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क्या मार्च तक 15 फीसदी मेथेनॉल मिला पेट्रोल बिकना शुरू हो जाएगा?

कुलमिलाकर सरकार की कवायद तो यही है कि आने वाले दिनों में पेट्रोल और रसोई गैस को सस्ता किया जाए

Ravishankar Singh

नए साल में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में पहली बार बढ़ोतरी हुई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले कुछ दिनों से कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बाद आखिरकार पेट्रोल की कीमत में 21 से 22 पैसा प्रति लीटर और डीजल की कीमत में 8 से 9 पैसा प्रति लीटर का इजाफा किया गया है. पिछले 20 दिनों तक पेट्रोल-डीजल के कीमतों में कोई इजाफा नहीं किया गया था. अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों के आधार पर ही देश में तेल की कीमतें घटाई और बढ़ाई जाती हैं. इस पचड़े से बचने के लिए केंद्र सरकार तेल की कीमतों को कंट्रोल करने की दिशा में एक महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है. हालांकि जानकार इस पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं.

पिछले कुछ महीनों से मीडिया रिपोर्ट्स में नीति आयोग के हवाले से खबर छप रही है कि केंद्र सरकार देश भर में 15 फीसदी मेथेनॉल मिला हुआ पेट्रोल लाने की तैयारी में लगी हुई है. इसके लिए देश के अंदर कई जगहों पर गाड़ियों के अंदर मेथेनॉल से चलने वाली गाड़ियों का ट्रायल भी जोर-शोर से शुरू किया जा रहा है. केंद्र सरकार की इस पूरी कवायद के पीछे पेट्रोल के दामों में 20 से 25 रुपए तक कमी लानी है.


आपको बात दें कि मेथेनॉल और एथेनॉल दोनों केमिकल्स हैं, जो कच्चे तेल से पेट्रोल में कनवर्ट करने के प्रोसेस के दौरान काम में आते हैं. उपलब्ध जानकारी के मुताबिक मेथेनॉल कोयले से बनता है तो वहीं गन्ने से एथेनॉल बनाया जाता है. भारत में कच्चे तेल को रिफाइन कर पेट्रोल बनाने में फिलहाल एथेनॉल का प्रयोग हो रहा है, जिसकी लागत प्रति लीटर 40 से 45 रुपए आती है. वहीं, मेथेनॉल की लागत अधिकतम 20 रुपए आने की बात मीडिया रिपोर्ट्स में कही जा रही है, जबकि वह मेथेनॉल के मुकाबले एथेनॉल युक्त पेट्रोल ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर मेथेनॉल युक्त पेट्रोल इतना आसान है और सस्ता है तो भारत में अभी तक एग्यक्यूट क्यों नहीं किया गया? नीति आयोग का यह भी तर्क है कि मेथेनॉल पेट्रोल में मिलाया जाता है तो इसके कीमतों में 20 से 25 रुपए की कमी आ जाएगी.

नीति आयोग के दावे पर ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत जैसे देशों में इस तरह की टेस्टिंग का अभी तक कोई आधिकारिक डेटा सामने नहीं आया है. इसलिए इस पर किसी तरह का कोई कोमेंट करना अभी थोड़ी जल्दबाजी होगा. वैसे इस तरह की बात पिछले 10 सालों से देश में की जा रही है. अगर यह इतना ही आसान होता तो क्यों नहीं अब तक लागू किया गया. क्या सीएनजी पूरे देश में पहुंच चुकी है?

जाने-माने ऑटोमाबाइल एक्सपर्ट्स राजीव मित्रा फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘एक एक्सपर्ट के नाते मैं इस पर अभी कुछ बोलना इसलिए नहीं चाहूंगा क्योंकि मेरे पास मेथेनॉल के ऊपर जो टेस्टिंग चल रही है उसका कोई फिगर नहीं है. मेरी समझ से सरकार ने भी अभी तक कोई डेटा रिलीज नहीं किया है. भारत में मेथेनॉल का प्रयोग बिल्कुल संभव है. ये भी सही है कि इसका असर इंजन पर पड़ेगा और नहीं भी पड़ सकता है. देखिए सरकार इसको किस तरह से लागू करती है यह इस पर निर्भर करता है. टेक्निकली यह बिल्कुल संभव है, लेकिन आप इसको इग्ज्यक्यूट कैसे करेंगे? रिफाइन कैसे करेंगे? और सप्लाई चेन कैसे बनाएंगे? सवाल टेक्नोलॉजी का नहीं है सवाल सप्लाई चेन से जुड़ा हुआ है. आप इसको कहां पर ब्लेंड करेंगे? ब्लेंड करने की आपके पास योग्यता है कि नहीं है?

