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रोहिंग्या मुसलमानों को अपने देश में क्यों नहीं रखना चाहता भारत?

म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का मामला पेचीदा है. म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को आतंकी मानकर उनका सफाया कर रही है

Aparna Dwivedi

रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण देने के मामले ने तूल पकड़ा है. एक तरफ मानवाधिकार संगठन भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि इन शरणार्थियों को देश में ही रहने दिया जाए वहीं सरकार का मानना है कि रोहिंग्या मुसलमान अवैध प्रवासी हैं और इसलिए कानून के मुताबिक उन्हें बाहर किया जाना चाहिए. अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है.

सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या शरणार्थियों की तरफ से दायर एक याचिका में कहा गया कि रोहिंग्या मुसलमानों का प्रस्तावित निष्कासन संविधान धारा 14(समानता का अधिकार) और धारा 21 (जीवन और निजी स्वतंत्रता का अधिकार) के खिलाफ है. अब सवाल ये उठता है कि भारत सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों निकालना चाहती है? लेकिन इससे पहले ये जाने कि ये रोहिंग्या मुसलमानों का मसला क्या है?


कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान

रायटर इमेज

इतिहासकारों के मुताबिक रोहिंग्या म्यांमार में 12वीं सदी से रहते आ रहे मुसलमान हैं. रोहिंग्या सुन्नी मुस्लिम हैं, जो बांग्लादेश के चटगांव में प्रचलित बांग्ला बोलते हैं. अपने ही देश में बेगाने हो चुके रोहिंग्या मुसलमान को कोई भी देश अपनाने को तैयार नहीं. म्यांमार खुद उन्हें अपना नागरिक नहीं मानता.

म्यांमार में रोहिंग्या की आबादी 10 लाख के करीब है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक करीब इतनी ही संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान सहित पूर्वी एशिया के कई देशों में शरण लिए हुए हैं.

रोहिंग्या को लेकर क्या है विवाद

रोहिंग्या समुदाय 12वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है. म्यांमार में सैन्य शासन आने के बाद रोहिंग्या समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को बाकायदा राजनीतिक फैसले का रूप दे दिया गया और उनसे नागरिकता छीन ली गई.

2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और बौद्धों के बीच व्यापक दंगे भड़क गए. तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है. रोहिंग्या घुसपैठी और म्यांमार के सुरक्षा बल एक-दूसरे पर अत्याचार करने का आरोप लगा रहे हैं. ताजा मामला 25 अगस्त को हुआ, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों ने दर्जनों पुलिस वालों पर हमला कर दिया. इस लड़ाई में कई पुलिस वाले घायल हुए, इस हिंसा से म्यांमार के हालात और भी खराब हो गए.

इस मसले से भारत कैसे जुड़ा

भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान हैं जो जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मौजूद हैं. चूंकि भारत ने शरणार्थियों को लेकर हुई संयुक्त राष्ट्र की 1951 शरणार्थी संधि और 1967 में लाए गए प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं इसलिए देश में कोई शरणार्थी कानून नहीं हैं.

भारत अनौपचारिक तौर पर अलग-अलग मामलों में फैसला लेता है कि किस शरणार्थी को शरण देनी है और किसको नहीं. भारत ने अब तक तिब्बती, बांग्लादेश के चकमा शरणार्थी, अफगानी और श्रीलंका के तमिल को शरण दी हैं. लेकिन सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को वो भारत में शरण नहीं देना चाहती. पूर्वोत्तर राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठ के चलते बने हालात भारत के लिए एक चेतावनी की तरह हैं.

सुरक्षा व्यवस्था की चिंता

जम्मू में रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय का एक बच्चा.

सरकार का कहना है कि रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं. सरकार का मानना है कि ये न सिर्फ भारतीय नागरिकों के अधिकारों पर कब्जा कर रहे हैं बल्कि सुरक्षा के मद्देनजर भी खतरा पैदा कर सकते हैं. सरकार को रोटी, कपड़ा और मकान की दिक्कतों से जूझती रोहिंग्या आबादी के आतंकी संगठनों के झांसे में आसानी से आ जाने की आशंका है.

सरकार को ऐसे खुफिया इनपुट भी मिले हैं कि आंतकी संगठन इन्हें अपने चंगुल में लेने की साजिश में लग गए हैं. ऐसे में सरकार भारत में शरण ले चुके 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थियों को संभावित खतरे के तौर पर देख रही है.

पड़ोसी देशों से रिश्ते

तिब्बत के बाद भारत और चीन के संबंधो में दिवार खड़ी हो गई थी. आज भी दोनों देशों में तिब्बत समस्या आंख की किरकरी बनी हुई है. ऐसे में जब भारत सभी पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंध सुधारने में लगा है तो म्यामांर से साथ रिश्ते सुधारना भी उसकी प्राथमिकता है.

कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने म्यांमार यात्रा की है. म्यांमार दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में मेल-जोल बढ़ाने की एक्ट एशिया नीति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है. भारत और म्यामांर के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ते हुए 2015-16 में 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है.

भारत म्यांमार के साथ व्यापार करने वाले शीर्ष के पांच देशों में एक है. म्यांमार भारत के प्रमुख रणनीतिक पड़ोसी देशों में शामिल है और यह उग्रवाद प्रभावित नगालैंड और मणिपुर सहित कई पूर्वोत्तर राज्यों के साथ 1,640 किमी लंबी सीमा साझा करता है.

म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का मामला पेंचीदा है. म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को आतंकी मानकर उनका सफाया कर रही है. म्यांमार यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि विवादित मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए.

म्यांमार के एक बौद्ध स्तूप में पीएम नरेंद्र मोदी. रायटर इमेज

प्रधानमंत्री के इस बयान से साफ हो गया कि भारत सरकार एक तय सीमा से आगे जाकर दखल नहीं देगी. अगर भारत रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में खुलकर सामने आता तो म्यांमार की तरफ से ये सवाल किया जाता कि पूर्वोत्तर राज्यों में आंदोलन करने वालों को भारत सरकार आतंकी मानती है, लेकिन रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर भारत सरकार उनसे इत्तेफाक नहीं रखती है.

भारत की चिंताएं वाजिब हैं. साथ ही साथ यह भी है कि यह एक बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी है. लेकिन ये भी तय है कि इस मुद्दे पर भारत को ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा शरणार्थी समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 11 सितंबर को है.