इकनॉमिक सर्वे में फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने यह स्वीकार किया है कि नोटबंदी की वजह से देश की जीडीपी पर चोट पड़ी है. इकनॉमिक सर्वे के मुताबिक देश के जीडीपी की ग्रोथ में 0.25 से 0.50 फीसदी की कमी आई है.
इकनॉमिक सर्वे में उम्मीद जताई गई थी कि जीडीपी ग्रोथ अगले साल 6.75-7.5 फीसदी रह सकती है. जेटली ने यह भी माना है कि नोटबंदी का असर अगले फिस्कल ईयर में खत्म होगा.
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आम आदमी जहां इनकम टैक्स स्लैब में बढ़ोतरी की उम्मीद लगाए बैठा है वहीं, राजनीतिक अर्थशास्त्री शंकर अय्यर ने कहा, 'इस बार का बजट घास-फूस की तरह होगा. इसमें बहुत खास कुछ नहीं होने वाला है.'
बैंकों के लिए लेने होंगे कड़े फैसले
वहीं, दूसरी तरफ वरिष्ठ पत्रकार माधवन नारायणन ने कहा कि सरकार की पहली जिम्मेदारी बैंकों को संभालना है. उन्होंने कहा, 'बैंक फिलहाल जिस नकदी संकट में फंसे हैं, उन्हें बचाना सरकार की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए.'
अगर सरकार बैंकों में पूंजी डालने का फैसला करेगी तो आम आदमी को खुश करने के लिए उसके पास अवसर कम होगा.
नारायणन ने कहा,'सरकार एकसाथ बैंकों और आम आदमी दोनों को राहत नहीं दे सकती है.'
लॉन्ग टर्म में देखा जाए तो सरकार के लिए फिलहाल बैंकों को बचाना जरूरी है. 2008 में जिस तरह अमेरिका में बैंक डूब रहे थे उसका नजारा हमें इंडिया में भी देखने को मिल सकता है.
अगर बैंक डूबते हैं तो भारतीय अर्थव्यवस्था धराशायी हो जाएगी. ऐसे में अब यह देखना है कि सरकार आम आदमी को खुश करने के लिए बजट लाती है या इकनॉमिक पर फोकस करती है.