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दिल्ली की दिवाली पर हंगामा, कोयलांचल के धुएं पर चुप्पी क्यों?

इन इलाकों में हर दिन तीन बार पानी का छिड़काव होना है. लेकिन लोगों को केवल पानी छिड़काव के लिए आंदोलन करना पड़ता है

Anand Dutta

दिल्ली में दिवाली के मौके पर पटाखा छोड़ने पर सुप्रीम कोर्ट ने मनाही कर दी है. इस आदेश को धार्मिक आइना दिखाकर बहस चल पड़ी है कि ऐसा प्रतिबंध हिन्दू धर्म के त्योहारों पर ही क्यों, बकरीद पर कटनेवाले बकरों पर क्यों नहीं? सवाल इससे इतर है. मामला इससे कहीं अधिक गंभीर है. लेकिन नजर है कि लुटियन जोन से बाहर निकलना नहीं चाहती.

सालों से दमघोंटू वातावरण में रह रहे कोयलांचल वासियों के बारे में सोचिए. जहां सरकार की ओर से दिए जा रहे मुआवाज राशि से कहीं अधिक पैसे इलाज में खर्च हो रहे हैं. लोगों को दमे की बीमारी है, बच्चों के चमड़ों पर धूल की परत जम चुकी है.


झरिया की आग को सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय त्रासदी घोषित किया है. तेज हवा चलने पर छाई उड़ने से राहगीरों को काफी परेशानी होती है. ओवरलोड डंपरों के परिचालन के कारण पूरी सड़क छाई और कोयला चूर्ण से पटी हुई है.

रांची से 63 किमी दूर खलारी के धूल और आग से हालत यह है कि बच्चों के चमड़े काले पड़ चुके हैं. धूल इतनी की एक दूसरे का चेहरा देखना भी मुश्किल. खलारी में वायु प्रदूषण के स्तर को कभी मापा नहीं गया. यहां से 63 किमी दूर रांची की रिपोर्ट जरूर आई है. इसमें पीएम 10 का स्तर 216 एमजी प्रति घनमीटर है, पीएम 2.5 का स्तर 130 बताया गया है.

होटलों में नहीं बैठते हैं लोग, हर दिन करते हैं आंदोलन 

हालत यह है कि होटलों में लोग नहीं बैठते. नियम के मुताबिक इन इलाकों में दिनभर में तीन बार पानी का छिड़काव होना है. लेकिन पिछले कई सालों से आसपास के लोगों को केवल पानी छिड़काव के लिए आंदोलन करना पड़ता है. इस प्रदूषण की चपेट में लगभग पांच लाख की आबादी है. करकट्टा से लेकर पिपरवार तक लगभग पांच लाख की आबादी है. यह पूरा इलाका प्रदूषण की चपेट में है. जो कि खदान की वजह से हर दिन बढ़ रहा है.

झारखंड के पर्यावरणविद् नीतीश प्रियदर्शी, बताते हैं कि दामोदर और साफी नदी बहुत प्रदूषित हो चुकी है. आर्सेनीक और लेड, क्रोमियम, निकेल, अल्पमात्रा में मरकरी वहां मौजूद है. लेड सबसे ज्यादा है. ऐसे पानी को पीने से हाई ब्लडप्रेशरस किडनी और लीवर पर असर पड़ता है. आर्सेनिक चमड़े पर बुरा असर करता है. वहां केवल कोयला निकाल के बेच देने का काम हो रहा है.

उन्होंने बताया कि वहां मैं सन 1994 से शोध कर रहा हूं, हर दिन स्थिति बिगड़ती जा रही है. यहां के लोगों की औसतन 58-60 साल उम्र रह गई है. हवा और पानी में किस तरह की हानीकारक चीजें हैं, इसकी ना तो जानकारी है, ना ही सीसीएल ने जागरुकता अभियान चलाया है.

सेंट्रल कोलफील्ड लीमिटेड (सीसीएल) की वेबसाइट के मुताबिक पिपरवार और डकरा माइंस को क्लोजर माइंस (जिसे बंद किया जाना है) के लिस्ट में डाला गया है. लेकिन प्रदूषण बोर्ड के मुताबिक वह आपत्ति शर्तों को पूरा करती है, इसलिए अभी तक चल रहा है.

