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सरदार सरोवर बांध: क्या है दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बांध की खासियत

इस बांध के चलते पांच लाख से ज्यादा लोग भी विस्थापित होंगे

FP Staff

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 67वें जन्मदिन पर  गुजरात में स्थित सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन करने जा रहे हैं. सरदार सरोवर बांध दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है. गुजरात की जीवनदायी कही जाने वाली सरदार सरोवर नर्मदा योजना (नर्मदा बांध) की नींव प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 अप्रैल 1961 को रखी थी.

इस योजना के चलते विस्थापित हुए 5 लाख से ज्यादा लोगों की स्थिति को देखते हुए इसका विरोध भी खूब हुआ है. मेधापाटकर लंबे समय से इस परियोजना के विरोध में अनशन कर रही हैं. कुछ दिन पहले उनकी स्थिती काफी खराब हो गई थी.


इस योजना की कुल लागत के हिसाब से यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी योजना है. नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में से सरदार सरोवर सबसे बड़ी बांध परियोजना है.  माना जा रहा है कि इस बांध से गुजरात के कई सूखाग्रस्त जिलों में पानी पहुंचेगा और मध्य प्रदेश में बिजली की समस्या दूर होगी.

हालांकि ये योजना अपनी शुरुआती लागत से बहुत ऊपर जा चुकी है. मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पड़ने वाली नर्मदा घाटी में 30 बड़े, 135 मझोले और 3000 छोटे बांध बनाने की योजना शुरू से ही हर मुद्दे पर विवाद में रही है.

सरदार सरोवर बांध से जुड़ी कुछ खास बातें:

सरदार सरोवर बांध अमेरिका के ग्रांड कोली डैम के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है.

इस बांध के 30 दरवाजे हैं और प्रत्येक दरवाजे का वजन 450 टन है. हर दरवाजे को बंद करने में करीब एक घंटे लगते हैं.

इस बांध के जरिये 9,000 गांवों को पानी मिलने का दावा है.

हाल ही में बांध की उंचाई को 138.68 मीटर तक बढ़ाई गई है. इस बांध की 4.73 मिलियन क्यूबिक पानी संचय करने की क्षमता है.

सरदार सरोवर बांध गुजरात के केवाड़िया क्षेत्र में स्थित है. हालांकि, इस बांध से उत्पन्न होने वाली 57% बिजली महाराष्ट्र में, 27% मध्य प्रदेश और शेष गुजरात में जाएगी. सिंचाई और पानी की आपूर्ति के मामले में राजस्थान को भी कुछ लाभ मिलने की उम्मीद है.

बांध से 6 हज़ार मेगावाट बिजली पैदा होगी जो कि गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में वितरित होगी.

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में इस परियोजना की शुरुआत की थी. करीब पांच दशकों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज इसका लोकार्पण करेंगे.

नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवाई करने वाली मेधा पाटकर ने इस मामले को लेकर सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में घसीटा और 1996 में कोर्ट ने निर्माण पर रोक लगा दी.

अक्टूबर 2000 में सर्वोच्च न्यायालय ने बांध के पुनर्ग्रहण की अनुमति दी.