view all

बजट पर बाजार की बल्ले-बल्ले

वित्त मंत्री के बजट के बाद सेंसेक्स लगभग 400 अंक की तेजी के साथ 28,000 के ऊपर आ गया

Rajeev Ranjan Jha

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट में मोदी सरकार की राजनीतिक बिसात मजबूत करने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की मजबूती का भी ख्याल रखा है.

राजनीतिक लाभ के लिहाज से ग्रामीण मतदाताओं को रुझाने के साथ-साथ मध्यम वर्ग को भी राहत देने का काम इस बजट में किया गया है. दलित उत्थान योजनाओं पर भी खर्च में अच्छी बढ़ोतरी हुई है. वहीं, अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए बुनियादी ढांचे के लिए सरकारी खर्च पर खास जोर है. इसमें 79 फीसदी की जबरदस्त वृद्धि की गयी है.


बजट से बाजार में उछाल

सस्ते आवास को बुनियादी ढांचे का दर्जा देकर सरकार ने जहां रियल एस्टेट क्षेत्र की एक बड़ी मांग पूरी कर दी है. वहीं, राजनीतिक लिहाज से भी यह एक फायदेमंद कदम है. शेयर बाजार ने इस बजट को खुल कर सराहा है, जो बजट के तुरंत बाद बाजार में आयी उछाल से साफ है. बजट भाषण पूरा होने तक लगभग सपाट चल रहा सेंसेक्स दोपहर में लगभग 400 अंक की तेजी के साथ 28,000 के ऊपर आ गया है.

ग्रामीण, कृषि क्षेत्र एवं संबंधित उद्योगों के लिए कुल आवंटन 24 फीसदी बढ़ा कर 1.87 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है. ध्यान देने वाली बात है कि पिछले साल के बजट में भी गांवों और किसानों को सबसे ज्यादा प्रमुखता दी गयी थी. मनरेगा के लिए आवंटन भी लगभग 25 फीसदी बढ़ा कर 48,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

इस साल अच्छे मॉनसून के चलते कृषि उत्पादन बढ़ा है. साथ ही सरकारी योजनाओं से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां बढ़ने से ग्रामीणों की आय पर काफी सकारात्मक असर होना चाहिए.

नकद चंदे की सीमा 90 फीसदी घटी

राजनीतिक दलों को नकद चंदे की सीमा को 20 हजार रुपये से एकदम 90 फीसदी घटा कर सीधे 2 हजार रुपये कर देना भी एक राजनीतिक संदेश देने वाला कदम ही है. हालांकि मुझे नहीं लगता कि इससे राजनीतिक दलों पर कोई खास असर पड़ने वाला है.

पहले जो काम एक फर्जी रसीद काट कर चल जाता था, उसके लिए उन्हें अब 10 फर्जी रसीदें काटनी पड़ेंगी. जब तक राजनीतिक दलों को नकद चंदे पर पूरा प्रतिबंध नहीं लगता, तब तक चंदे में काले धन की खपत नहीं रोकी जा सकती. दलों को एक रुपये का चंदा भी लेना हो, तो चेक या डिजिटल भुगतान से ही लेने का नियम बनना चाहिए.

आय कर छूट की सीमा को बढ़ाने की उम्मीद पूरी नहीं हुई है, लेकिन 2.5 लाख से 5 लाख रुपये तक की सालाना आय पर आय कर देनदारी को 10 फीसदी से आधा घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया है. इस तरह मध्यम वर्ग को एक राहत तो मिली है.

वित्त मंत्री ने खुद भी जिक्र किया कि जिन लोगों की आमदनी 5 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें भी 2.5-5 लाख रुपये तक की आय पर कर की दर घटने से 12,500 रुपये का फायदा मिलेगा. लेकिन अगर 5 लाख रुपये से अधिक की आय वालों के लिए भी टैक्स की दर में कुछ कमी की जाती तो बेहतर होता.

टैक्स घटने से काला धन सफेद बनेगा

खुद वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि उनकी सरकार टैक्स दरों को तार्किक बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस दृष्टिकोण के चलते पैसे का रंग बदलेगा. यानि वे खुद मानते हैं कि टैक्स दरें घटाने से काला धन सफेद बनेगा.

आयकर की ऊच्चतम सीमा को 30 फीसदी से कुछ नीचे लाकर इस दृष्टिकोण पर अमल किया जा सकता है. मगर इसके विपरीत सरकार ने ज्यादा धनी लोगों पर उच्च आयकर के साथ-साथ अतिरिक्त सेस भी लगाने का नजरिया अपनाया है. यानि सरकार एक तरफ जहां कहती है कि तुलनात्मक रूप से कम आय वाले लोगों पर कर का बोझ घटने से कर अनुपालन बढ़ेगा, ज्यादा लोग कर के दायरे में आयेंगे. लेकिन उच्च आय वाले लोगों के लिए उसी तर्क को नहीं अपना रही है.

