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लोकसभा चुनाव तक वीएचपी की चुप्पी! राम मंदिर मुद्दे पर बीजेपी को राहत देने की तैयारी तो नहीं?

हालांकि वीएचपी 6 अप्रैल को देश भर में हर मंदिर में राम नाम का जाप कराकर ध्रुवीकरण की कोशिश जरूर करेगी.

Amitesh

अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे पर विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी की तरफ से लगातार आंदोलन किया जाता रहा है. लेकिन, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वीएचपी ने अगले चार महीने तक राम मंदिर को लेकर सभी आंदोलन को स्थगित कर दिया है.

अयोध्या से लेकर दिल्ली तक और फिर प्रयागराज के महाकुंभ तक चली वीएचपी की धर्म संसद में भव्य राम मंदिर का निर्माण करने के लिए प्रस्ताव पास होता रहा, आंदोलन तेज करने की बात कही जाती रही, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार किए बगैर मंदिर मुद्दे पर संसद से कानून बनाने की मांग की जाती रही, लेकिन, इन सबके बीच वीएचपी का आंदोलन स्थगित करने का फैसला काफी चौंकाने वाला है.


वीएचपी की तरफ से अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन के मुताबिक, ‘लोकसभा चुनाव को देखते हुए 4 महीनों तक राम मंदिर निर्माण के लिए कोई आंदोलन नहीं होगा.’ उन्होंने कहा, ‘चुनाव के चलते 4 महीनों के लिए राम मंदिर के आंदोलन पर विराम लगाया गया है, ऐसे में कोई उंगली नहीं उठा पाएगा कि हम किसी खास पार्टी को फायदा पहुंचाने की कोशिश करते हैं.’

वीएचपी की तरफ से चुनावी वातावरण साफ-सुथरा रखने के लिए ऐसा करने की बात कही जा रही है. लेकिन, सवाल उठता है कि जब वीएचपी और पूरे संघ परिवार की तरफ से पिछले 6 महीने से इस मुद्दे को क्यों गरमाया जा रहा था. इसके पीछे मंशा क्या थी.

वीएचपी की मांग और आंदोलन पहले से ही होती रही है, चाहे बीजेपी सत्ता में रहे या विपक्ष में. लेकिन, संघ परिवार के मुखिया मोहन भागवत की नागपुर में पिछले साल विजयादशमी की रैली में दिए गए बयान के बाद मंदिर मुद्दा काफी गरम हो गया था. 18 अक्टूबर 2018 को नागपुर में मोहन भागवत ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार से कानून बनाने की मांग की थी.

इसके बाद 25 नवंबर को राम की नगरी अयोध्या के अलावा पुणे और बेंगलुरु में वीएचपी की धर्मसभा हुई थी, जिसमें फिर से राम मंदिर के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की गई थी. इसके बाद 9 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में भी वीएचपी की अगुआई में धर्म संसद के दौरान साधु-संतों ने सरकार को 31 जनवरी 2019 तक का अल्टीमेटम दिया था. उनकी तरफ से बार-बार यही कहा गया था कि अगर 31 जनवरी तक सरकार अध्यादेश के जरिए कोई विकल्प नहीं तलाशती है तो 31 और 1 फरवरी को होने वाली प्रयागराज अयोध्या की धर्म संसद में राम मंदिर आंदोलन को तेज करने और बाकी दूसरे विकल्पों पर विचार होगा.

कुछ ऐसा ही हुआ, क्योंकि सरकार की तरफ से साफ कर दिया गया कि संवैधानिक तरीके से ही मंदिर मुद्दे का समाधान संभव है. ऐसे में साधु-संतों की मंडली ने वीएचपी की अगुआई में हुई धर्मसंसद में राममंदिर मुद्दे पर अपनी भड़ास भी निकाली, प्रस्ताव भी पास किया, आंदोलन तेज करने की बात भी की. लेकिन, एक बार फिर नतीजा सिफर रहा. क्योंकि राम मंदिर मुद्दे पर आंदोलन की अगुआई करने वाली वीएचपी ने ही फिलहाल इस मुद्दे पर यू-टर्न ले लिया है. अब वीएचपी चार महीने बाद फिर से इस पर विचार करेगी, तबतक देश में नई सरकार आ चुकी होगी.

वीएचपी के नए रुख पर फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में वीएचपी प्रवक्ता विजय शंकर तिवारी कहते हैं, ‘अमूमन हम पर यह आरोप लगता है कि ये राजनीति करने के लिए ऐसा कर रहे हैं, लिहाजा हमने इस आंदोलन को फिलहाल 4 महीने तक स्थगति करने का फैसला किया है. केवल 6 अप्रैल को ही एक दिन वीएचपी के कार्यकर्ता देश भर में अपने आस-पास के सभी मंदिरों में ‘श्री राम जयराम जय-जय राम’ का 13 करोड़ जाप करेंगे.’

वीएचपी की तरफ से भले ही यह कहा जा रहा हो कि अपने पर किसी तरह के लग रहे आरोपों से बचने के लिए ऐसा किया गया है, लेकिन, लगता है वीएचपी को संघ परिवार की तरफ से दिशा निर्देश मिला है, जिसके हिसाब से ही वो आगे बढ़ रही है.

दरअसल, संघ परिवार कभी नहीं चाहेगा कि चुनावी साल में मोदी सरकार को किसी तरह से कोई परेशानी हो, क्योंकि चुनाव के वक्त अगर मंदिर मुद्दे पर आंदोलन तेज किया जाएगा तो इससे बीजेपी को दो तरह से नुकसान का खतरा भी दिख रहा था. पहला कि नीतीश कुमार और रामविलास पासवान समेत बीजेपी के कुछ सहयोगियों की नाराजगी हो सकती है, क्योंकि इन्होंने पहले ही साफ कर दिया है कि राम मंदिर पर या तो अदालत के फैसले या फिर आपसी सहमति के आधार पर ही फैसला होना चाहिए. दूसरा खतरा यह था कि चुनाव के वक्त इस मुद्दे पर साधु-संतों के गुस्से का ठीकरा केंद्र और यूपी में बैठी बीजेपी की सरकारों के खिलाफ ही फूटता, लिहाजा इस आंदोलन को स्थगित करने में ही भलाई समझी गई.

हालांकि वीएचपी 6 अप्रैल को देश भर में हर मंदिर में राम नाम का जाप कराकर ध्रुवीकरण की कोशिश जरूर करेगी. यह वो वक्त होगा जब लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण की वोटिंग हो चुकी होगी या होने वाली होगी. ऐसे में वीएचपी का यह दांव बीजेपी को परेशान करने के बजाए फायदा पहुंचाने वाला ही होगा.