पुरुषों के साथ भेदभाव करता है

जस्टिस मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस आर. एफ. नरीमन, जस्टिस डी. वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि व्यभिचार के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार यदि कोई पुरुष यह जानते हुए भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा. यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. इस अपराध के लिए पुरुष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान था.

संविधान पीठ ने जोसेफ शाइन की याचिका पर यह फैसला सुनाया. यह याचिका किसी विवाहित महिला से विवाहेत्तर यौन संबंध को अपराध मानने और सिर्फ पुरुष को ही दंडित करने के प्रावधान के खिलाफ दायर की गई थी.

याचिका में तर्क दिया गया था कि कानून तो लैंगिक दृष्टि से तटस्थ होता है लेकिन धारा 497 का प्रावधान पुरुषों के साथ भेदभाव करता है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14:समता के अधिकारः , 15:धर्म, जाति, लिंग, भाषा अथवा जन्म स्थल के आधार पर विभेद नहीं: और अनुच्छेद 21:दैहिक स्वतंत्रता का अधिकारः का उल्लंघन होता है.