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मध्यप्रदेश किसान आंदोलन: एमपी की सड़कों पर क्यों पसरा है दूध और गुस्सा?

आंदोलन के पीछे के कारण को समझने के लिए कई बातों को समझना भी जरूरी है

Dinesh Gupta

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज्य के कुछ हिस्सों में चल रहे किसानों के हिंसक आंदोलन के पीछे मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की भूमिका होने का आरोप लगा रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव और प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने इस आंदोलन से पार्टी को पूरी तरह से अलग बताते हुए आंदोलन को किसानों द्वारा स्वप्रेरणा से उठाया गया कदम बताया है.

दरअसल मध्यप्रदेश में किसानों के आंदोलित होने के पीछे दो बड़े कारण हैं. पहला सबसे बड़ा कारण राज्य के कृषि विभाग की अदूरदर्शी नीतियों का है. दूसरा कारण किसान राजनीति पर कब्जे का है. सालों से राज्य की किसान राजनीति पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ का कब्जा है. रविवार की रात इसी किसान संघ से जुड़े नेताओं से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उज्जैन में चर्चा की थी. चर्चा के बाद किसान संघ द्वारा आंदोलन स्थगित करने की घोषणा की.


आंदोलन वापस लेने की इस घोषणा के बाद भी किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है. सोमवार की देर रात मंदसौर में किसानों ने रेलवे फाटक तोड़ दिया और पटरियों को उखाड़ने का प्रयास भी किया. आंदोलन का नेतृत्व राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ द्वारा किया जा रहा है. यह आरएसएस के किसान संगठन से टूट कर अलग हुआ संगठन है. इस आंदोलन के पीछे के कारण को समझने के लिए इस टूट को समझना भी जरूरी है.

आखिर किसानों का आंदोलन मालवा-निमाड़ में क्यों?

मध्यप्रदेश का किसान सामान्य तौर पर कभी उग्र आंदोलन नहीं करता है. पहली बार ऐसा हुआ है कि जाट आंदोलन की तर्ज पर किसान रेल की पटरियां उखाड़ने पर उतारू हो गए. पुलिस के एक एएसआई की आंख फोड़ दी. दरअसल किसानों के इस आंदोलन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक निष्कासित किसान नेता शिवकुमार शर्मा का संगठन है. मंदसौर में गोलीबारी में एक किसान की मौत हो गई है.

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले भी शिवकुमार शर्मा ने किसानों का उग्र आंदोलन किया था. रायसेन जिले के बरेली में आंदोलन के दौरान पुलिस ने किसानों पर गोली चलाई थी. कुछ किसानों की मौत भी हो गई थी. शिवकुमार शर्मा लगभग छह माह जेल में रहे. उस वक्त वे भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष थे. इस आंदोलन के बाद संघ परिवार ने उन्हें निष्कासित कर दिया था. इससे पूर्व शिवकुमार शर्मा के नेतृत्व में किसानों ने मुख्यमंत्री निवास का घेराव कर सरकार के सामने असहज स्थिति पैदा की थी. जेल से बाहर आने के बाद शर्मा ने राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के नाम से एक अलग संगठन बनाया. किसान इसी बैनर तले आंदोलन कर रहे हैं.

शिवकुमार शर्मा कहते हैं कि किसानों की पूर्ण ऋण मुक्ति होने तक आंदोलन जारी रहेगा. प्रदेश व्यापी बंद की भी तैयारी की जा रही है. वर्तमान मालवा और निमाड़ अंचल को छोड़कर किसानों का आंदोलन अन्य किसी स्थान पर नहीं चल रहा है. सरकार ने राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के महामंत्री अनिल यादव को गिरफ्तार कर लिया है.

मूंग, मंसूर, तुअर और प्याज की कीमतों पर है गुस्सा

मध्यप्रदेश की मंडियों पर आढ़तियों का कब्जा है. ये आढ़तिया अपनी मनमर्जी से उपज के दामों को ऊपर-नीचे करता रहता है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि मंडियों से आढ़तियों को बाहर किया जाएगा. राज्य में इस साल प्याज के अलावा मूंग, मसूर और तुअर का बंपर उत्पादन हुआ है. दूध का उत्पादन भी यहां काफी है.

राज्य में प्याज का उत्पादन सिर्फ 18 जिलों में होता है. अधिकांश जिले मालवा एवं निमाड़ अंचल के हैं. किसानों का हिंसक आंदोलन भी मालवा-निमाड अंचल में ही है. अंचल के इंदौर, धार, उज्जैन मंदसौर, नीमच, रतलाम तथा खंडवा-खरगौन जिले में किसान आंदोलन कर रहे हैं.

