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गोरखपुर त्रासदी: डेढ़ करोड़ रुपए होने के बावजूद प्रिंसिपल ने नहीं किया भुगतान!

डीएम की रिपोर्ट और पूर्व प्रिंसिपल डॉ कफील खान के बारे में यूपी के डीजीएमई केके गुप्ता ने फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात की

Ravishankar Singh

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मासूम बच्चों की मौत के सबसे बड़े अपराधी के तौर उन्हीं डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिन पर बच्चों की जान बचाने की जिम्मेदारी थी. गोरखपुर के डीएम ने अपने जांच रिपोर्ट में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों पर कई आरोप लगाए हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य से लेकर नीचे तक के डॉक्टर और पदाधिकारी अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार और लापरवाही में डूबे थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल में बच्चे मर रहे थे, लेकिन डॉक्टरों के बीच कोई तालमेल नहीं था.


गोरखपुर के डीएम राजीव रौतेला की जांच रिपोर्ट कहती है कि जब 10 अगस्त को ऑक्सीजन सप्लाई की संकट से कॉलेज गुजर रहा था, तब प्रिंसिपल राजीव मिश्रा और एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डॉ सतीश कुमार ने मेडिकल कॉलेज छोड़ दिया था.

डीएम की जांच रिपोर्ट और कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल और इंसेफेलाइटिस वार्ड के नोडल इंचार्ज डॉ कफील खान के बारे में यूपी के डीजीएमई केके गुप्ता ने फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहा कि इन दोनों ने अगर समस्या का समाधान समय पर कर दिया होता तो ये नौबत नहीं आती.

बीआरडी कॉलेज में लगातार हो रही मौतों और कॉलेज प्रशासन के ढुलमुल रवैये को बदलने को लेकर फ़र्स्टपोस्ट ने केके गुप्ता से विस्तार से बात की.

बीआरडी कॉलेज पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में है. एक अस्पताल में जहां मरीजों का इलाज होना चाहिए, वह अस्पताल गलत कारणों से सुर्खियों में है. क्या आपको लगता है कि जिस तरह से कॉलेज के प्रिंसिपल और डॉक्टरों पर मरीजों की मौत का ठीकरा फोड़ा जा रहा है वह सही है?

देखिए, कॉलेज के प्रिंसिपल पर ही मुख्य तौर पर सारी जिम्मेदारी होती है कि वह कॉलेज को कैसे चलाए. कॉलेज का प्रिंसिपल संस्था का गाइड भी होता है, मोटिवेटर भी होता है और हर तरह से संस्था को आगे बढ़ाने में उसका योगदान होता है. डॉ मिश्रा के खिलाफ बहुत से विधायकों और जनता की तरफ से भी शिकायत की गई है. हमने नियम 151 के तहत उन पर कार्रवाई की सिफारिश की है.

ऐसे आरोप लग रहे हैं कि कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल राजीव मिश्रा की पत्नी डॉ पूर्णिमा शुक्ला पर कॉलेज के रोजमर्रा के कामकाज में दखल देती थी. आपकी जांच इस पर क्या कहती है?

जिस तरह का दखल पूर्णिमा शुक्ला करती थीं वह उचित नहीं था. इस बारे में जांच भी चल रही है. इस पर मुझे बहुत कुछ कहना उचित नहीं लगता. मुझे जहां तक पता चला है उसके मुताबिक वो दखल भी देती थी और आंतरिक रुप से लोगों से वसूली भी करती थी. जितने भी लीगल ट्रांजेक्शन होते थे उस सब की सूत्रधार वही थीं. मैं चाहता हूं कि इसकी भी जांच हो. हम इसके लिए प्रयासरत हैं.

ऐसे आरोप लग रहे हैं कि पूर्व के प्रिंसिपल साहब खुद कुछ नहीं करते थे. कॉलेज के रोज के काम या टेंडर जैसे मसले पर मैडम से बात कर लेने की बात करते थे. इस बात में कितनी सच्चाई है?

कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर जो लोग रखे गए हैं या फिर पर्चेज में जिनकी दखल की बात सामने आ रही है उसकी भी जांच चल रही है.

