कुछ ही दिन पहले किसी ने मुझसे पूछा था कि राजनीति में मेरा प्रिय मित्र कौन है, तो मैंने बेझिझक अनंत कुमार का नाम लिया था, जो मेरे उन दो निकटतम मित्रों में से एक हैं, जिन्हें मैं राजनीति की दुनिया में अपना मित्र मानता हूं और आज ही मैंने उन्हें खो दिया. जब आप अपना कोई प्रिय मित्र खो देते हैं तो आपको इस बात का खयाल आता है कि जब आप जिंदगी रूपी यात्रा जीते हैं तो आप उन कुछ भाग्यशाली लोगों में से होते हैं जो अच्छे लोगों के संपर्क में आते हैं. जो लोग आपको इस बात का एहसास कराते हैं कि आप उन्हें अपनी जिंदगी में पाकर भाग्यशाली हैं, वही अनंत कुमार मेरे लिए हैं.
मैं उन्हें पिछले 24 सालों से जानता हूं- वर्ष 1994 में मैं उनसे पहली बार मिला था. उस समय वह युवा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) और बीजेपी के नेता थे. जिनका उत्साह अनुकरणीय था. मैं उस समय अमेरिका से अपने देश में वापस आया नया-नया उद्यमी था, हम दोनों की अलग-अलग दुनिया थी, पर हम बेहद करीब थे. वह मुझसे राजनीति के बारे में बातें करते थे और मैं उनसे टेक्नॉलॉजी और टेलीकॉम के बारे में बात करता था. जल्द ही हमारी बातें राजनीति और शासन के मुद्दों पर तब्दील हो गईं और वह अन्य राजनेताओं की तरह मेरे विचारों को प्रोत्साहित करते रहे. मुझे याद है वह अपने कंधे में झोला टांगे अपना स्कूटर चलाकर कभी-कभार मेरे कार्यालय आते थे.
जल्द ही वह अटल जी की सरकार में सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बने, पर किसी भी प्रकार के घमंड से दूर रहे जो अक्सर मंत्रियों में आ जाता है. वह अन्य मंत्रियों की तरह नहीं थे, जो मंत्रित्व के दिनों में अपने लोगों को भूल जाते हैं और उन्होंने अपनी दोस्ती काबिज रखी. उन दिनों में बीजेपी एक स्टार्टअप-सी थी, जहां विचार और पहुंच दोनों आसानी से मिल-बांटे जा सकते थे. मैं तो तब सिर्फ एक अज्ञात युवा था, पर उन्होंने राजनीति में मेरे विचारों को प्रोत्साहित किया और वह मुझे चुनावों में अपने साथ शामिल करने लगे. मैं उनके साथ कर्नाटक और राष्ट्रीय दोनों चुनावों में बहुत अच्छे से रहा और हमेशा उनसे सीखने और अपना योगदान देने में लगा रहा.
कर्नाटक में बीजेपी उनके जरिए दिखाए गए रास्ते के कारण ही आगे बढ़ पाई और बाद में राज्य में बेशक यह येदियुरप्पा और अनंत कुमार की टीम बन गई. वह एक जुझारू कार्यकर्ता थे और उन्होंने अपने कंधे पर बहुत सारी जिम्मेदारियां ले रखी थीं और मजाक में स्वयं को अखिल भारतीय मजूदर परिषद कहते थे. जब बहुत सारे अवसरों में उनकी टीम में दरार पड़ गई, तो कभी मैं अपनी ओर से उन लोगों के बीच उत्पन्न गलतफहमियों को दूर करने की भरसक कोशिश करता और कभी अटल जी और आड़वाणी जी की आज्ञा से यह काम करता या कभी कर्नाटर के प्रभारी वेद प्रकाश गोयल जी के निर्देश पर यह काम करता था, पर अनंत कुमार जी पार्टी के समक्ष कभी अपना अहं सामने नहीं लाते.
