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अचानक क्यों मचा शिमला में पानी के लिए हाहाकार, कौन है इसका जिम्मेदार?

लोगों की माने तो ये हालात कोई नए नहीं है. हर साल ये स्थिति होती है. बस फर्क इतना है हर साल जो पानी 3-4 दिन बाद आता था अब 10-15 दिन बाद आ रहा है

Aditi Sharma

हिमाचल प्रदेश की राजधानी जो कुछ दिनों पहले तक पर्यटकों के लिए स्वर्ग जैसी थी, वो वहां के लोगों के लिए ही नर्क में बदल गई है. शिमला में इस वक्त पानी की किल्लत से हाहाकार मचा हुआ है. लोग खाली बर्तन लेकर सड़कों पर लाइन लगा रहे हैं. पानी की आपूर्ति न हो पाने पर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. शिमला के लोग कई दिनों से इन हालातों से गुजर रहे हैं मगर हल अब तक नहीं निकल पाया. थक हार कर लोगों ने मंगलवार को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के घर का घेराव किया.

दरअसल इनका आरोप था कि बड़े-बड़े होटलों और वीआईपी घरों में पानी की सप्लाई पूरी हो रही है जबकि आम लोग पानी के लिए तिल-तिल कर मर रहे हैं. इसके अलावा पानी के बढ़ते संकट को देखते हुए वो पर्यटकों के आने पर भी रोक लगाने की मांग कर रहे हैं. पानी की कमी इस हद तक बढ़ गई है कि वो अब पर्यटकों के साथ भी पानी नहीं बांटना चाहते.


लोगों के हंगामे के बाद प्रशासन की नींद टूटी. हिमाचल प्रदेश की हाईकोर्ट ने  वीवीआई घरों में पानी सप्लाई बंद करवा दी. सीएम जयराम ठाकुर भी इस मामले में रोज बैठक कर रहे हैं. लेकिन इन सब के वाबजूद हालातों में कोई सुधार नहीं आ रहा. लोगों के हंगामे के बावजूद बुधवार को भी शिमला के ज्यादातर इलाकों में पानी की सप्लाई नहीं हुई.

जानकारी के मुताबिक शहर में केवल 18 एमएलडी पानी ही लिफ्ट किया जा सका जबकि यहां जरूरत 55 एमएलडी की होती है. औऱ जिन इलाकों में पानी की सप्लाई की गई उनका प्रेशर इतना कम था कि टंकियों तक पानी पहुंच ही नहीं पाया. शिमला के कुछ रास्ते ऐसे हैं कि वहां टैंकर नहीं पहुंच पाते तो लोग पैदल की बालटियां भर-भर कर लेकर जा रहे हैं.

लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं पानी के प्राइवेट ऑपरेटर

पानी की किल्लत से होटलों के मालिक भी अब खासा परेशान दिख रहे हैं. समस्या के चलते आधे होटल तो वैसे ही बंद हो चुके हैं लेकिन जिन होटलों में पर्यटक आकर ठहरे हैं वहां भी पानी कि सप्लाई नहीं हो पा रही है. मजबूरन होटल संचालकों को प्राइवेट टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. लोगों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अब प्राइवेट ऑपरेटरों ने भी पानी के दाम दोगुना बढ़ा दिए हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 4 हजार लीटर वाले जिस टैंकर का दाम पहले 2500 रुपए था अब वो 5000 रुपए में बेचा जा रहा है. इन सब के बावजूद पानी का टैंकर अगर पहुंच भी रहा है तो लोगों के बीच मारामारी की स्थिति पैदा हो रही है. हालातों को देखते हुए जिन लोगों ने एडवांस में होटल बुकिंग की हुई थी अब वो भी उन्हें कैंसिल करवा रहे हैं.

अचानक क्यों पड़ी पानी कि किल्लत

लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अचानक शिमला में पानी की स्थिति इस कगार तक कैसे पहुंच गई? क्या शिमला में ये हालात अचानक पैदा हुए हैं या शिमला इसके लिए तैयार नहीं था? अगर ये समस्या अचानक नहीं हुई तो प्रशासन अब तक हाथ पे हाथ रक कर क्यों बैठा था? ये कुछ सवाल इस वक्त हर किसी के जेहन में उठ रहे हैं.

लोगों की माने तो ये हालात कोई नए नहीं है. हर साल ये स्थिति होती है. बस फर्क इतना है हर साल जो पानी 3-4 दिन बाद आता था अब 10-15 दिन बाद आ रहा है.

