view all

एक फौजी को क्यों प्यार करता है बुरहानी वानी का त्राल

त्राल घाटी हिज्बुल मुजाहिदीन के गढ़ रूप में जानी जाती है.

By A Soldier

दक्षिणी कश्मीर के पूर्वी छोर पर एक घाटी है, जिसको हम त्राल के नाम से जानते हैं. त्राल के उत्तर में है ख्रू-पंपोर की घाटी, जो केसर की खेती के लिए मशहूर है. दक्षिण हिस्से में स्थित पहलगाम घाटी टूरिज्म के लिए जानी जाती है. इनके मुकाबले त्राल घाटी की इस बात के लिए मशहूर या यूं कहें कि बदनाम है कि ये आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन का गढ़ है. बुरहान वानी का ताल्लुक भी इसी जगह से था. वो बुरहान वानी जिसकी मौत ने कश्मीर घाटी को करीब पांच महीने तक सुलगाए रखा था.

त्राल इलाके की सिर्फ यही एक पहचान नहीं है. हम में से शायद बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि इस इलाके ने बहुत से अफसरों को जन्म दिया है. बहुत से इम्तिहान के टॉपर दिए हैं. भारतीय फौज के एक मेजर जनरल भी त्राल इलाके से ही थे.


मगर आज हम यहां उस मेजर जनरल की नहीं, मेजर की बात करेंगे. इनका नाम है मेजर ऋषि. मलयाली भाषी, हमेशा फिक्रमंद दिखने वाले, कम बोलने वाले लेकिन हर चुनौती के लिए तैयार मेजर के मातहत बहादुर सिपाहियों की पूरी एक यूनिट काम करती है. जिनकी जिम्मेदारी इलाके में अमन चैन बनाए रखना है.

मेजर ऋषि हिंदी बोलना जानते हैं मगर उनका लहजा मलयाली होता है. यानी वो बहुत साफ हिंदी जबान नहीं बोल पाते. मगर अपने लहजे से, अपनी जुबान की मिठास से वो हर किसी से गुफ्तगू कर लेते हैं. हर उम्र के लोगों को अपना दोस्त बना लेते हैं. यही वजह है कि उन्होंने त्राल में भी उन लोगों को अपना दोस्त बना लिया जो इलाके में गश्त पर निकले जवानों पर थूका करते थे. मेजर ऋषि ने बहुत कम वक्त में इस इलाके के लोगों का जहन पूरी तरह से बदल दिया. अब लोग गश्त पर निकले सेना के जवानों पर न थूकते हैं और न पत्थर फेंकते हैं. बल्कि आदाब करते हैं. बच्चे उनकी तरफ देखकर मुस्कुराते हैं. बुजुर्ग उन्हें देखकर हाथ हिलाते हैं.

बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में हालात काफी खराब थे. तब भी त्राल का ये इलाक़ा सबसे ज़्यादा शांत था. मेजर ऋषि की चौकी पर किसी ने पत्थर नहीं फेंका. हालांकि बुरहान वानी का घर इसी इलाके में था. इस इलाके में मेजर ऋषि का लोगों के साथ अच्छा नेटवर्क है. और स्थानीय लोगों की मदद से ही मेजर ऋषि कई आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश करने में कामयाब रहे.

मेजर ऋषि, साथियों के साथ

मेजर ऋषि ने 4 मार्च 2017 को त्राल इलाके में पनाह लिए हुए आतंकी आकिब को उसके एक साथी के साथ उसी के घर में धर दबोचा. आकिब इस इलाके का बहुत पुराना आतंकी था. इस आतंकी की खबर सबसे पहले मेजर ऋषि को दी गई थी. जिन्होंने इलाके में किसी भी तरह का तनाव फैलाए बिना अपनी क्विक रिस्पांस टीम के साथ जाल बिछा कर ऑपरेशन को अंजाम दिया था.

आतंकी आकिब को घेरने के लिए उन्हों उसके घर के पास आईईडी लगाकर पहले घर के एक हिस्से को उड़ाया. इस काम के लिए मेजर ऋषि ने खुद कमान संभाली. आईईडी के इस धमाके के बाद आतंकी घर के दूसरे हिस्से में जा छिपे, जिससे उन्हें घेरने में काफी मदद मिली. दूसरी बार भी आईईडी से धमाका करने की जिम्मेदारी मेजर ऋषि ने ही अपने जिम्मे ली. लड़ाई के मैदान में बहुत से सैनिक लड़ते हैं. लेकिन ऐसे जोखिम उठाने का साहस कुछ के पास ही होता है. मेजर ऋषि ने आतंकियों के घर में आईईडी को खुद उस जगह पर लगाया जहां वो उसे लगाना चाहते थे. इस काम में भरपूर जोखिम था लेकिन उन्होंने वो जोखिम उठाया. आतंकियों ने भी फायरिंग की. एक गोली मेजर ऋषि के चेहरे पर लगी.

ऐसे मौके पर कोई और होता तो जान बचाने की कोशिश करता. मगर उस वक्त भी मेजर ऋषि के जहन में अपने साथियों की सुरक्षा की फिक्र थी. इसीलिए वो चेहरा पूरी तरह से जख्मी होने के बावजूद लगातार आतंकियों को मुंह तोड़ जवाब देते रहे.

मेजर ऋषि खुद वार झेलते रहे लेकिन उन्होंने अपनी टीम के किसी और साथी को खतरे की उस जगह पर आगे नहीं आने दिया. क्योंकि वो जानते थे कि अगर आतंकी उन पर हावी हो गए तो उनके बहुत से साथियों की जान दांव पर लग सकती है. ऑपरेशन पूरा होने पर उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों की टीम ने रात भर उनकी सर्जरी की.

तीन दिन बाद वो सीधे बैठने का लायक हुए और हाथ से मैसेज लिख कर बात कर पाए. अभी उनकी कई सर्जरी और होना बाकी हैं. लेकिन मेजर ऋषि दिल और दिमाग दोनों से बहुत बहादुर हैं. उनका हाल-चाल जाने के लिए इलाके के लोग भी आते हैं. और अक्सर फोन करके उनकी सेहत की मालूमात हासिल करते हैं. उनके स्वभाव की वजह से उन्हें स्थानीय लोगों का भरपूर प्यार मिला है.

बहुत से लोग सेना के काम करने के तरीकों, सैनिकों के बर्ताव, उनकी लीडरशिप, उनके संस्कार और संकल्प पर सवाल उठाते हैं.  मेजर ऋषि ऐसे लोगों के सवाल का बेहतरीन जवाब हैं.

धन्यवाद मेजर ऋषि... हम भगवान से प्रार्थना करते हैं आप जल्द से जल्द ठीक हो जाएं.