राजीव मित्रा आगे कहते हैं कि देखिए अगर यह इतना ही आसान तरीका है तो आज तक क्यों नहीं किया गया है? इसमें कोई शक नहीं है कि इसके एग्जक्यूट हो जाने से पॉल्यूशन काफी कम हो जाएगा, साथ में और चीजों में कमी आएगी लेकिन मामला अटक जाता है सप्लाई को लेकर. रिफाइनिंग के प्रोसेस में कौन सा केमिकल आप ऐड कर रहे हैं, कितनी मात्रा में कर रहे हैं, इन सब बातों पर बहुत कुछ निर्भर करता है. देखिए अब तक हमलोग सल्फर फ्री डीजल नहीं बना पाए हैं. एथेनॉल कम नहीं कर पाए हैं. अभी तक मेथेनॉल नहीं डाल पाए हैं इसलिए आपके फ्यूल में पॉल्यूशन लेवल बहुत ज्यादा हैं. भारत जैसे देश में सब कुछ मेनुफैक्चर्र के ऊपर डाल दिया गया है कि आप अपनी टेक्नोलॉजी इंप्रूव करें.’

बता दें कि कच्चे तेल को पेट्रोल बनाने के प्रोसेस में कुछ केमिकल्स मिलाए जाते हैं. विकल्प के तौर पर आप या तो एथेनॉल डालें या फिर मेथेनॉल. इनकी क्वलिटी के हिसाब से पेट्रोल के जलने के बाद कार्बन्स निकलते हैं. एथेनॉल से साफ किए पेट्रोल में से ज्यादा पार्टिकल्स निकलते हैं, जिससे प्रदूषण ज्यादा फैलते हैं. आखिरकार आप रिफायनिंग के वक्त ही एथेनॉल या मेथेनॉल डाल कर पेट्रोल में कनवर्ट करेंगे. पेट्रोल पंप या अन्य जगहों पर यह संभव ही नहीं है.’

जाने-माने ऑटो एक्सपर्ट और ऑटोमोटिव रेस्टोरेशन के अनुभवी टूटू धवन फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए मेथेनॉल का प्रयोग यूरोप के कई देशों में 20 सालों से हो रहे हैं. आप अगर इसको रिफायनरी के माध्यम से लागू करते हैं तो फिर सही है, लेकिन अगर आप सोचते हैं कि इसको अपनी गाड़ियों की टंकियों में डाल दें या पेट्रोल पंपों के जरिए लागू करें तो वह इंजन के लिए नुकसानदायक है. इससे फ्यूल की खपत भी ज्यादा होगी और गाड़ियों के इंजन के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा. मेरी समझ से इसे साइंटिफिक रेशियो से इस्तेमाल कर पेट्रोल की कीमत में कमी लाई जा सकती है. हमारे देश में भी यह बहुत पहले ही लागू हो जाना चाहिए था.’

अलग-अलग सोर्सेज से कहा जाता रहा है कि सरकार 2017 से ही पेट्रोल में मेथेनॉल मिलाने की योजना पर काम कर रही है. जबकि, कुछ एक्सपर्ट्स से बात करने पर पता चला कि मेथेनॉल के प्रयोग की बात मनमोहन सिंह सरकार के समय से ही चल रही है. केंद्र सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि 15 फीसदी मेथेनॉल मिले हुए पेट्रोल से गाड़ियां चलाने का ट्रायल शुरू भी हो चुका है. नीति आयोग की निगरानी में महाराष्ट्र के पुणे में ट्रायल रन भी चल रहा है.

नीति आयोग के मुताबिक अगर यह ट्रायल सफल हुआ तो देश में मेथेनॉल मिला हुआ पेट्रोल काफी सस्ता होगा. अगले दो-तीन महीनों में मेथेनॉल से चलने वाली गाड़ियों का ट्रायल और दूसरी जगहों पर भी शुरू हो जाएगा. इस ट्रायल रन के नतीजे आने के बाद देश में मेथेनॉल मिला पेट्रोल मिलना शुरू हो जाएगा.

