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ऑगस्टा वेस्टलैंड केस: क्रिश्चियन मिशेल के प्रत्यर्पण से खुल सकते हैं बड़े राज

मिशेल से सख्ती से पूछताछ होने पर इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि इस बड़े रक्षा सौदे की दलाली मे शामिल लोगों के नाम उजागर होंगे.

Yatish Yadav

दुबई की एक अदालत ने सोमवार को ब्रिटिश दलाल क्रिश्चियन मिशेल के भारत को प्रत्यर्पण का आदेश दिया है. भारत की जांच एजेंसियों के लिए ये बड़ी कामयाबी है. मिशेल 3600 करोड़ के ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले का आरोपी है. माना जाता है कि इस घोटाले में शामिल नेताओं के नाम उजागर करने में मिशेल अहम रोल निभा सकता है.

मिशेल से इस सौदे के दूसरे दो दलालों-गाइडो हश्के और कार्लो गेरोसा के बारे में भी जानकारी मिलने की उम्मीद है. हिरासत में लेने के बाद मिशेल से पूछताछ में इस राज़ से पर्दा उठ सकता है कि इस सौदे को इटली की कंपनी को दिलाने के लिए 3 करोड़ यूरो की जो दलाली दी गई, वो किसे दी गई. इटली की एक अदालत के फ़ैसले से हमें ये बात मालूम है कि सौदे के लिए जो दलाली दी गई उसकी आधी रकम यानी 1.5 करोड़ यूरो, भारतीय नेताओं को दिए गए.


मिशेल ने बाद में गाइडो हश्के के हाथ से लिखे नोट में भारतीय नेताओं को रिश्वत देने की बात से इनकार कर दिया था. वैसे कहा तो ये जाता रहा है कि इस खरीद की सौदेबाजी में क्रिश्चियन मिशेल 2006 के बाद शामिल हुआ था. लेकिन फ़र्स्टपोस्ट के पास ये पुख्ता जानकारी है कि मिशेल इस सौदेबाजी में 2002 से ही शामिल था. उसी साल मार्च में एनडीए सरकार ने हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए आरएफपी (Request For Proposal) जारी किए थे.

फ़र्स्टपोस्ट के पास मौजूद इस सौदे से जुड़े खुफिया नोट के मुताबिक, मिशेल 3 से 5 मार्च 2002 के बीच भारत में था. इसी दौरान दुनियाभर से कंपनियों ने सरकार के आरएफपी के जवाब में अपने प्रस्ताव भेजे थे. इसके बाद 2003 में भी मिशेल 2 से 8 नवंबर के बीच और फिर 28 नवंबर से 15 दिसंबर 2003 के दौरान भारत में था. ये वही वक्त था, जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने एक बैठक बुलाई थी. इस बैठक में तय किया गया था कि हेलीकॉप्टर खरीद की शर्तों में इसके 4500 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरने की शर्त को अनिवार्य बनाया जाए.

इसके बाद ही ऑगस्टा वेस्टलैंड इस खरीद की सौदेबाजी में शामिल होने के काबिल बनी थी. दस्तावेज बताते हैं कि 2005 में क्रिश्चियन मिशेल 11 बार भारत आया था. इस दौरान हेलीकॉप्टर को लेकर वायुसेना, एनएसए, एसपीजी और रक्षा मंत्रालय के बीच सलाह-मशविरा हो रहा था. इटली के जांचकर्ताओं ने मिशेल को ऑगस्टा वेस्टलैंड और भारतीय दलालों के बीच का मुख्य बिचौलिया बताया था. इटली की अदालत के दस्तावेजों के मुताबिक, इस सौदे में दी गई दलाली की कुल 3 करोड़ यूरो की रकम में से मिशेल 1.8 करोड़ यूरो के लेन-देन के लिए जिम्मेदार था.

भारतीय जांच एजेंसियों का दावा है कि ग्लोबल सर्विसेज एफजेडई और वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर्स के बीच एक समझौता हुआ था. 1 फरवरी 2003 को हुई इस समझौते की जगह 1 फरवरी 2005 को एक नया समझौता हुआ. ये समझौता बाद में कई बार नए सिरे से किया गया. कुल मिलाकर ग्लोबल सर्विसेज एफजेडई को 2004 से जुलाई 2012 के बाच 61.6 लाख यूरो की रकम अदा की गई.

ये रकम, हेलीकॉप्टर की खरीद का ऑर्डर ऑगस्टा वेस्टलैंड को दिलाने के लिए रिश्वत देने के लिए दी गई. बाद में, ऑगस्टा वेस्टलैंड होल्डिंग्स लिमिटेड और ग्लोबल सर्विसेज़ एफजेडई के बीच 1 नवंबर 2006 को भी एक समझौता हुआ. इसके एवज में ग्लोबल सर्विसेज को 78.7 लाख यूरो की रकम नवंबर 2006 से जनवरी 2011 के बीच दी गई थी.

2013 में हेलीकॉप्टर सौदे में दलाली का केस दर्ज होने के बाद से ही भारतीय जांच एजेंसियां इस मामले की पड़ताल में तेजी से जुट गई थीं. जांच से जुड़े अधिकारियों का दावा है कि मिशेल ने हथियारों की दलाली का ये धंधा अपने पिता वोल्फगैंग मैक्स मिशेल रिचर्ड से विरासत में हासिल किया था. उसने भारत में अपने संपर्कों का खूब इस्तेमाल किया. आरोप तो ये भी लगे थे कि भारत ने फ्रेंच कंपनी डसाल्ट से मिराज लड़ाकू विमानों की खरीद का 2500 करोड़ का जो सौदा किया था, उसमें भी मिशेल का अहम रोल था.

