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पाकिस्तान में चाणक्य पैदा हुए लेकिन 'जगह' नहीं मिली

आखिर क्यों चाणक्य को पाकिस्तान के इतिहास में वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे?

FP Staff

चाणक्य को पूरी दुनिया एक महान अर्थशास्त्री के रूप में जानती है. दुनियाभर के मैनेजमेंट स्कूलों में चाणक्य पर किताबें पढ़ाई जाती हैं, लेकिन जिस पाकिस्तान में वह पैदा हुए, जहां से उन्होंने पढ़ाई की उसी पाकिस्तान में उन्हें सम्मान नहीं मिला. पाकिस्तानी अखबार डॉन में सैफ ताहिर ने सवाल उठाया है कि आखिर क्यों चाणक्य को पाकिस्तान के इतिहास में वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे?

डॉन में छपे लेख में ताहिर ने लिखा, 'चाणक्य का जन्म तक्षशिला के ग्रामीण इलाके में हुआ था. उस जमाने में तक्षशिला में 63 विषयों की पढ़ाई होती थी. कम उम्र में ही चाणक्य की तीव्र बुद्धि के चर्चे होने लगे और पढ़ाई के लिए उन्हें तक्षशिला में भर्ती किया गया. उनकी तीव्र बुद्धि को देखते हुए उन्हें 20 की उम्र में तक्षशिला में ही शिक्षक के तौर पर नियुक्त कर लिया गया था.' तक्षशिला मौजूदा पाकिस्तान में है.


हालांकि वर्तमान पाकिस्तान में बहुत कम लोग चाणक्य से पाकिस्तान से संबंध के बारे में जानते हैं. सैफ लिखते हैं, 'चाणक्य का अर्थशास्त्र सत्ता और शासन के तक्षशिला पहलुओं पर बात करता है. यह एक राजा, उसके सहयोगियों और सलाहकारों के कर्तव्यों का जिक्र करता है. यह डिप्लोमैसी, युद्ध, शांति, कॉमर्स, कानून, सामाजिक व्यवस्था, कला, कृषि, मेडिकल आदि पर बात करता है.'

सिर्फ खंडहरों में चाणक्य के होने का सबूत

सैफ लिखते हैं कि वर्तमान में चाणक्य के होने के एकमात्र सबूत तक्षशिला के खंडहरों में ही मौजूद हैं.

वह लिखते हैं कि एक तरफ जहां पूरी दुनिया के लिए चाणक्य एक महान दर्शनशास्त्री थे. वहीं पाकिस्तान के लिए वह सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे किसी व्यक्ति के योगदान को समझे बिना ही उसे खारिज कर दिया गया.

ताहिर के अनुसार चाणक्य को नजरअंदाज करने के पीछे स्पष्ट कारण यह है कि उन्हें ब्राह्मण मानसिकता और हिंदू संस्कृति का प्रतिनिधि माना जाता है.

पाकिस्तान ने लंबे समय से इनसे दूरी बना ली है. वह लिखते हैं, 'शायद यह उन्हें मिट्टी के दर्शनशास्त्री जैसा उच्च स्थान देने के लिए अयोग्य बना देता है. इसीलिए देश में उनका कोई जिक्र नहीं मिलता है जबकि हमारे यहां अलग-अलग काल के वैज्ञानिकों और दर्शनशास्त्रियों ने नामों पर कई इमारतें बनी हैं.'

ऐतजाज अहसान की पंक्तियों का जिक्र करते हुए ताहिर ने लिखा, 'अपनी राष्ट्रीय पहचान से अनजान होना एक देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. जब यह एक्स्ट्रा टेरिटोरियल पहचान को अपनाने की कोशिश करता है तो यह प्रोपागैंडा और मिथ का शिकार हो जाता है. यह आज का पाकिस्तान है.. वह पाकिस्तान नहीं जिसे इसके निर्माताओं ने बनाया था.'

गैर मुस्लिम इतिहास को अपनाए पाकिस्तान

ताहिर लिखते हैं कि यदि पाकिस्तान को अपने आइडेंटिटी क्राइसिस से बाहर निकलना है तो इसे अपने गैर-मुस्लिम इतिहास को भी अपनाना होगा. चाणक्य जैसी महान शख्सियत को अपनाना एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए था.

बता दें कि पाकिस्तान में स्थापना वर्ष मनाया जा रहा है. इस मौके पर पाकिस्तान में राजनीति, संस्कृति और कला को लेकर लेख छापे जा रहे हैं. ताहिर का लेख भी इसी का हिस्सा है जिसमें वो पाकिस्तान की सांप्रदायिक चेतना पर सवाल उठा रहे हैं.

(साभार न्यूज़ 18)