अंचल के कुछ जिले महाराष्ट्र की सीमाओं से लगे हुए हैं. महाराष्ट्र में किसानों द्वारा किए जा रहे आंदोलन का असर भी इस आंदोलन पर देखा जा रहा है. मंडी में प्याज का उचित मूल्य नहीं मिला तो किसानों का गुस्सा बढ़ गया. किसानों ने प्याज को सड़कों पर फैंकना शुरू कर दिया. दालों का उत्पादन करने वाले किसान भी सक्रिय हुए. इसमें दुग्ध का उत्पादन करने वाले किसान भी जुड़ गए. दूध सड़कों पर बहा तो किसानों का आंदोलन चर्चा के केंद्र में आ गया.

वैसे राज्य में प्याज के दामों को लेकर हर साल ही किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. पिछले साल भी मंडियों में औन-पौने दामों पर किसानों ने प्याज बेची. किसान जब सड़कों पर उतरे तब सरकार ने 6 रुपए प्रतिकिलो की दर से प्याज खरीदा.

पिछले साल सरकार ने 65 करोड़ रुपए का प्याज खरीदा था. प्याज के उचित भंडारण की व्यवस्था न होने के कारण कुछ दिनों बाद यह सड़ गया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस बार 8 रूपए किलो की दर से प्याज खरीदने की घोषणा की है. प्याज खरीदकर सरकार उन जिलों में पीडीएस दुकानों के जरिए बेचेगी, जहां कि इसका उत्पादन नहीं होता है.

कृषि विभाग की सलाह पर किसानों ने लगाई थी फसल

मध्यप्रदेश के किसान समर्थन मूल्य पर अपनी जिस उपज को बेचने की मांग को लेकर सड़क पर उतरे हैं, वह खेतों में कृषि विभाग के अधिकारियों की सलाह पर ही लगाई गई थी. पिछले साल सरकार ने बड़े पैमाने पर तुअर दाल का आयात किया था. आयात लगभग 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल की दर से किया गया था. तुअर आयात होने के बाद दामों में गिरावट आ गई. इस साल तुअर दाल के दामों में भारी गिरावट आई है.

मध्यप्रदेश सरकार लगभग साढ़े पांच हजार रुपए क्विंटल की दर से तुअर खरीद रही है. मूंग और मसूर के दामों में भी नरमी है. मसूर की दाल के दामों को लेकर सरकार अभी अपनी कोई स्पष्ट नीति नहीं बना पाई है. किसानों द्वारा उपज के उचित दामों को लेकर किए जा रहे हिंसक आंदोलन के बाद कृषि विभाग के अफसर मैदान में कहीं भी नजर नहीं आ रहे हैं. विभाग के प्रमुख सचिव राजेश राजौरा इन दिनों विदेश प्रवास पर हैं. कृषि विभाग, किसानों के इस उत्पादन पर पांचवी बार प्रतिष्ठित कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त कर जश्न मना रहा है. अवार्ड की राशि दो करोड़ रूपए है.

मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान कहते हैं कि भारतीय किसान संघ सात जून को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सम्मान करेगा. जबकि किसान संघ के क्षेत्रीय संयोजक शिवकांत दीक्षित कहते हैं कि मुख्यमंत्री चौहान के काम किसान हितेषी हैं, पर हम भारतीय जनता पार्टी के कहने पर किसी का सम्मान नहीं करेंगे.

दूध उत्पादन में नंबर दो प्रदेश, दाम देने में कंजूस

किसानों ने गुस्से में दूध सड़कों पर बहा दिया. इसकी सर्वत्र आलोचना हुई. सोशल मीडिया पर किसानों के इस कृत्य को लेकर सहानुभूति से ज्यादा गुस्सा देखा गया. मध्यप्रदेश देश के उन दस बड़े राज्यों में एक है, जहां कि दूध का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है. अमूल भी मध्यप्रदेश के किसानों से दूध खरीदता है. अमूल प्रति लीटर लगभग 39 रूपए की दर से खरीदी करता है. वही मध्यप्रदेश दुग्ध महासंघ लगभग 33 रूपए प्रति लीटर की दर से खरीदी करता है.

अमूल और मध्यप्रदेश दुग्ध महांसघ के अलावा भी कई निजी कंपनियां किसानों से ऊंचे दामों पर दूध की खरीदी कर रही हैं. किसानों की मांग है कि अमूल से अधिक दामों पर दूध खरीदा जाए. मध्यप्रदेश दुग्ध महासंघ के अधिकारी इसके लिए तैयार नहीं थे. इस कारण नाराज किसानों ने दूध सड़क पर बहा दिया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आश्वासन दिया है कि दूध की खरीदी अमूल की तर्ज पर होगी.

कर्ज माफी नहीं

चौहान किसानों को कर्ज मुक्त किए जाने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को शून्य ऋण पर ब्याज दे रही है. किसानों को लिए गए ऋण की 90 प्रतिशत राशि ही लौटानी होती है. राज्य में अगले साल विधानसभा के चुनाव होना है. माना यह जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान से असंतुष्ट कुछ नेता उनकी किसान हितैषी छवि को इस आंदोलन के जरिए निशाना बना रहे हैं.