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केजरीवाल पर चार्जशीट को लेकर दिल्ली पुलिस की साख पर क्यों उठ रहे सवाल?

दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में बताया है कि सीएम अरविंद केजरीवाल के पूर्व सलाहकार वीके जैन, पर्सनल सेक्रेटरी विभव और एक और सहयोगी विवेक यादव भी केजरीवाल के खिलाफ बयान दिया है.

Ravishankar Singh

दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश के साथ सीएम आवास में हुए कथित मारपीट मामले में एक नया मोड़ आ गया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के पक्ष में भी दलीलें सामने आने लगी हैं. दिल्ली पुलिस की तरफ से सरकारी गवाह बने विभव कुमार ने कोर्ट में दाखिल चार्जशीट पर सवाल खड़े कर दिए हैं. विभव कुमार दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के प्राइवेट सेक्रेटरी हैं. दिल्ली पुलिस ने विभव को सरकारी गवाह बना रखा है.

दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में बताया है कि सीएम अरविंद केजरीवाल के पूर्व सलाहकार वीके जैन, पर्सनल सेक्रेटरी विभव और एक और सहयोगी विवेक यादव भी केजरीवाल के खिलाफ बयान दिया है. दिल्ली पुलिस ने इसी आधार पर सीएम और डिप्टी सीएम सहित 13 लोगों को आरोपी बनाया है.


बता दें कि सीएम आवास पर 18 फरवरी को प्रमुख सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट मामले में अरविंद केजरीवाल के प्राइवेट सेक्रेटरी विभव कुमार, विधायकों के कॉर्डिनेशन का काम देखने वाले विवेक यादव और सीएम के पूर्व सलाहकार वीके जैन सरकारी गवाह हैं. दिल्ली पुलिस इन तीनों को आगे भी सरकारी गवाह के तौर पर कोर्ट में पेश करेगी.

लेकिन, इन सरकारी गवाहों में से एक विभव कुमार ने मंगलवार को दिल्ली पुलिस की दावों की हवा निकाल दी. विभव ने अपने ट्वीट में दिल्ली पुलिस के चार्जशीट पर कई सवाल खड़े किए. विभव ने ट्वीट करते हुए लिखा है, ‘मोदी सरकार के इशारों पर दिल्ली पुलिस काम कर रही है. उस रात की घटना के बारे में हमने दिल्ली पुलिस को साफ कहा था कि अरविंद केजरीवाल को बदनाम करने की साजिश रची गई. यही बात मैं अदालत को भी बताउंगा. अभी तक आम आदमी पार्टी के जितने भी नेताओं के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की है उन सभी मामलों में दिल्ली पुलिस को हार मिली है. इस केस में भी मोदी जी की हार होगी. अगर यह केस भी मोदी जी हार गए तो क्या वो दिल्ली के लोगों से माफी मांगेंगे?’

दिल्ली पुलिस ने बीते सोमवार को ही पटियाला कोर्ट में 1300 पेज की चार्जशीट दाखिल की है. दिल्ली पुलिस ने सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया सहित 11 आम आदमी पार्टी के विधायकों को भी आरोपी बनाया है.

विभव कुमार के बयान सामने आने के बाद भी दिल्ली पुलिस का कहना है कि कोर्ट में दाखिल चार्जशीट आरोपियों को सजा दिलाने के लिए काफी है. दिल्ली पुलिस पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की है. आरोपियों को सजा दिलाने के लिए यह चार्जशीट काफी है. अगर जरूरत पड़ेगी तो कोर्ट में और भी साक्ष्य के पेश किए जाएंगे.

इधर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं ने रणनीति बनाना शुरू कर दिया है. सोमवार को ही गोपाल राय के नेतृत्व में सरकार के चार मंत्रियों ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता कर इसे केंद्र और मोदी सरकार की साजिश करार दिया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार के सभी चार मंत्रियों ने कहा है कि यह मामला भी कोर्ट में गलत साबित होगा.

अब सवाल यह उठता है कि दिल्ली पुलिस एक तरफ कह रही है कि विभव, विवेक और वीके जैन ने दिल्ली पुलिस की पूछताछ में प्रमुख सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट की बात को कबूल किया है. अदालत में सरकारी गवाहों के बयानों की काफी अहमियत होती है. अब जब दिल्ली पुलिस ने तीन लोगों को सरकारी गवाह बनाया और उसमें से एक व्यक्ति अपनी बात से ही मुकर गया है. इस स्थिति में चार्जशीट में कितना दम बचेगा?

कानून के जानकारों का मानना है कि विभव कुमार के अपने बयान से मुकरने के बाद दिल्ली पुलिस का पक्ष थोड़ा कमजोर पड़ सकता है. अगर बाकी के दो और गवाह भी अपनी बात से मुकर जाते हैं तो फिर केस काफी कमजोर हो जाएगा. जल्दबाजी में भले ही दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी हो, लेकिन सवाल यह है कि यह चार्जशीट कोर्ट में कितना टिक पाएगा?