2004 में जब मिशेल के पिता की कंपनी एंटेरा कॉरपोरेशन दिवालिया हो गई, तो मिशेल को ब्रिटेन में कारोबार करने से सात साल के लिए पाबंदी लगा दी गई थी. तब मिशेल ने दुबई में अपना धंधा शुरू किया. तब ही उसने ग्लोबल सर्विसेज़ एफजेडई नाम की कंपनी खोली थी.

भारत के जांच अधिकारियों को यकीन है कि मिशेल ने ही ब्रिटेन में 'बीटल नट होम लिमिटेड' नाम से अक्टूबर 2009 में कंपनी खोली थी. उसने ये कंपनी उस वक्त खोली थी जब भारत का रक्षा मंत्रालय मिराज विमानों की खरीद के लिए आखिरी दौर की बातचीत कर रहा था. सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने इस समझौते को 18 जनवरी 2010 को मंजूरी दी थी.

समझौते पर 8 फरवरी 2010 को दस्तखत किए गए थे. सौदे पर दस्तखत होने के एक हफ्ते बाद ही, यानी 15 फरवरी 2010 को बीटल नट होम लिमिटेड ने भारतीय मूल के दो ब्रितानी नागरिकों को कंपनी का डायरेक्टर बनाया था.

इटली की अदालत ने अपने फैसले में कई बार भारतीय नेताओं का जिक्र किया है. इनमें यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी का भी नाम आया है. इटली की अदालत के फैसले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी जिक्र है. इस मामले में अदालत ने फिनमेकेनिका के सीईओ गुसेप ओरसी को मुजरिम करार दिया था.

अदालत के फैसले के मुताबिक, ‘ओरसी ने अपने लोगों को कहा था कि वो इटली के प्रधानमंत्री मारियो मोंटी या राजदूत टेराचियानो से संपर्क करें, ताकि हेलीकॉप्टर सौदे के बारे में वो उसकी तरफ से मनमोहन सिंह से बात करें. कांग्रेस ने एनडीए सरकार पर आरोप लगाया था कि सरकार मिशेल पर इस बात का दबाव बना रही है कि वो इस मामले से छूटना चाहता है तो सोनिया गांधी का नाम ले.

ब्रिटेन की संस्था 'करप्शन वॉच' की हालिया जांच के मुताबिक, मिशेल ने इस बात से इनकार किया है कि उसने सौदे की दलाली देने के लिए हश्के के साथ मिलकर हाथ से लिखी एक लिस्ट तैयार की है. मिशेल का दावा है कि, 'हश्के जिस लिस्ट का दावा कर रहे हैं, वो तीन लोगों की मौजूदगी में तैयार हुई. इनमें से दो लोगों का कहना है कि उन्हें याद ही नहीं कि ऐसी कोई लिस्ट बनी थी. इसके अलावा मिशेल के कारोबारी सहयोगी मिस्टर सिम्स ने एक कानूनी हलफनामा देकर कहा है कि उसने किसी बजट शीट को नहीं देखा. मैंने खुद ऐसी कोई फेहरिस्त नहीं देखी.'

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘मिशेल ने कहा, 'ये बयान बिल्कुल गलत है कि मेरे समझौते में ये बात थी कि मैं भारतीय अधिकारियों को रिश्वत दूंगा. इटली के अधिकारियों ने मेरी गिरफ्तारी को इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि मेरे खिलाफ कोई दस्तावेजी सबूत नहीं थे. स्विस अधिकारियों ने भी मेरे खिलाफ केस खारिज कर दिया है.'

मिशेल ने ये भी कहा कि भारतीय एजेंसियां उसके प्रत्यर्पण के लिए जरूरी सबूत दुबई की अदालत के सामने नहीं पेश कर पाई हैं.

करप्शन वॉच की रिपोर्ट में मिशेल का कहना है, 'मुझे फरवरी 2017 में दुबई में उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब भारत के पीएम ने निजी तौर पर संयुक्त अरब अमीरात के शासकों से मुझ पर कार्रवाई करने को कहा. उस वक्त संयुक्त अरब अमीरात के शासक भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने दिल्ली आए थे. संयुक्त अरब अमीरात के प्रत्यर्पण कानून के हिसाब से जुर्म के सबूत कोर्ट के सामने पेश किए जाने चाहिए.

भारतीय अधिकारियों को मेरे खिलाफ सबूत पेश करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था. लेकिन भारतीय जांच एजेंसियों ने कोई सबूत अदालत के सामने नहीं रखा. उन्हें जब दोबारा सबूत पेश करने के लिए 30 दिन का वक्त दिया गया, तो, भी वो सबूत नहीं रख सके. उन्हें अदालत ने एक महीने का वक्त और दिया, मगर वो भी बेकार गया.'

अब एक साल बाद आखिरकार वो कानून की गिरफ्त में आ गया है. मिशेल से सख्ती से पूछताछ होने पर इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि इस बड़े रक्षा सौदे की दलाली मे शामिल लोगों के नाम उजागर होंगे.