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शाहबेरी का हादसा ग्रेटर नोएडा में अवैध निर्माण की महज़ झलकी भर है...क्यों सोई है योगी सरकार?

शाहबेरी हादसे ने ग्रेटर नोएडा में अवैध बिल्डिंग निर्माणों की पोल खोल कर रख दी है अगर समय रहते राज्य सरकार नहीं चेती तो भविष्य में ऐसे कई दुर्भाग्यशाली हादसों में मासूम लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ेगी

Ravishankar Singh

ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में मंगलवार रात हुए हादसे में मरने वालों की संख्या अब 9 हो गई है. हादसे के तीसरे दिन भी राहत और बचाव के लिए NDRF और ITBP की कई टीमें घटनास्थल पर जुटी रहीं. गुरुवार को रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान मलबे से एक और शव बरामद किया गया है. दूसरी तरफ हादसे के बाद इलाके में फ्लैट बुक कराने वाले लोगों ने बिल्डरों को तलाशना शुरू कर दिया है. लोग निर्माणाधीन साइट्स पर पहुंच कर अब बुकिंग कैंसिल कराना भी शुरू कर दिया है.

दिल्ली से सटे शाहबेरी गांव में मंगलवार रात को दो इमारतें गिर गई थीं, जिसमें एक निर्माणाधीन इमारत पर दूसरी बहुमंजिला इमारत गिर गई. बताया जा रहा है कि खराब मटीरियल के इस्तेमाल होने की वजह से छह मंजिला इमारत धराशाई हुई. इस हादसे के जिम्मेदार गंगा शरण द्विवेदी सहित चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वहीं और अभियुक्तों की गिरफ्तारी को लेकर यूपी पुलिस लगातार दबिश दे रही है.


शुरू हो चुकी सरकारी खानापूर्ति 

इस घटना के बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कई अधिकारियों को निलंबित और एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. योगी आदित्यनाथ ने मेरठ रेंज के आयुक्त को बिल्डिंग हादसे की जांच की जिम्मेदारी सौंपी है. यूपी सरकार ने हादसे में मारे गए लोगों को 2-2 लाख रुपए के मुआवजे का ऐलान किया है.

ग्रेटर नोएडा बिल्डर्स बायर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अन्नू खान फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए साल 2011 में ही यहां के किसानों ने जमीन अधिग्रहण रद्द कराने को लेकर इलहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था. हाईकोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा था कि जहां पर बिल्डर्स ने इमारत बनाना शुरू कर दिया है, उसको छोड़ कर खाली जमीन किसानों को वापस दे दी जाएं. जमीन तो किसानों को वापस मिल गई, लेकिन किसानों ने छोटे-मोटे बिल्डर्स के जरिए उस जमीन पर मकान बनाना शुरू कर दिया.'

अन्नू खान आगे कहते हैं, 'नोएडा अथॉरिटी को देखना चाहिए था कि उस जमीन पर किसान कैसे फ्लैट बना रहा है ? किसान को भी चाहिए था कि वापस की गई जमीन पर या तो खेती करते या फिर खुद अपना एक-दो मंजिला मकान बना कर रहते. अब उन किसानों ने बिल्डर्स के जरिए अवैध फ्लैट बनाने की शुरुआत कर दी. इसकी जिम्मेदारी तो ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की होनी चाहिए. इन आठ सालों में इन इलाकों में लाखों अवैध फ्लैट बन जाते हैं और अथॉरिटी सोती रहती है?’

बता दें कि ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी, खेड़ा और जलालपुर जैसे कई गांव ऐसे हैं, जहां पर इन बिल्डरों ने अपना साम्राज्य कायम कर रखा है. इन गांवों के आस-पास 100 से अधिक बिल्डरों के अवैध प्रोजेक्ट चल रहे हैं. जिस बिल्डिंग में यह हादसा हुआ है उस बिल्डिंग का मालिक गंगा सागर द्विवेदी के पास पहले से ही 10 से 12 प्रोजेक्ट बन कर तैयार हैं.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब इस इलाके में मकान बनाने की अनुमित नहीं थी तो ग्रेटर नोएडा आथॉरिटी ने छह-छह मंजिला इमारत बनाने की मंजूरी कैसी दी? शाहबेरी इलाके के भूमि अधिग्रहण को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2011 में रद्द कर दिया था. कोर्ट ने इस इलाके में किसी भी प्रकार के कोई निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी. इसके बावजूद यहां पर निर्माण कार्य जारी रहे. इस मामले में बिल्डर जितना दोषी है उससे कहीं अधिक दोषी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण, यूपी पुलिस और रजिस्ट्री विभाग के अधिकारी को बताया जा रहा है.