दरअसल शिमला कभी निवास स्थान के तौर पर बना ही नहीं था. ये अंग्रेजों द्वारा 19वीं शताब्दी में बनाया गया था. उन्होंने गर्मी से बचने के लिए इस शहर की खोज की थी. उन्हें यह जगह इतनी पसंद आई की उन्होंने यहां शहर बसा दिया. उस समय ये शहर केवल 25 हजार लोगों के लिए बसाया गया था. लेकिन आज लोगों की जनसंख्या बढ़कर 2 लाख से ज्यादा पहुंच चुकी है. उसके अलावा हर साल 40 लाख टूरिस्ट शहर का बोझ और बढ़ा देते है. ऐसे में शहर में पानी की जरूरत से कम आपूर्ति इस समस्या का मुख्य कारण है.

शिमला और आस-पास के पानी की सप्लाई के पांच मुख्य स्त्रोत है, गुम्मा, गिरी, अश्वनी खड्ड, चूरट और सियोग. शिमला में पानी के लिए मुख्य स्त्रोत रही है अश्वनी खड्ड जो पिछले दो सालों से बंद है. बीबीसी के मुताबिक अश्वनी खड्ड के प्रदूषित पानी के चलते दो साल पहले शहर में पीलिया फैल गया था. इसमें 30 लोगों की मौत हो गई जिसके बाद इसकी सप्लाई पर रोक लगा दी गई.

इसके अलावा शहर में जितनी पानी की सप्लाई होती है उसमें से कई एमएलडी पानी पंपिंग और वितरण के दौरान बर्बाद हो जाता है. जिसके बाद बचा-खुचा पानी ही लोगों तक पहुंचता है.

कुछ लोगों से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि ये समस्या हर साल आती लेकिन इस साल कुछ ज्यादा हो रही है. पहले जहां पानी 2-3 दिन में एक बार आता था वो पानी अब 10-15 दिन में एक बार आ रहा है. लोगों का कहना है कि पानी सप्लाई की मशीनें भी खराब हैं, जिसकी वजह से ये समस्या अब और बढ़ गई है. इसके अलावा शहर में अंधाधुंध निमार्ण, नगर निगम की लाचार प्रणाली भी इस समस्या को और बढ़ा रही है.

प्रशासन अंधा बना रहा

शिमला को इस स्थिति से बचाया जा सकता था अगर प्रशासन ने ठीक समय पर उचित कदम उठाए होते. ये सच्चाई है कि प्रशासन किसी भी  मुद्दे पर तब तक ध्यान नहीं देता जब तक वो लोगों की जान पर न बन आए. शिमला में ये समस्या पिछले कई सालों से थी, अगर प्रशासन ने पहले ही इस बारे कोई ठोस कदम उठा लिए होते तो शायद लोगों को ये परेशानी न झेलनी पड़ती.

पानी की कमी को देखते हुए प्रशासन को शहर में निर्माण कार्यों पर रोक लगानी चाहिए थी. दूषित पानी को साफ करनावा चाहिए था, मशीनों की समय-समय पर जांच करवानी चाहिए थी मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. समस्या जब लोगों की जान पर बन आई तब जाकर हिमाचल की हाई कोर्ट ने शिमला के भवन निर्माण कार्य पर एक हफ्ते की रोक लगाने के आदेश दिए. वैसे जिस शहर के नगर निगम के मेयर लोगों को इस हालत में छोड़कर चीन चले जाएं उस शहर की ऐसी हालत पर हैरानी नहीं होती.

पानी का संकट दूसरे राज्यों में भी दे रहा है दस्तक

पानी कि किल्लत देश में कोई नई समस्या नहीं है. दिल्ली से लेकर बैंगलुरु तक कई शहरों में ये समस्या समय-समय पर आती रही है. ये समस्या कितनी बड़ी है इसका अनुमान विश्व बैंक कि एक रिपोर्ट से साफ पता लगाया जा सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक देश के 16 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिलता. 21 प्रतिशत रोगों के फैलने की वजह प्रदूषित पानी होता है. इसके अलावा देश में हर साल 500 बच्चें डायरिया से मरते हैं.

इन आंकड़ों को देखकर अब हैरानी नहीं होती. सब जानते हुए भी पानी बर्बाद हो रहा है. विकास के नाम पर जगह-जगह बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई जा रही है. पानी की मात्रा या गुणवत्ता तय करने के लिए कोई कोशिश नहीं होती. जल संरक्षण के लिए कोई तरीका नहीं ढूंढ़ा जा रहा. हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि लोग राजस्थान पानी के ड्रमों में ताला लगाकर रखने लगे हैं ताकि उनका पानी चोरी न हो जाए. ये सारे हालात प्रशासन के लिए चेतावनी है. अगर अब भी प्रशासन की नींद नहीं टूटी तो शिमला जैसे हालात हर राज्य में पैदा हो जाएंगें