बजट के भाषणों को अमूमन नीरस और उबाऊ माना जाता है. अन्य राजनीतिक भाषणों की तरह यहां विपक्षियों पर तंज कसने की जगह कम होती है. खासकर भाषण के दौरान आंकड़ों के बीच शेरो-शायरी या कविताओं के लिए यहां कोई जगह नहीं है.
इकनॉमिक टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, पिछले कुछ बजटीय भाषणों में कई वित्त मंत्रियों ने शेरो-शायरी और कविताओं का प्रयोग अपने उबाऊ भाषणों को मजेदार बनाने के लिए किया है.
इन भाषणों में उर्दू शायर इक़बाल से लेकर तमिल कवि तिरुवल्लुवर की कविताओं का प्रयोग कई वित्त मंत्रियों ने किया है.
पिछले कई बजटीय भाषणों में अब यह रवायत सी हो गई है कि भाषण की शुरुआत या अंत कविता या शेरो-शायरी से हो रही है. इस वजह से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार अरुण जेटली से कविता सुनने को मिले.
नीरस माने जाने वाले मनमोहन सिंह ने भी की है शेरो-शायरी
इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है, कि अपने सपाट भाषणों के लिए प्रसिद्ध पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी वित्त मंत्री के तौर पर पेश किए गये अपने बजटीय भाषणों में कविताओं का प्रयोग किया है.
मनमोहन सिंह नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं और उनके इस कार्यकाल को उदारीकरण, बाजारीकरण और वैश्वीकरण के दौर के तौर पर भी जाना जाता है.
पेश है मनमोहन सिंह से लेकर अरुण जेटली सहित अन्य वित्त मंत्रियों द्वारा बजटीय भाषणों के दौरान पढ़ी गई कविताएं:
1. मनमोहन सिंह, केंद्रीय बजट 1991-92
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोम सब मिट गए जहां से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा (शायर: इक़बाल)
2. मनमोहन सिंह, केंद्रीय बजट 1992-93
कुछ ऐसे भी मंजर हैं तारीख की नजरों में,
लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई (कवि: मुज़फ्फर रज़मी)
3. यशवंत सिंहा, केंद्रीय बजट 2001-02
तकाजा है वक्त का की तूफान से जूझो,
कहां तक चलोगे किनारे किनारे (कवि: अज्ञात)
4. जसवंत सिंह, केंद्रीय बजट 2004-05
गरीब के पेट में दाना
गृहिणी की टुकिया में आना (कवि: अज्ञात)
5. ममता बनर्जी, रेलवे बजट 2011-12
हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता (शायर: अकबर इलाहबादी)
6. पी. चिदंबरम, केंद्रीय बजट 2013-14
कलंगथू कंदा वैक्कन थूलंगकथु थूक्कंग कदीनथू सेयल (कवि: तिरुवल्लुवर)
अर्थ: एक आदमी के पास साफ-साफ और सही तरीके से देखने वाली आंखें, दृढ़ इच्छाशक्ति और चौकस दिमाग होना चाहिए.
7. अरुण जेटली, केंद्रीय बजट 2015-16
कुछ तो गुल खिलाए हैं, कुछ अभी खिलाने हैं,
पर बाग में अब भी कांटे कुछ पुराने हैं. (कवि: अज्ञात)
8. अरुण जेटली, केंद्रीय बजट 2016-17
कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें,
लहर लहर तूफान मिले और मौज मौज मंझधार हमें.
फिर भी दिखाया है हमने और फिर यह दिखा देंगे सबको,
इन हालातों में आता है दरिया करना पार हमें. (कवि: अज्ञात)
अब इंतजार 1 फरवरी के अरुण जेटली के बजटीय भाषण का है. खासकर नोटबंदी के बाद इस वक्त पक्ष-विपक्ष के नेता एक-दूसरे पर पहले से ही शेरो-शायरी द्वारा तंज कस रहे हैं.
अरुण जेटली अपने पिछले दो बजटीय भाषणों में विपक्ष खासकर कांग्रेस को कविताओं से निशाने पर लिया है.