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जानिए कौन थीं हिंदुत्व ब्रिगेड का विरोध करने वाली पत्रकार गौरी लंकेश

वरिष्ठ पत्रकार और नक्सलियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता गौरी लंकेश की बेंगलुरु स्थित उनके घर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई

FP Staff

वरिष्ठ पत्रकार और नक्सलियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता गौरी लंकेश की बेंगलुरु स्थित उनके घर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई. लंकेश बेंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर में रहती थीं. वीकली कन्नड़ टैबलॉयड 'गौरी लंकेश पत्रिका' की संपादक और वामपंथी विचार रखने वाली गौरी अपनी बात स्पष्ट रूप से सभी के सामने रखती थीं. वो नक्सल समर्थक भी थीं और जो नक्सली समाज की मुख्य धारा में लौटना चाहते हैं, उनके पुनर्वास के लिए काम भी कर चुकी थीं.

कौन थीं गौरी लंकेश?


1962 में जन्मी गौरी लंकेश के पिता पी लंकेश भी एक पत्रकार थे. उनके पिता कन्नड़ में 'पत्रिका' नाम से एक साप्ताहिक पत्रिका निकालते थे. पिता के निधन के बाद गौरी इसकी संपादक बनीं. लेकिन बाद में भाई इंद्रजीत के साथ विवाद बढ़ने के कारण उन्होंने 'पत्रिका' से नाता तोड़ लिया और अपनी खुद की कन्नड़ साप्ताहिक 'गौरी लंकेश पत्रिका' की शुरूआत की.

उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत बैंगलुरू में ही एक अंग्रेजी अखबार से की थी. कुछ वक्त काम करने के बाद वो दिल्ली चली गईं. लेकिन कुछ साल बाद ही वो दिल्ली से लौट आईं और बैंगलुरू में ही 'संडे' नाम की एक मैगजीन में उन्होंने करीब 9 साल तक बतौर कॉरेसपॉन्डेंट काम किया.

बीजेपी नेताओं से थी अनबन

23 जनवरी, 2008 में गौरी की पत्रिका में एक खबर छपी थी. जिस पर बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी और पार्टी पदाधिकारी उमेश दोषी ने आपत्ति जताई थी और गौरी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था. इसी मामले में 2016 में कोर्ट ने गौरी को दोषी करार दिया था. उन्हें छह महीने जेल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उन्हें उसी दिन जमानत मिल गई थी. जिस दिन उन्हें सजा सुनाई गई थी.

गौरी खुलेतौर हिंदूत्ववादी राजनीति का विरोध करती थी. उन्हें हिंदूत्व ब्रिगेड के आलोचक के तौर पर भी जाना जाता था. उनका कहना था कि हिंदू किसी तरह का कोई धर्म नहीं है. बल्कि ये समाज का एक ऐसा सिस्टम है, जिसमें महिलाओं को कमतर आंका जाता है.