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गोवा मतलब ड्रग्स या ज्यादा सुरक्षित लड़कियां?

सोसायटी एक स्प्रिंग की तरह होती है, जिसे जितना दबाओ, वो उतना उछलता है. हमारे देश के साथ भी वैसा ही हुआ लगता है

Tulika Kushwaha

आप गोवा का नाम लेते हैं तो आपके दिमाग में क्या आता है? ड्रग्स, बीयर, बीच और बिकिनी. और दिल्ली का? पॉलिटिक्स, सरकार, मल्टीनेशनल कंपनियां और जॉब. लेकिन क्या हो अगर तस्वीर बदल जाए. दिल्ली के नाम से रेप, मर्डर और धोखाधड़ी याद आए और गोवा एक सुरक्षित जगह के तौर पर पहचाना जाए. क्योंकि तस्वीर बदल गई है.

देश का एक तबका ऐसा है, जिसे दिल्ली के नाम से निर्भया की याद आती है और एक सर्वे ने ये बात साबित कर दी है कि दिल्ली लड़कियों के लिए सेफ नहीं है. वहीं गोवा देश में लड़कियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह के तौर पर सामने आया है.


बिहार से बस एक पायदान ऊपर है दिल्ली

चाइल्ड डेवलप्मेंट एनजीओ प्लान इंडिया द्वारा जारी किए गए जेंडर वर्नेबिलिटी इंडेक्स (GVI) में गोवा को लड़कियों के लिए देश का सबसे सुरक्षित राज्य बताया गया है. इस लिस्ट में बिहार सबसे नीचे है और हां, दिल्ली बिहार से बस एक पायदान ऊपर है यानी नीचे से दूसरे नंबर पर. एक और बात जो दिमाग में रखनी चाहिए वो ये है कि लड़कियों के लिए सुरक्षित राज्यों में मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम जैसे दूर दराज के राज्यों का नाम भी है.

जेंडर वलनर्बिलिटी इंडेक्स (जीवीआई) महिलाओं की जिन चुनौतियों को दिखा रहा है, उनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी और हिंसा से बचाव है.

गोवा मतलब ड्रग्स?

सोचिए, अब अपनी पुरानी सोच के बारे में. लड़कियां ज्यादा खुलेंगी तो बिगड़ जाएंगी, बड़े शहरों में जाएंगी तो बिगड़ जाएंगी, गोवा लड़कियों के लिए बुरी जगह है और आखिरी... गोवा मतलब ड्रग्स, विदेशी और खतरा.

ठीक है कि निर्भया कांड के बाद दिल्ली को रेप कैपिटल के नाम से पुकारा जाने लगा लेकिन सब जानते हैं कि बदलाव नहीं आया है.

लेकिन जो अहम सवाल है वो ये कि इतना विरोधाभास क्यों? गोवा की संस्कृति भारत की तथाकथित संस्कृति से मेल नहीं खाती है. फिर लड़कियां वहां इतनी सुरक्षित कैसे हैं? वहीं भारत का दिल माने जाने वाली दिल्ली इतनी काली क्यों है? इसका एक जवाब हो सकता है सोसाइटी और सोसाइटी की सोच.

स्प्रिंग है सोसाइटी

मुझे लगता है सोसाइटी एक स्प्रिंग की तरह होती है, जिसे जितना दबाओ, वो उतना उछलता है. उसी तरह नियम कायदों को जितना कड़ा करो, चीजें उसी तरह हाथ से फिसलती हैं. हमारे देश के साथ भी वैसा ही हुआ लगता है.

सोसाइटी की सोच से ही शिक्षा, स्वास्थ्य और लोगों के सुरक्षा स्तर पर बदलाव आता है. सोसाइटी जितनी खुलती है, बात करने की जगह बनाती है और सबको बराबरी का अधिकार देती है, वहां उतना ही भरोसा और सुरक्षा की भावना जगती है.

लड़कियों की सुरक्षा की संवेदना ही बन रही खतरा

आखिर क्यों लड़कियों के लिए असुरक्षित राज्यों में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों का नाम है? यहां के लोग तो लड़कियों की सुरक्षा को लेकर बड़े संवेदनशील होते हैं. है न? फिर लड़कियां सुरक्षित क्यों नहीं? यहां तो लड़कियों को घरों में रखने की परंपरा निभाई जाती है, फिर घर में उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं मिलती? बाहर तो उन्हें ज्यादा खतरा है, है न? फिर इतनी खुली सोच रखने वाला गोवा लड़कियों को इतनी सुरक्षा कैसे दे पाता है? वहां छोटे कपड़ों में घूम रही लड़कियों के रेप क्यों नहीं हो जाते?

ऐसा नहीं है कि गोवा पूरी तरह साफ है और दिल्ली पूरी तरह बदनाम. दोनों के ही अपने कमजोर और मजबूत पक्ष हैं लेकिन फिर भी ये विरोधाभास हैरान करता है. भारतीय संस्कृति के नाम पर जो पैमाने पेश किए जाते हैं, वो इस विरोधाभास के आगे बौने रह जाते हैं.

तो फिर आखिर हम कब तक दिल्ली के नाम पर निर्भया और गोवा के नाम पर ड्रग्स जैसी बुरी छवि से बंधे रहेंगे?