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मैं मोदी के साथ, उनके जैसा दिलेर दूसरा कोई नहीं !

ऐसा कोई और नेता नहीं है, जो वोटरों को नाराज करने की हिम्मत जुटा सके.

Sreemoy Talukdar

पिछले कुछ दिन बेहद कठिन गुजरे हैं. वाकई कठिन. रोजमर्रा की दिक्कतों के साथ-साथ बैंक जाकर नोट बदलने और एटीएम की लाइन में लगने का काम और आन पड़ा. मैं तो किसी तरह जद्दोजहद करके अपने पुराने और बेकार नोट बदल लाया.

इस अफरातफरी के महौल में भी अपने आपा खोए बगैर काम कर रहे बैंक कर्मचारी बधाई के पात्र हैं. जितनी मेहनत इन बैंक कर्मचारियों ने की है खराब एटीएम मशीनों ने व्यवस्था की पोल उतने ही पुरजोर तरीके से खोल कर रख दी है.


8 नवंबर के बाद से मेरी कोशिश रही है कि मैं अपने घरेलू खर्च ऑनलाइन ही करूं. शुक्र है किराना वाले गुप्ताजी मोबाइल ऐप के जरिए ई-पेमेंट ले रहे हैं. लेकिन एक बंगाली के लिए बिना मच्छी के रहना नामुमकिन है और मछली वाले के पास ऑनलाइन पेमेंट लेने की कोई सुविधा नहीं है.

टीवी न्यूज चैनल देश की गलत तस्वीर दिखा रहे हैं. चैनलों को देखकर लग रहा है जैसे देशभर में अराजकता का महौल हो. प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के बाद लोगों सें चिंता का महौल बना. धीमे-धीमे यह चिंता गुस्से और चिढ़ में बदल गई. जो कि स्वाभाविक है. देश की 86 फीसदी नोट एकाएक बेकार हो जाएं तो 125 करोड़ लोगों को तकलीफ तो होगी.

नोटबंदी का फैसला इतना आसान नहीं था

नोटबंदी का काम जितना व्यापक है इसके लिए पहले से तैयारी करना घातक हो सकता था. सरकारी सिस्टम से यह खबर बाहर आते देर नहीं लगती कि सरकार क्या करने जा रही है. इसे गुप्त बनाए रखना जरुरी था. जाहिर है ऐसे में लोगों को परेशानी होना लाजमी है.

आखिर यह परेशानी है कितने दिनों के लिए?

पैसा नहीं होने से आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है. अर्थव्यवस्था रुक गई है. इस बीच पीएम ने एक बार फिर 50 दिनों के लिए भारतवासियों को साथ देने की अपील की है.  मोदी ने देश के कालेधन को खत्म करने के लिए 30 दिसंबर तक दिक्कत होने की बात कही.

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मोदी का ऐसा कहना जायज है? और क्या हमें उन्हें इतना समय देना चाहिए?

नोटबंदी में आर्थिक और नैतिक दोनो नजरिए आपस में घुले-मिले हैं. इन्हें दोनों तरीकों से देखा जा सकता है.

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जीडीपी का लगभग 20 प्रतिशत काला धन है. लेकिन कई अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं हैं. उनका तर्क है कि केवल 2.5 फीसदी नागरिक ही टैक्स जमा करते हैं. ऐसे में काले धन का आंकड़ा विश्व बैंक के दावे से कही ज्यादा है. देश चलाने का सारा बोझ चंद टैक्स देने वालों के सिर आ पड़ी है.

रिलायंस में न्यू मीडिया डायरेक्टर और लेखक, पत्रकार गौतम चिकरमाने अपने फेसबुक पोस्ट में कहते हैं ‘इस देश में टैक्स देने वालों का माखौल उड़ाया जाता है. कालाधन और भ्रष्टाचार हमारी संस्कृति बन चुका है. नेताओं ने इसे अपने जेब भरने के लिए शुरू किया था लेकिन अब इसकी जड़ें हमारे समाज में हर कोने तक पहुंच गईं हैं. टैक्स देने वालों को भ्रष्टाचार मुंह चिढ़ाते हैं. हमारे काले कारनामों में या तो शामिल हो जाओ या फिर गरीबी में मरो. हम अपने ही देश में बेगाने हो गए हैं. क्योंकि हम टैक्स देते हैं‘.

नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को होने वाले फायदे

प्रधानमंत्री ने इसकी जड़ पर प्रहार किया है. जहां से भ्रष्टाचार की शाखाएं निकलती हैं उसकी जड़ी ही काट दी गई है. कालेधन की अर्थव्यवस्था में कई बड़े कारोबार चलते हैं. मोदी ने न केवल इसे ध्वस्त किया है बल्कि जाली नोट के कारोबार को भी एक झटके में समाप्त कर दिया है.

नगदी पर चलने वाली इस समानांतर अर्थव्यवस्था को रोक पाना आसान नहीं होता. दुनिया के बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों ने अपने शोध में  पाया है कि जिस देश में नगदी का चलन ज्यादा होता है वहां भ्रष्टाचार होने की आशंका भी अधिक रहती है. और इसकी मार गरीब पर सबसे ज्यादा पड़ती है.

नोटबंदी कालेधन पर शत-प्रतिशत रोक लगाने की गारंटी नहीं है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सरकार को कैशलेस सोसायटी बनाने का मौका देगा. इस मौके का फायदा उठाकर सरकार ज्यादा सुरक्षित और भरोसेमंद व्यवस्था बनाने पर काम करेगी.

इसके जरिए सरकार काले धन से चलने वाले कारोबार को नुकसान वाला काम बना देगी. कालेधन का इस्तेमाल अब पहले से ज्यादा जोखिम भरा होगा.

ब्रुकिंग्स इंडिया की शोधकर्ता शामिका रवि ने लाइवमिंट में लिखा:

‘कई विशेषज्ञ मानते हैं कि हिन्दुस्तानी इसका तोड़ भी निकाल लेंगे. जो कि कुछ हद तक सही है. सरकारी अधिकारियों को घूस देना, आपराधिक गतिविधि करना या अवेध लेन-देन करना 500 और 1000 रुपए के नोट के बिना भी मुमकिन है. तो क्या यह कदम भारत से भ्रष्टाचार और काला धन खत्म करने में कारगर साबित होगा? नहीं. लेकिन अब यह ज्यादा खर्चीला होगा. जोखिम भरा भी होगा. काले कारोबारी अब अधिक जोखिम उठाकर कम फायदे वाले काम करने पर मजबूर होंगे. इससे अर्थव्यवस्था में कई तरह के अवैध लेन-देन बंद होंगे और भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी’.

मैं मोदी के साथ इसलिए हूं

केवल किसी मोदी भक्त की तरह अपने महान नेता की अंधभक्ति में नहीं. बल्कि आरके पुरम के उस चायवाले की तरह मोदी का समर्थन करता हूं जिसकी बिक्री कम हो गई है. घंटो लाइन में लगे रहने के बावजूद नोटबंदी के साथ खड़े बुजुर्गों की तरह, मोबाइल पेमेंट शुरु करने पर मजबूर हुए किराने वाले की तरह, अच्छे भविष्य के लिए थोड़े से पैसों के लिए बैंक में खड़ी गृहणी की तरह और ऐसे ही उन सबकी तरह जो भ्रष्टाचार की व्यवस्था को तोड़ना चाहते हैं.

उन बुर्जुआ और तथाकथित उदारवादियों की मैं नोटबंदी को नकारुंगा नहीं. जो पूरी व्यवस्था को अपने फायदे के लिए कभी भी तोड़ मरोड़ देते हैं.

गरीब मध्यम वर्ग इस व्यवस्था से परेशान हैं. वह अपनी ईमानदारी और समर्पण की कीमत चुका रहा है. पीएम के फैसले ने इन्हें लड़ने का हौसला दिया है. इन्हें भरोसा दिया है कि व्यवस्था में बदलाव हो सकता है.

इस वर्ग को यह भरोसा हुआ है कि अब बुद्धिजीवियों की बात मान कर देश के लिए कुछ करने का वक्त गया. अब वो खुद राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं. मंदी की मार का डर उन्हें नहीं सता रहा है. उन्हें इस बात का इत्मिनान है कि कुछ दिन की तकलीफ झेल कर वो अपने सपनों का बेहतर भारत बनाने में पीएम की मदद कर रहे हैं.

मैं मोदी का समर्थन करता हूं. क्योंकि मैने ऐसा कोई और नेता नहीं देखा जो व्यापक राष्ट्रहित के लिए अपने वोटरों को नाराज करने की हिम्मत जुटा सके. मोदी ने इस फैसले से पहले अपना राजनीतिक नफा-नुकसान कर लिया होगा. इस योजना से होने वाले जोखिम का हिसाब भी मोदी ने किया होगा.

मैं मोदी का सर्मथन करता हूँ क्योंकि उन्होंने दिलेरी दिखाई है.