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UPA सरकार महीने में 7,500-9,000 फोन टैप करती थी: RTI में हुआ खुलासा

सरकार ने भी कहा था कि 2008 में यूपीए सरकार के आदेश में ही बदलाव करके एनडीए सरकार ने सर्विलेंस का आदेश पारित किया है

FP Staff

मोदी सरकार द्वारा लोगों के कंप्यूटर पर नजर रखने के लिए जांच एजेंसियों को तैनात करने के विवाद के बीच कांग्रेस सरकार की यूपीए सरकार पर भी निशाना लगता दिख रहा है. 2013 के एक आरटीआई के जवाब में पता चला कि यूपीए सरकार के समय हर महीने 7,500-9,000 फोन और 300-500 ईमेल अकाउंट की जासूसी की जाती थी.

ये जानकारी गृह मंत्रालय ने प्रोसेनजीत मंडल द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में दी है.


टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक 6 अगस्त 2013 को दिए गए आरटीआई के जवाब में कहा गया कि, 'सरकार द्वारा हर महीने औसतन 7,500-9,000 फोन और 300-500 ईमेल अकाउंट पर नजर रखने का आदेश सरकार द्वारा दिया जाता था.'

जवाब में उन दस केंद्रीय एजेंसियों के नाम भी दिए गए हैं जिन्हें सरकार द्वारा वैधानिक तरीके से ताकझांक करने की आजादी दी गई थी. इंटेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (सीबीडीटी), डायरेक्टरेट ऑफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई), सीबीआई, नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए), रॉ और कमिश्नर ऑफ पुलिस दिल्ली को ये अधिकार दिए गए थे.

सरकार ने यूपीए सरकार के आदेश को ही जारी किया:

इसके पहले सरकार ने भी कहा था कि 2008 में यूपीए सरकार के आदेश में ही बदलाव करके एनडीए सरकार ने सर्विलेंस का आदेश पारित किया है. शिवराज पाटिल के गृहमंत्री और ए राजा के टेलीकॉम मंत्री रहते हुए यूपीए सरकार ने ये फैसला लिया था. सरकार ने अपनी सफाई में ये भी कहा था कि 2009 में जब पी चिदंबरम गृहमंत्री और ए राजा टेलिकॉम मंत्री थे तभी आईटी एक्ट के सेक्शन 69 को फ्रेम किया गया था.

2011 में पी चिदंबरम के गृहमंत्री रहते हुए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) को जारी किया गया था. एसओपी के जरिए आईटी एक्ट के सेक्शन 69 और टेलीग्राफ एक्ट के सेक्शन 5(2) के तहत लोगों की बातचीत सुनना, कॉपी करना, उसे इस्तेमाल करना, उसे स्टोर करना, मैसेज नष्ट करना, टेलिफोन की बातचीत को सुनना और ईमेल पर नजर रखना शामिल है.