इस समय पुणे में खासकर मारुति और हुंडई की गाड़ियों में ये ट्रायल किए जा रहे हैं. जानाकारों का मानना है कि आम लोगों तक इसका फायदा कब तक पहुंचेगा ये ट्रायल के नतीजे आने के बाद ही पता चल पाएगा. अगर नतीजे ठीक-ठाक रहें तो केंद्र सरकार कैबिनेट में मंजूर कर इसे मैंडेटरी कर देगी. इसके बाद देश में में जितनी भी पैसेंजर गाड़ियां हैं उसमें 15 प्रतिशत मेथेनॉल से मिला पेट्रोल का इस्तेमाल किया जा सकेगा.

मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि एथेनॉल के मुकाबले मेथेनॉल काफी सस्ता है. एथेनॉल लगभग 40 से 50 रुपए प्रति लीटर है तो मेथेनॉल 20 रुपए से भी सस्ता पड़ेगा. दूसरी तरफ मेथेनॉल के इस्तेमाल से प्रदूषण में भी कामी आएगी. हालांकि, इसकी उपलब्धता को लेकर संशय बने हुए हैं. लेकिन, घरेलू उत्पादन बढ़ाने और इंपोर्ट कर सरकार इसकी कमी को दूर करने की बात कर रही है.

केंद्र सरकार राष्ट्रीय केमिकल एंड फर्टिलाइजर (आरसीएफ), गुजरात नर्मदा वैली फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन(जीएनएफसी) और असम पेट्रोकेमिकल जैसी कंपनियों के क्षमता विस्तार की तैयारी पूरी कर चुकी है.

मेथेनॉल इंपोर्ट करने के लिए नीति आयोग के द्वारा टेंडर भी जारी किए जा चुके हैं. टेंडर आने के बाद ही इंपोर्ट प्राइस तय किया जाएगा. चीन, मेक्सिको और मिडिल ईस्ट से मेथेनॉल का इंपोर्ट किया जा सकता है.

साल 2003 में भारत में पेट्रोल में 5 फीसदी की एथेनॉल मि‍क्‍सिंग को अनिवार्य कि‍या गया था. इसका मकसद था पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ वि‍देशी मुद्रा की बचत और कि‍सानों को अधिक से अधिक फायदा पहुंचाना.

इतना ही नहीं केंद्र सरकार आने वाले दिनों में मेथेनॉल को घरों में खाना पकाने के काम में भी इस्तेमाल पर विचार कर रही है. केंद्र सरकार इसके लिए भी खासतौर पर तैयारी कर रही है. ऐसा कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार की तरफ इस मुद्दे पर भी एक खास योजना तैयारी की जा चुकी है. नीति आयोग का मानना है कि एलपीजी की तरह मेथेनॉल से भी खाना पकाया जा सकेगा. इसकी शुरुआत भी नॉर्थ-ईस्ट से कुछ राज्यों से हो चुकी है, जिसमें असम पहला राज्य है जहां मेथेनॉल से खाना पकाने का ट्रायल शुरू किया गया है. मेथेनॉल से चलने वाले एक लाख गैस स्टोव असम सरकार वितरित करने की तैयारी में है.

फिलहाल असम पेट्रो केमिकल्स ने असम पेट्रो कॉम्प्लेक्स में 500 से 1000 परिवारों को गैस चूल्हा दिया है. इसके बाद कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी मेथेनॉल से चलने वाले गैस चूल्हे दिए जाएंगे. नीति आयोग की अगली बैठक में मेथेनॉल की उपलब्धता बढ़ाने पर चर्चा होगी. इस मुद्दे पर तेल कंपनियों और सभी स्टेक होल्डर्स के साथ भी नीति आयोग की बैठक होगी.

कुलमिलाकर सरकार की कवायद तो यही है कि आने वाले दिनों में पेट्रोल और रसोई गैस को सस्ता किया जाए, लेकिन विशेषज्ञों को मानना है कि यह बातें इतनी आसान नहीं है जितना इसको लेकर कहा जा रहा है. बीच-बीच में इस तरह की बातें आती रहती हैं और फिर कुछ समय बाद अपने आप गायब भी हो जाती हैं. लेकिन, अगर नीति आयोग की मानें तो इस साल मार्च तक 15 फीसदी मेथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल जल्द ही पेट्रोल पंपों पर बिकने शुरू हो जाएंगे.