पिछले कुछ सालों से शाहबेरी, खेड़ा और बिसरख जैसे इलाकों में अवैध इमारतों का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है. इन इलाकों में कई छोटे-छोटे प्रॉपर्टी डीलर्स बिल्डर्स बन गए. इन लोगों ने नोएडा अथॉरिटी के भ्रष्ट अधिकारियों से मिलीभगत करके नक्शा पास कराने से लेकर आर्किटेक्ट की सलाह नजरअंदाज करते हुए कुकुरमुत्तों की तरह मकान बनाने लगे. इन बिल्डरों ने इमारतों में भूकंपरोधी और प्राकृतिक आपदा से बचने की जरूरत को भी नजरअंदाज कर दिया है.

बात सिर्फ शाहबेरी, बिसरख और खेड़ा इलाके की नहीं है. पूरे नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिल्डिंग माफियाओं का राज चलता है. हाल के दिनों में वर्चस्व को लेकर कई भू-माफियाओं की हत्या भी हुई है. अभी दो महीने पहले ही यूपी के सबसे बड़े भू माफियाओं में शुमार मोती गोयल की हत्या हो गई थी. मोती गोयल का भी आपारधिक इतिहास रहा है. गोयल के ऊपर नोएडा, ग्रेटर नोएडा, बुलंदशहर और गाजियाबाद में अरबों की जमीन कब्जाने का आरोप था. कुछ मामलों की जांच तो सीबीआई भी कर रही है.

जानकारों का मानना है कि बिल्डर्स और भूमाफियाओं ने कमीशनखोरी के दम पर नोएडा विकास प्राधिकरण, ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को अपने कब्जे में कर रखा है. अधिकारी इनके इशारे पर जमीन का लीज कैंसिल और अलॉट करते हैं. नतीजा यह होता है कि जहां बिल्डिंग नहीं बननी चाहिए वहां बहुमंजिला इमारत बन जाती है, जिसका खामियाजा इस तरह के हादसों के तौर पर सामने आता है.

अब सवाल यह उठता है कि इस हादसे के जिम्मेदार लोगों को यूपी सरकार सजा दिलवा पाएगी या फिर समय के साथ इस हादसे को भी लोग भुला देंगे. वैसे इस तरह के हादसों के बाद बड़े-बड़े अधिकारी तो बच कर निकल जाते हैं, पर छोटे कर्मचारियों को सजा मिल जाती है. इस केस के शुरुआती दिनों में भी इसी तरह के आसार नजर आ रहे हैं.

हादसे के तीन दिन बाद परिचित और रिश्तेदार मलबे में अपनों को तलाशते दिख रहे हैं. साथ में वो लोग भी आ रहे हैं जो किसी न किसी तौर पर बिल्डिंग में रहने वाले लोगों से जुड़े थे. इमारत को धराशायी देख रिश्तेदारों और दोस्तों का रो-रो कर बुरा हाल है. लेकिन, इन लोगों को शायद यह पता नहीं कि जल्दी से जल्दी पैसे कमाने की चाहत में इंसान कैसे इंसानियत भूल जाते हैं.

हादसों के ज्वालामुखी पर बैठा है ग्रेटर नोएडा

ग्रेटर नोएडा में बिल्डिंग हादसे के बाद अब इस बात का पूरा संदेह है कि आने वाले समय में ऐसी घटनाएं और देखने को मिलें. इसका कारण है कि यहां पर अवैध निर्माण चल रहा है. बहुमंजिला इमारतों को बनाने में मापदंडों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है. घटिया मटीरियल लगाकर इन इमारतों को बनाया जा रहा है. इलाके के लोगों का साफ कहना है कि स्थानीय प्रशासन और अथॉरिटी के कारण बिल्डिंग बाइलॉज का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है.