देश के जाने-माने क्रिमिनल लॉयर केटीएस तुलसी फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘अगर कोई सरकारी गवाह अपनी बात से मुकर जाता है तो उसकी गवाही तो जीरो हो जाएगी. बशर्ते स्टेटमेंट में कुछ चेंज नहीं हुआ हो. अगर कोर्ट में सरकारी गवाह बोलता है कि हमने कुछ देखा नहीं है और घटनास्थल पर ऐसा कुछ हुआ नहीं तो इस स्थिति में केस का कुछ महत्व नहीं रह जाएगा. हां, अगर कुछ और साक्ष्य जैसे सीसीटीवी फुटेज आदि सामने आते हैं और यह सबूत कुछ साबित करती है तो फिर कार्रवाई हो सकती है. देखिए, इस मामले में कोर्ट के सामने अगर कोई गवाह नहीं हो और कोई साक्ष्य भी नहीं हो तो इस स्थिति में केस का कामयाब होना संभव नहीं है.’

तुलसी आगे कहते हैं, ‘क्योंकि ये सारे लोग पब्लिक सर्वेंट हैं और इस केस में एलजी से मंजूरी ली गई है कि नहीं यह मुझे मालून नहीं है? अगर एलजी ने इस केस की लिए मंजूरी नहीं दी है तो यह केस आगे नहीं चल सकता. अगर एलजी ने केस चलाने की मंजूरी दी भी है फिर भी इसको अदालत में चुनौती दी सकती है. क्योंकि ये लोग भी तो पब्लिक सर्वेंट हैं.’

अब सीएम अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को अदालत में साबित करना होगा कि इस घटना के हम पक्षधर नहीं थे. एक तरफ प्रमुख सचिव अदालत में पक्ष रखेंगे कि सीएम का साफ इरादा था मुझे जलील और मारने-पीटने का. अगर आधिकारिक तौर पर यह मीटिंग बुलाई गई होती और उस परिस्थिति में सीएम पर मारपीट का आरोप लगता तो फिर एलजी से अनुमति लेनी पड़ती.

सीआरपीसी की धारा 197 के अंतर्गत एलजी के अनुमति के बाद ही दिल्ली पुलिस कार्रवाई करती है. इस धारा के अंतर्गत किसी भी सरकारी नौकरशाह,जज, सीएम, मंत्री और सांसद और विधायकों को सुरक्षा मिली हुई है.

अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के अलावा आप के 11 विधायकों को भी इस चार्जशीट में आरोपी बनाया गया है. विधायकों में अमानतउल्ला खान, प्रकाश जारवाल, मदन लाल, नीतिन त्यागी, दिनेश मोहनिया और राजेश ऋषि का नाम भी प्रमुख तौर पर शामिल हैं.

दिल्ली के इतिहास में पहली बार हुआ है जब किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल किया गया है. इससे पहले भी बीते 18 मई को भी दिल्ली के इतिहास में पहली बार हुआ था जब दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से घंटों पूछताछ की थी.

दिल्ली पुलिस ने 20 फरवरी को एफआईआर दर्ज कर मामले की तफ्तीश शुरू की थी. दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश ने दिल्ली पुलिस को ईमेल कर मामले की जानकारी दी थी. दिल्ली पुलिस ने इस ईमेल को ही आधार मानते हुए मुकदमा दर्ज किया था.

पटियाला कोर्ट की अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल की अदालत में 1300 पेज की चार्जशीट दाखिल की गई है. इसमें मुख्यमंत्री के साथ ही सभी 13 आरोपियों पर एक सरकारी अधिकारी के साथ मारपीट, सरकारी कामकाज में बाधा डालने, आपराधिक साजिश रचने और बंधक बनाने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं. दिल्ली पुलिस ने सभी आरोपियों पर दंगे के मकसद से एकजुट होने का आरोप भी लगाया है. मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त होने वाली है.

अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को 25 अगस्त को अदालत में साबित करना पड़ेगा कि 18 मई को आधी रात को बुलाई गई मीटिंग एक आधिकारिक मीटिंग थी न कि पर्सनल. हालांकि आम आदमी पार्टी की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि यह मीटिंग राशन के मुद्दे को लेकर बुलाई गई थी.

वहीं चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश यह साबित करेंगे कि यह मीटिंग जानबूझ कर हमारे साथ बदसुलूकी और मारपीट के लिए थी. ऐसे में सरकारी गवाहों के बयान की काफी अहमियत होती है. अगर विभव कुमार की तरह बाकी के भी दो गवाह अपनी बात से मुकर जाते हैं तो यह दिल्ली पुलिस के लिए काफी फजीहत वाला साबित होने वाला है.