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कौन हैं भगवान अयप्पा? हिंदू जितना जानते हैं सिर्फ उतना ही नहीं है

सबरीमाला के भक्त और इस परंपरा के स्वघोषित रक्षक, भगवान अयप्पा को लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार शिव और मोहिनी के पुत्र के रूप में जानते हैं. अयप्पा पांडलम साम्राज्य के राजकुमार हैं जो अपनी जनता को भैंसे के सिर वाले राक्षस से बचाते हैं और तपस्या करते हैं

FP Staff

सबरीमाला में भगवान अयप्पा अपने महल में एकांतवास करते हैं. धर्म शस्ता के तौर पर वह अनंत ब्रह्मचारी है. वह बेहद उदार हैं. हजारों तीर्थयात्री पथरीले रास्ते पर चलकर उनके दर्शन के लिए आते हैं. अयप्पा मोक्ष का भी रास्ता हैं. अयप्पा की प्रतिमा की मुद्रा त्याग के अंतिम चरण को दर्शाता है.

लेकिन 60 किलोमीटर दूर स्थित अचंकोविल सस्थ मंदिर में अयप्पा एक बहुत ही अलग अवतार में होते हैं. पांच सास्थ मंदिरों में से एक, जिसमें सबरीमाला भी शामिल है. वहां उनके दोनों तरफ दो पत्नियां बैठी हैं. लेकिन वह किसी और ही चीज में खोए हैं. रोजमर्रा की जिंदगी के मामलों में उलझे हैं. घने जंगलों के बीच बसे इस मंदिर में अयप्पा मुख्य रूप से सांपों के काटने का इलाज करने वाले हैं. वो एक हाथ में थेरथम (पवित्र जल) और दूसरे में भस्म (पवित्र राख) के साथ बैठते हैं. चाहे दिन या फिर रात, अगर कोई सांप का काटा हुआ व्यक्ति आता है तो पुजारी मंदिर का दरवाजा खोलता है उसके घाव पर राख लगाता है.


असली अयप्पा कौन है? टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सबरीमाला के भक्त और इस परंपरा के स्वघोषित रक्षक, भगवान अयप्पा को लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार शिव और मोहिनी के पुत्र के रूप में जानते हैं. अयप्पा पांडलम साम्राज्य के राजकुमार हैं जो अपनी जनता को भैंसे के सिर वाले राक्षस से बचाते हैं और तपस्या करते हैं. इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला. इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है.

क्या कहते हैं इतिहासकार?

इतिहासकार राजन गुरुक्कल के मुताबिक अयप्पा अय्यनार या फिर जंगल के देवी देवताओं के रखवाले थे. उन्हें बाद में हिंदू संस्कृति और मान्यताओं का हिस्सा मान लिया गया. राजन के मुताबिक अयप्पा को लोकप्रियता लगभग 50 साल पहले बढ़ी. जब थजहॉमन परिवार जिसे अब थंत्री परिवार के नाम से जाना जाता है, ने मंदिर पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. तब सबरीमाला एक छोटा सा पहाड़ी पूजा स्थल हुआ करता था. वही अब एक भव्य मंदिर की शक्ल ले चुका है. जून 1950 की कुख्यात आग थजहॉमन परिवार (वर्तमान थंत्री परिवार) के लिए मंदिर में जाने और उसके नियंत्रण को अपने हाथ में लेने का मौका था.

प्रतीकात्मक

हालांकि गुरुक्कल, कालांतर में सबरीमाला के बौद्ध विहार होने अटकलों को खारिज कर रहे हैं. उनका कहना है कि 'साबरीमाला पर बौद्ध प्रभाव का कोई पुरातात्विक सबूत नहीं है' और यह उस समय के सामान्य व्यापार मार्गों से बहुत दूर है. सास्थ मंदिरों में सांप देवताओं की उपस्थिति जैन धर्म के पारसनाथ पंथ का प्रभाव दिखाती है. जैन धर्म का पारसनाथ पंथ केरल में बहुत प्रचलित है. वो यह मानते हैं कि दिलचस्प रुप से लगभग सभी प्रमुख सास्थ मंदिरों में 'आग की घटना' हुई हैं. जिसकी वजह से मूल मूर्ति या मूल संरचना नष्ट हो गई थी. अब चाहे वे दुर्घटनाएं हों या नहीं, लेकिन इतिहासकारों का कहना है कि इसकी वजह से महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संकेत जरुर मिट गए हैं.

सास्थ का तमिलों के साथ संबंध स्पष्ट है. हालांकि इसे सबरीमाला की कहानी से बाहर कर दिया गया है. वास्तव में, सबरीमाला में अयप्पा के लोकप्रिय मिथक और मदुरै में महान देवी मीनाक्षी के बीच बहुत सी समानताएं हैं. दोनों ही ने शैववाद और वैष्णववाद का उस समय प्रतिनिधित्व किया जब इन दोनों संप्रदायों के बीच की प्रतिद्वंद्विता ने दक्षिण भारत में हिंदू धर्म को लगभग खत्म ही कर दिया था. लेकिन अगर इसे अधिक बारीकी से देखे, तो कालीकट विश्वविद्यालय के एक इतिहासकार प्रोफेसर के एन गणेश कहते हैं, 'सबरीमाला के अयप्पा की निकटता अय्यनार के साथ दिखती है.'