प्रसिद्ध सरोदवादक अमजद अली खान ने छह साल की उम्र में पहली बार प्रस्तुति दी और दशकों की संगीत साधना ने उन्हें ‘सरोद उस्ताद’ की संज्ञा दिलायी. उस्ताद का कहना है कि शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में किसी को तुरंत प्रसिद्धि नहीं मिल सकती.
खान ने कहा कि शास्त्रीय संगीत प्रस्तुति भविष्य में सूरज की किरण दिखने की उम्मीद के साथ एक अंधेरी सुरंग में घुसने की तरह है.
उन्होंने कहा, ‘हम एक ‘क्षणिक’ समय में हैं जहां हर कोई थोड़े ही समय में सुपरस्टार बनना चाहता हैं. यह संभव नहीं है, शास्त्रीय संगीत में शॉर्टकर्ट जैसा कुछ नहीं है. यह केवल कड़ी मेहनत, संघर्ष एवं समर्पण का नतीजा है. शास्त्रीय संगीत ना केवल मेरा पेशा बल्कि मेरा जुनून है, जीने का तरीका है.’
संगीत के लिए पूर्ण समर्पण चाहिए
खान ने कहा, ‘यह आगे सूरज की किरण दिखने की उम्मीद के साथ अंधेरी सुरंग में घुसने की तरह है. हमारे क्षेत्र में योजना बनाने की मंजूरी नहीं है. लेकिन अब युवा जानना चाहते हैं कि कैरियर में पांच साल बाद क्या होगा. हमें खुद को संगीत को समर्पित करने की मंजूरी थी.’
खान ने कहा कि ग्वालियर में छह साल की उम्र में प्रस्तुति देने के बाद उनका ‘असली सफर’ 12 साल की उम्र में शुरू हुआ और ‘भारत के हर नगर, शहर और राज्य ने मेरा विकास किया तथा मुझे वह बनाया जो आज मैं हूं. इसमें काफी समर्पण चाहिए.’
सरोद वादक ने अब अपनी नयी किताब ‘मास्टर ऑन मास्टर्स’ लिखी है जिसमें उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की 12 महान हस्तियों को श्रद्धांजलि दी है.