हालांकि जिस तरह से आजकल किसी भी जगह राजनीति चल रही है. ऐसे में किसी के भी करियर में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं पर इन सबके बावजूद जो भी परिस्थितियां उनके रास्ते में आईं, (कुछ असफलताओं एवं तिरस्कार के बावजूद जो उन्होंने सहे) वह हमेशा ही एक सकारात्मक और प्रसन्न व्यक्ति रहे. मैंने उनसे धैर्य रखना और लोगों की निराशाओं से जूझना सीखा.
साल 2006 में जब देवगौड़ा जी ने मेरे सामने राजनीतिक जीवन की शुरुआत का प्रस्ताव रखा, तो अनंत कुमार जी ने ही मुझे सबसे पहले कर्नाटक बीजेपी में समर्थन दिया. उन्होंने धैर्य के साथ राजनीति में मेरे प्रारंभिक दिनों में मेरा मार्गदर्शन किया. हमारी राजनीति और हमारे विचारों का ढंग एक-सा था और उन्होंने राजनीति में मेरे एक्टिविज्म को सराहा और मुझे बंगलुरू से चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. इस साल की शुरुआत में मुझे बीजेपी शामिल किया गया और वह बहुत खुश थे और उन्होंने इसे मेरी घरवापसी कहा. वह मेरे पूरे परिवार में- चाहे वह मेरे अभिभावक हों या मेरे बच्चे हों- एक अकेले ऐसे राजनेता थे, जिन्हें सबकोई अच्छे से जानता है और जिसने सबसे बात की हो.
इस साल मई में कर्नाटक चुनावों के प्रचार के दौरान किसी ने मुझे उनके स्वास्थ्य के संबंध में सूचित किया. मैंने उनसे इस संबंध में विरोध प्रकट किया. मैंने उन्हें आराम करने की सलाह दी और मेरी चिंताओं को दरकिनार करते हुए सफल संसदीय सत्र में प्रस्तुति के लिए जुट गए. वह हमेशा से ही ऐसे ही थे. अपने और परिवार के आगे सरकार और पार्टी के बारे में सोचना. मुझे पता था कि संसद के पूरे सत्र के दौरान वह अस्वस्थ्य थे पर उन्होंने अपना काम जारी रखा और लोकसभा और राज्य सभा के बीच उत्साह के साथ दौड़ते रहे और यह सुनिश्चित करते रहे कि सरकार अपना काम सही से करते रहे.
उनका परिवार इन सबसे अप्रभावित होकर सरलता से रहा और अपने मूल्यों पर काबिज रहा. उनकी पत्नी तेजस्विनी और उनके परिवार ने मेरा हमेशा ही स्वागत किया और मुझे अपने घर पर बुलाते रहे. तेजस्विनी उनके अंतिम दिनों तक उनकी सेवा में लगी रहीं, कुमार अमेरिका में उनके साथ और सरकार के किसी सहयोग एवं सहायता के बिना अपने निजी खर्चे पर इलाज करवाते रहे.
मेरे लिए वह हमेशा ही एक मुस्कुराते हुए प्रसन्न मुद्रा में रहने वाले दोस्त के रूप में ही रहेंगे. वह मुझे अनगिनत चुटकुले भेजते थे और मुझसे कहते थे कि मैं यह अपने बच्चों को भी भेजूं. वह मेरे जानकारों में एक सच्चे एवं सबसे अच्छे व्यक्ति बने रहेंगे और मैं राजनीति के क्षेत्र में हमेशा उनका आदर करता रहूंगा क्योंकि उन्होंने दोस्ती और इससे संबंधित किसी भी मुद्दे में किसी प्रकार का कोई लेनेदेन और चापलूसी नहीं की. मेरे लिए वह मेरे भाई और मार्गदर्शक बने रहेंगे. मैं हमेशा उनकी और उनकी दोस्ती की कमी महसूस करता रहूंगा.
आप बहुत जल्दी चले गए, मेरे भाई, मेरे दोस्त अनंत कुमार अलविदा.
(लेखक राज्यसभा सांसद हैं)