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मिलिट्री ट्रेनिंग प्रोग्राम: लेकिन इन बातों का जवाब कौन देगा?

जरा सोचिए, 10 लाख स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग देने के बजाय बेहतर ये नहीं होगा कि देशभर के स्कूलों में NCC ट्रेनिंग लागू कर दिया जाए ताकि सबको अनुशासन और राष्ट्रवाद का सबक मिले?

Prakash Katoch

युवाओं के दिलो-दिमाग में 'अनुशासन और राष्ट्रवाद' की पैठ बनाने के लिए सरकार एक खास कार्यक्रम शुरू करने वाली है. इसके लिए नेशनल यूथ एंपावरमेंट स्कीम (N-YES) के तहत देशभर से 10 लाख युवाओं को चुना जाएगा. फिलहाल यह ट्रेनिंग डिफेंस, पैरामिलिट्री फोर्स (PMF) और पुलिस की नौकरी के लिए निवार्य है.

12 महीने तक चलने वाली इस ट्रेनिंग में 10वीं और 12वीं के स्टूडेंट्स होंगे. इस दौरान इन्हें स्टाइपेंड के तौर पर कुछ मेहनताना भी दिया जाएगा. इन छात्रों को वोकेशनल, आईटी स्किल्स, आपदा प्रबंधन, मैनेजमेंट के गुर के साथ-साथ योग, आयुर्वेद, भारतीय दर्शन के बारे में भी बताया जाएगा ताकि भारत को 'विश्वगुरु' बनाया जा सके.


इन सवालों का जवाब कौन देगा?

इस ट्रेनिंग प्रोग्राम की लॉन्चिंग से पहले हमें इसकी बारीकियों को समझना होगा. मसलन, यह ट्रेनिंग किस लिए दी जाएगी और कौन देगा? क्या यह प्रोग्राम सभी सैन्यबल को दी जाने वाली ट्रेनिंग के बराबर होगा? इसमें सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स (CAPF) का जिक्र नहीं किया गया है. क्या हम पैरामिलिट्री फोर्स और सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स के फर्क को समझते हैं? 10वीं और 12वीं के बच्चों को क्यों इसके लिए चुना गया है. क्या यह डिफेंस ज्वाइन करने का शुरुआती स्तर है?

अगर 10वीं के बाद कोई स्टूडेंट यह ट्रेनिंग प्रोग्राम ज्वाइन करता है तो क्या स्कूल छोड़ना होगा? क्या यह ट्रेनिंग प्रोग्राम पूरा करने के बाद डिफेंस में नौकरी मिलने की गारंटी होगी. क्या इसका यह मतलब है कि डिफेंस में एंट्री सिर्फ इस रास्ते से होगी और बाकी रास्ते बंद हो जाएंगे. इस तरह के ट्रेनिंग कार्यक्रम को क्यों नहीं स्कूल और कॉलेज में शामिल कर दिया जाए बिना इसे 'अनिवार्य' बनाए?

नरेंद्र मोदी ने चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद इस स्कीम का ऐलान किया है. मुमकिन है इससे वह 10 लाख रोजगार का आंकड़ा पूरा करना चाहते हों. यह एक छलावा हो सकता है क्योंकि सिक्योरिटी फोर्स में पहले से ही वैकेंसी है. ऐसा नहीं है कि युवा लड़के-लड़कियां देशप्रेम के दीवानेपन में सेना ज्वाइन कर रहे हैं. अगर कुछ है तो राजनेताओं के लिए है जो अनुशासन के लिए इस तरह की स्कीमों को जरूरत बताते हैं.

इसकी जगह राजनेताओं को देश की शिक्षा व्यवस्था पर गौर करना चाहिए. शिक्षा व्यवस्था पर गौर करेंगे तो वे पाएंगे कि युवाओं के आचार-विचार, देशभक्ति, मूल्यों पर बहुत कम फोकस है. अगर युवाओं से प्राचीन भारत से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं तो वे ब्रिटिश काल या बहुत से बहुत मुगल काल तक ही बता पाते हैं. उन्हें चोल वंश या सम्राट अशोक के बारे में बहुत कम जानकारी है. उन्हें यह भी मालूम नहीं है कि चीन, जापान, साउथ ईस्ट, साउथ एशिया और सेंट्रल एशिया पर भारतीय सभ्यता और संस्कृति का क्या असर है.

इन सब बातों से यह संकेत मिलता है कि हमें राष्ट्रीयता, अनुशासन और देशभक्ति की जरूरत व्यापक तौर पर है ना कि चंद छात्रों के लिए. स्कूल के सिलेबस में जो बातें छूट रही हैं उन्हें गंभीरता से लेने की जरूरत है. इनमें से कुछ बातें ऊपर बताई भी गई हैं. एनसीसी ट्रेनिंग सभी स्कूलों और कॉलेज के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए. इसके लिए देशभर में सर्वे कराकर यह पूछा जाना चाहिए कि अनिवार्य एनसीसी ट्रेनिंग के लिए क्या अनिवार्य है. रिटायर हो चुके लोगों को चुनकर इंस्ट्रक्टर के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है. कुछ सैनिक स्कूल यह काम कर रहे हैं लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं.

(लेखक वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल हैं.)