क्या सरकार ऐसा सोचती है कि अभी कर वंचना केवल तुलनात्मक रूप से कम आय वाले लोगों के बीच ही है, उच्च आय वालों के बीच नहीं? या फिर उसकी सोच क्या यह है कि उच्च आय श्रेणी में कर की दरें तार्किक बनाने यानी कुछ घटाने से भी अनुपालन नहीं बढ़ेगा?

निवेश पर टैक्स छूट जस की तस

वहीं 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये के निवेश पर मिलने वाली कर छूट जस-की-तस है. यदि इस सीमा को बढ़ाया जाता तो बाजार के लिए ज्यादा उत्साहजनक हो जाता. खास कर म्युचुअल फंडों के माध्यम से शेयर बाजार में होने वाले निवेश को अच्छी गति मिलती.

इस समय बाजार की चाल भी ठीक है और म्यूचुअल फंडों की ओर निवेशकों का झुकाव भी बढ़ा हुआ है. ऐसे में 80सी के तहत अतिरिक्त छूट मिलने से ऐसे निवेशकों को और अधिक प्रोत्साहन मिलता.

कॉर्पोरेट क्षेत्र को देखें तो बड़ी कंपनियों को कॉर्पोरेट टैक्स में राहत नहीं मिली है. लेकिन सालाना 50 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली छोटी कंपनियों के लिए कॉर्पोरेट टैक्स में 5 फीसदी की कमी छोटे-मझोले उद्यमों और छोटी कंपनियों के लिए एक अच्छी रियायत है.

बुनियादी ढांचे पर बढ़ने वाला खर्च

शेयर बाजार को एक चिंता हो गयी थी कि कहीं लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स लागू न कर दिया जाये. लेकिन इस बजट में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स और सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) के प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. वहीं स्थायी परिसंपत्तियों पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के लिए समय-सीमा 3 साल से घटा कर 2 साल करने से भी लोगों को कुछ राहत मिलेगी.

बाजार की नजर से सबसे सकारात्मक पहलू बुनियादी ढांचे पर बढ़ने वाला खर्च है. पिछले बजट में बुनियादी ढांचे पर 221,246 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान रखा गया था. जबकि इस बजट में 396,135 करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ है.

उद्योग क्षेत्र और बाजार की सबसे मुख्य मांग यही थी कि सरकारी खर्च में बढ़ोतरी की जाये, जिससे निवेश चक्र को फिर से तेज किया जा सके. अभी अर्थव्यवस्था केवल खपत वाली मांग के दम पर बढ़ रही है, जबकि निवेश मांग सुस्त पड़ी हुई है. बुनियादी ढांचे में यह बढ़ोतरी निवेश मांग को तेज करने में सहायक होगी.

सर्विस टैक्स की दर में बढ़ोतरी

एक आशंका यह थी कि जीएसटी की प्रस्तावित दरों के करीब ले जाने के लिए सर्विस टैक्स की दर में बढ़ोतरी हो सकती है, पर सरकार ने ऐसा नहीं किया है. यह सर्विस टैक्स के दायरे में आने वाले लोगों के लिए एक फौरी राहत ही है.

नोटबंदी के बाद सरकार नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने की नीति पर आगे बढ़ी है. इसी के तहत व्यक्तियों के लिए तीन लाख रुपये से अधिक का नकद लेन-देन करने पर रोक लगा दी गयी है. यह काले धन के प्रवाह पर अंकुश लगाने की दिशा में एक और कदम है. ऐसा नहीं है कि इससे पूरा अंकुश लग जायेगा, लेकिन एक छेद जरूर बंद होगा या पहले से छोटा जायेगा.

कुल मिला कर इस बजट में सरकार गरीबों-किसानों को राजनीतिक संदेश देने से नहीं चूकी है. पर लोक-लुभावन होने के चक्कर में अर्थशास्त्र को भी नहीं भूली है. साथ ही सरकार ने यह भी ध्यान रखा है कि नोटबंदी के चलते पहले से कुछ असहज चल रहे जनमानस को नाराजगी का कोई नया मौका न मिले. ट्रेनों के यात्री किराये नहीं बढ़ाना और सर्विस टैक्स को यथावत रखना इसके मुख्य उदाहरण हैं.

(लेखक आर्थिक पत्रिका 'निवेश मंथन' और समाचार पोर्टल शेयर मंथन (www.sharemanthan.in) के संपादक हैं. वो लंबे समय तक ज़ी बिजनेस, एनडीटीवी, आजतक और अमर उजाला से जुड़े रहे हैं).