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अफ्रीकियों पर हमले जारी: काले रंग से इतनी नफरत क्यों है?

काले रंग से घृणा का भाव तभी खत्म होगा जब नजरिया बदलेगा. ऐसी सोच आएगी कि अच्छे या बुरे का कोई रंग नहीं होता.

Prabhakar Thakur

भारत में अफ्रीकी नागरिकों की सुरक्षा कभी भी खतरे में आ सकती है. रह-रहकर उनके पीटे जाने का मामला सुर्खियां बन जाता है. ताजा मामला है दिल्ली के मालवीय नगर का जहां एक नाइजीरियाई शख्स की बेरहमी से पिटाई कर दी गई. इस व्यक्ति पर चोरी का आरोप था लेकिन बजाय इसके कि पुलिस उसपर कोई कार्रवाई करती, लोगों ने उसे किसी जानवर की तरह रस्सी से बांधकर जम कर पीटा.

यह व्यक्ति कसूरवार है या नहीं यह तो पता नहीं पर सिर्फ अपनी भड़ास निकालने के लिए भीड़ ने एक व्यक्ति पर इस तरह जुल्म किया. हमला भी ऐसे व्यक्ति पर जो 'कमजोर' हो, दिखने में अन्य लोगों से अलग हो और अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर हो.


लेकिन भारत में अफ्रीकी नागरिकों पर ऐसा हमला चौंकता क्यों नहीं है? क्या आपने कभी सुना है कि भीड़ ने किसी यूरोपियन नागरिक को पीटा? शायद नहीं. अफ्रीकी नागरिक, जिनकी चमड़ी काली होती है, तथाकथित रूप से बुरे लोग मान लिए जाते हैं. इस तरह के हमले हमारे समाज की सोच के स्तर को दिखाते हैं. खुद को गोरा बनाने के वाली क्रीम का भारत में $450 मिलियन का बिजनेस यूं ही नहीं है.

एक काले रंग के व्यक्ति को देखते ही हमारे मन में यही छवि उभरती है कि सामने वाला 'बुरा' है. दिल्ली में ऐसे हमलों की लिस्ट लंबी है. किसी काले व्यक्ति को दिल्ली मेट्रो में पाकर कोई यह कहता हुआ मिल जाएगा कि 'देख, राक्षस जैसा दिख रहा है.'

हम ऐतिहासिक रूप से नस्लवादी

उस व्यक्ति के मन में यह बात यूं ही नहीं आती. ऐतिहासिक रूप से हम काले रंग से नफरत करते हैं. हमारे धार्मिक सिनेमाओं और सीरियलों में देवता गोरे और दानव काले होते हैं. फिल्मों में विलन भी काला ही होता है. हर किसी को खुद की चमड़ी गोरी ही चाहिए. ऐसा माहौल ही तो काले व्यक्ति से भेदभाव की जमीन तैयार करता है.

अगर ऐसा न होता तो दिल्ली समेत पूरे देश में उनपर हमले ना होते. लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि जब भारतीय पश्चिमी देशों में जाते हैं तो हमारे नागरिकों पर भी उनके रंग के कारण ही भेदभाव की खबरें आती है.

मार्च में ग्रेटर नोएडा में केन्या की एक महिला को टैक्सी से बाहर निकाल कर पीटा गया. इसी इलाके में एक मॉल में घुस कर नाइजीरिया के नागरिक की धुनाई की गई. ये हमले इसलिए कि उनपर ड्रग्स की तस्करी का आरोप था. लेकिन इन मामलों में बजाय पुलिस, भीड़ ने अपनी अलग ही कार्रवाई कर दी.

इनके बाद वक्त-वक्त पर विरोध मार्च भी निकाले गए हैं पर हमले लगातार जारी हैं.

पिछले सालों में अफ्रीकी देशों से भारत में पढ़ने को आने वाले छात्रों की संख्या के साथ ही उनपर हमले भी बढ़े हैं. इससे पहले भी 2014 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 3 अफ्रीकी छात्रों को पीटा गया. 2016 में तंजानिया की एक नागरिक को बेंगलुरु में पीटा गया और उसके कपड़े उतार दिए गए.

अफ्रीकी देशों में हमारे खिलाफ भावना

ये घटनाएं हमारे लिए शर्मनाक तो हैं ही, इन हमलों से अफ्रीकी देशों में भारत के लिए कोई अच्छी भावना तो पैदा होती नहीं है. इस साल ग्रेटर नोएडा में करीब 100 लोगों की भीड़ द्वारा 5 नाइजीरियाई नागरिकों को पीटे जाने पर नाइजीरिया में भारत के उच्चायुक्त को समन किया गया था और यहां उनके राजदूत ने भी इसपर कड़ा विरोध जताया था.

हाल फिलहाल ही राष्ट्रपति कोविंद 2 अफ्रीकी देशों की अपनी यात्रा से लौटे हैं. इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अभी अफ्रीका यात्रा के दौरान उन्हें सुरक्षा का आश्वासन दिया था.

जहां एक ओर ये घटनाएं हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे उदाहरण भी हैं जहां चर्चित हस्तियों ने रंग के कारण भेदभाव को ठेंगा दिखाया है और फेयरनेस क्रीम की एड करने से मना कर दिया था. विराट कोहली अभय देओल और कंगना रनौत जैसे सेलिब्रिटीज इसकी वकालत की है.

काले रंग से घृणा का भाव तभी खत्म होगा जब नजरिया बदलेगा. ऐसी सोच आएगी कि एक व्यक्ति अपने चमड़े के रंग से कहीं ज्यादा है. यह भी कि अच्छे या बुरे का कोई रंग नहीं होता.