बहुत सारे मरीजों की शिकायत है कि अस्पताल में दवाई नहीं मिलती है. अस्पताल की तरफ से मरीज के परिजनों को बोला जाता था कि आप दवाई बाहर से लेकर आएं. इस बात में कितनी सच्चाई है?

देखिए जहां तक दवाई की उपलब्धता का सवाल है, अस्पताल में जिस तरह की भीड़ होती है उस स्थिति में सारी दवाईयों को एक साथ उपलब्ध कराना संभव नहीं है. ये स्थिति कभी-कभी पैदा होती है. जब-जब प्रिंसिपल रिपोर्ट करते हैं, हम लोग दवाईयों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का प्रयास करते हैं.

लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स कहना है कि हमने कॉलेज को 18 रिमांइडर भेजे. प्रिंसिपल, डीएम से लेकर लखनऊ में डीजीएमई तक भी रिमांइडर भेजे गए. इसके बावजूद आप लोगों ने बकाया भुगतान नहीं किया?

मैं आपको बता दूं कि कॉलेज के प्रिंसिपल के पास उस वक्त पूरे ड़ेढ करोड़ रुपए उपलब्ध थे. प्रिंसिपल ने पैसा क्यों जारी नहीं किया. उस पैसे को प्रिंसिपल गैस जैसी जरूरी चीज पर खर्च कर सकते थे. दूसरा ये भी कि प्रिंसिपल का काम होता है अगर सप्लायर डिफॉल्ट करता है तो उसे विश्वास में ले.

मैं समझता हूं कि जब हम इतने सालों से पुष्पा सेल्स से गैस ले रहे हैं, उनको कई करोड़ रुपए दे चुके हैं तो उनके परसेप्शन पर भी डिपेंड करना चाहिए था. इसमें वो विफल रहे. रिकॉर्ड कहता है कि 60 लाख की डिमांड में उनको 40 लाख रुपए दे दिए थे. अगर किसी और मद में जैसे औषधि या उपकरण जैसे विभाग से भी 17-18 लाख रुपए दे देते तो इस तरह की बात सामने नहीं आती.

डॉ साहब 12 अप्रैल 13 जून को पुष्पा सेल्स ने रिमांइडर भेजा था बाद में 18 जुलाई को एक लीगल नोटिस भेजा गया. इसके बावजूद भी सरकार और मेडिकल कॉलेज प्रशासन नहीं चेती.

पुष्पा सेल्स ने 30 जुलाई को नोटिस दिया और उन्होंने नोटिस में भी 15 दिन का वक्त दिया था. वो तो कम से कम 15 दिन तो इंतजार करते. उन्होंने ऐसा नहीं किया. उनका लीगल नोटिस ही उनके खिलाफ जा रहा है.

क्या आपको नहीं लगता है कि प्रिंसिपल और डॉ कफील खान को बलि का बकरा बनाया जा रहा है. डॉ कफील खान के बारे में मीडिया में रिपोर्ट छपी थी कि वो फ़रिश्ता हैं. उन्होंने अपने स्तर पर कई ऑक्सीजन सिलेंडर ला कर और बच्चों को मरने से बचाया. आपका इस बारे में क्या कहना है?

देखिए फ़रिश्ते ड्यूटी आवर में निजी प्रेक्टिस नहीं किया करते और फ़रिश्ते छोटे बच्चों की लाश को दिखा कर प्रोपेगेंडा नहीं किया करते. ऐसी स्थिति में जब उस समय 52 सिलेंडर अस्पताल में थे और वे तीन सिलेंडर लाने की बात कर रहे हैं यह मुझे पच नहीं रही है. उनकी मंशा कहीं ना कहीं प्रोपेगेंडा करना था जो हमलोगों के उसूल के खिलाफ है.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों पर निजी प्रैक्टिस के आरोप लग रहे हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि डॉक्टर अस्पताल में कम और निजी प्रैक्टिस पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. इस पर आप क्या करने जा रहे हैं?

हम निजी प्रैक्टिस के बारे में बहुत संवेदनशील हैं. निश्चित तौर पर हम कार्रवाई करेंगे. मैं सिर्फ तीन-चार दिनों से यहां पर हूं. हम इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि यहां के कितने डॉक्टर्स निजी प्रैक्टिस करते हैं और कितने नदारद रहते हैं.