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जब अचानक योगी का रूप लेकर मां से भिक्षा मांगने पहुंचे थे आदित्यनाथ

एक बार आदित्यनाथ अचानक ही योगी का वेश धर अपनी मां से ही भिक्षा मांगने पहुंच गए, इसे देख उनकी मां स्तब्ध रह गई और आंखों से आंसुओं की धार बह निकली

Vijai Trivedi

पर एक युवा संन्यासी भिक्षा लेने के लिए खड़ा था. शरीर पर गेरुआ वस्त्र, घुटा हुआ सिर, दोनों कानों में बड़े–बड़े कुंडल और हाथ में खप्पर. घर की मालकिन आवाज सुन कर दरवाजे पर आईं तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. जहां थी, वहां स्थिर हो गईं, मौन, मुंह खुला तो लेकिन शब्द नहीं फूटे. आंखों से आंसुओं की धार बह निकली. जो सत्य साक्षात सामने खड़ा था उसे देखते हुए भी यकीन नहीं हो रहा था, या यकीन करने की हिम्मत नहीं थी शायद. लेकिन सत्य सनातन है, टाला नहीं जा सकता. सत्य ही तो था वो, मां के सामने उनका बेटा युवा संन्यासी के भेष में!

कल तक कॉलेज से लौटकर आते इस हंसते मुस्कुराते चेहरे को देखने की आदत थी, और आज उनका नौजवान बेटा अजय संन्यासी रूप में खड़ा था. मां का मन कहता कि यह मेरा बेटा नहीं हो सकता. लेकिन दिमाग जानता था कि ईश्वर जितना कठोर हो सकता है उससे भी कहीं कठोर हृदय हो गया था उनका बेटा. वही बेटा जो अपनी मां को बहुत प्यार तो करता था लेकिन इतना भी नहीं कि कह दे मां को, ये संन्यासी उनका बेटा नहीं है.


सत्य का अन्वेषण भावनाओं पर नियंत्रण की अपेक्षा रखता है. ये मार्ग दुरुह है, और इस मां के लाडले बेटे ने यही दुरुह मार्ग पकड़ लेने का निर्णय कर लिया था. उसे अपनी परवाह न रही थी, तो मां को कैसे गले लगाता! मां मन मसोस कर रह गई. भींचकर गले भी न लगा सकी, खुलकर रो भी न सकी.

बेटे ने स्थिर भाव से कहा, 'मां भिक्षा दीजिए!'

भर्राए हुए गले से मां ने कहा, 'बेटा ये क्या हाल बना रखा है? घर में ऐसी क्या कमी थी जो तू भीख मांग रहा है?'

'मां यह मेरा संन्यास धर्म है. योगी की भूख इसी भिक्षा से मिटती है. आप भिक्षा स्वरुप जो भी इस पात्र में देंगी, वही मेरे मनोरथ को पूरा करेगा.'

'पहले तुम अंदर तो आओ!'

युवा संन्यासी मां के आंसुओं से भी नहीं पिघला. बेटा ऐसा कठोर हो जाए तो मां पर क्या बीतती है! लेकिन इतना आसान नहीं समाज की रसधार को छोड़कर संन्यास की झाड़-झंखाड़ वाले कठोर रास्ते पर चलने का फैसला. उससे भी कहीं मुश्किल है अपने बेटे को छोड़ देना, उसके बिना जीना.

योगी ने कहा, 'नहीं मां! बिना भिक्षा लिए न तो मैं घर के अंदर आऊंगा और न ही यहां से वापस जाऊंगा. आप पहले मुझे भिक्षा दीजिए! मैं रमता जोगी हूं, आप मुझे भिक्षा दीजिए. फिर मैं प्रस्थान करूंगा.'

आंसुओं को छिपाती मां अंदर गई और जो समझ आया, उसने योगी के भिक्षापात्र में डाल दिया. भिक्षा लेते ही योगी आगे चल दिया. आवाज अब भी गूंज रही थी पहाड़ों के करीब पहुंचते बादलों तक. अलख निरंजन! सूरज बादलों में छिपने, पहाड़ के पीछे जाने की कोशिश करता दिखा. वैसे भी उसका उजाला बेमायने हो गया था मां के लिए.