साल 2015 में झारखंड से राज्यसभा सदस्य संजीव कुमार ने सरकार से पूछा कि कोयलांचलवासियों को प्रदूषण से बचाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं? इसपर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि झारखंड और ओडिशा में खऩन से जो प्रदूषण की समस्या हो रही है, उसपर सुप्रीम कोर्ट में भी चर्चा हुई है. तय सीमा से अधिक प्रदूषण रोकने के लिए शोध किए जा रहे हैं. मानक से अधिक प्रदूषण ना हो, इसके लिए हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं.

झारखंड प्रदूषण  नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष ए. के पांडेय इस बात का जवाब देने में पूरी तरह विफल हैं कि तय मानक से अधिक खनन सालों से क्यों होता आ रहा है? जिन जगहों पर खनन चल रहा है, वहां धूल कण कम उड़े इसके लिए आज तक उपाय क्यों नहीं किए गए? हर दिन पूरे कोयलांचल में दो हजार से अधिक ट्रक धुंआ और धूल उड़ाते चल रहे हैं, इनपर लगाने लगाने के लिए वह क्या कर पा रहे हैं? इन कंपनियों को लाख नियम उल्लंघन के बावजूद नो ऑब्जेक्शन लेटर कैसे मिल जाता है?

रिम्स में हर दिन आते हैं दमे के मरीज 

रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) के डॉक्टर बताते हैं कि केवल रांची कोल बेल्ट से हर दिन पांच मरीज दमा के आ रहे हैं. यही हाल धनबाद का भी है. खतरनाक स्थिति यह है कि जब बीमारी गंभीर हो जाती है, तब मरीज को पता चलता है कि उसे दमा हो गया है. जबकि होना यह चाहिए कि कम से कम हर हफ्ते इन इलाकों में मेडिकल कैंप लगाए जाने चाहिए.

जानलेवा वायु प्रदूषण अकेले दिल्ली, राष्ट्रीय नियंत्रण क्षेत्र या भारतीय महानगरों तक सीमित रहने वाली समस्याय नहीं है. यह एक राष्ट्रीगय समस्यान है जो हर साल 12 लाख भारतीयों की जान ले रही है और अर्थव्य वस्था को जीडीपी के करीब 3 प्रतिशत का नुकसान पहुंचा रही है.

चेताया था ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट ने 

ग्रीनपीस इंडिया की साल 2015 में आई रिपोर्ट के मुताबिक पचास देशों की 300 से ज्यादा संस्थारओं का प्रतिनिधित्व करने वाले 500 शोधकर्ताओं द्वारा चलाया जाने वाला एक समग्र क्षेत्रीय व वैश्विक शोध कार्यक्रम ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज (जीबीडी) का अनुमान है कि भारत में 2015 में बाहरी वायु प्रदूषण के कारण हर दिन 3283 लोगों की मौत हुई है. इसके चलते 2015 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण हुई कुल संभावित मौतों की संख्या 11.98 लाख पर पहुंच गई है.

ग्रीनपीस इंडिया के सुनील दहिया का कहना है कि अगर देश का विकास महत्वपूर्ण है, तो वायु प्रदूषण से लड़ना प्राथमिकता होनी चाहिए. वायु प्रदूषण एक राष्ट्रीय समस्यास है और उसके खिलाफ जंग में जीत हासिल करने के लिए हमें एक देश के रूप में एकजुट होना पड़ेगा तथा शहरों व क्षेत्रों की सरहदों से पार जाना होगा.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक धूलकण जो सांस के माध्यम से गला और फेफड़ा तक जा सकता है (पीएम 2.5) की मात्रा 60 एमजी प्रति घनमीटर होनी चाहिए. वहीं जो सांस के माध्यम से नहीं जा सकता है (पीएम 10) की मात्रा 100 एमजी प्रति घनमीटर होनी चाहिए.

यह तो हुई कोयलांचल की स्थिति. पूरे देश प्रदूषण से परेशान है. लेकिन माथे पर बल तब पड़ता है जब लूटियन जोन को सांस लेने में परेशानी होती है. वक्त मिलने पर आंखों को किनारे से दो टपका दीजिएगा. कोयलांचल वासी इससे भी खुश हो जाएंगे.