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केंद्रीय बजट 2017: दूल्हा तय है, बारातियों का जिम्मा वित्त मंत्री पर

अगले बजट में आम आदमी को लुभावने-रिझाने की हर संभव कोशिश होगी.

Rajesh Raparia

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए साल की पूर्व संध्या पर दिए गए राष्ट्रीय संबोधन से यह साफ हो गया है कि अगले बजट में आम आदमी को लुभावने-रिझाने की हर संभव कोशिश होगी.

प्रधानमंत्री मोदी के इस संबोधन से त्रस्त लोगों को भारी उम्मीदें थीं, लेकिन उन्होंने जो घोषणाएं कीं, वह या तो पुराने कार्यक्रमों का नवीकरण थीं या विस्तार. इस भाषण का संदेश साफ है कि अब वे विकास पुरुष से ज्यादा गरीबों के नए मसीहा बनना चाहते हैं. यानी बजट का दूल्हा तय है, बारातियों का जिम्मा वित्त मंत्री पर है. इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली को मोदी की इस छवि को गढ़ने के लिए अब बजट में नये सिरे से अपना हिसाब-किताब बैठाना पड़ेगा.


अगले बजट में गरीबों, किसानों, निम्न और मध्यवर्ग के साथ छोटे कारोबारियों पर विशेष जोर होगा. क्योंकि नोटबंदी का सबसे बड़ा असर इन्हीं वर्गों पर पड़ा है. इनकी आर्थिक कमर टूट गयी है.

इससे रोजगार, आय, मांग और उपभोग पर गहरा असर पड़ा है. नतीजन सकल घरेलू उत्पाद के गिरने का आसन्न खतरा मंडरा रहा है, जिस पर बजट की बुनियाद खड़ी होती है.

आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती या तेजी मापने का एक प्रामाणिक पैमाना होता है - बैंकों की कर्ज देने की दर. आज यह दर पिछले कई सालों के न्यूनतम पर है. इससे ही अर्थव्यवस्था में व्याप्त कमजोरी का पक्का पता चल जाता है.

नोटबंदी से बैंकों में धन रखने की जगह नहीं है

नोटबंदी के बाद बैंकों की तिजोरियां फुल

बैंकों के पास पहले से ही कर्ज देने के लिए पर्याप्त नकदी थी, नोटबंदी से बैंकों की तिजोरियों में धन रखने की जगह भी अब नहीं रह गयी है, पर कर्ज का लेवल बाजार से नदारद है. इसलिए वित्त मंत्री मांग और उपभोग बढ़ाने के लिए राहत और छूट अधिकाधिक देने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे, ताकि खर्चों के लिए आम आदमी के हाथों में नकदी बढ़ सके.

यह काम वित्त मंत्री के लिए इतना आसान भी नहीं है. अगला बजट बनाते समय वित्त मंत्री अरुण जेटली को दो विकराल चुनौतियों से जूझना पड़ेगा. पहले बजट में सार्वजनिक खर्च और निवेश को ज्यादा से ज्यादा कैसे बढ़ाया जाए और इसके लिए पर्याप्त फंडों यानी राजस्व का पुख्ता बंदोबस्त कैसे किया जाए.

वैश्विक कारक भी वित्त मंत्री के काम को मुश्किल बना सकते हैं. विश्व बाजार में कच्चे तेल के भाव में तेजी है, इससे महंगाई के बेलगाम होने का खतरा लगातार बना रहता है. इस खतरे के कारण ही भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दर में कटौती को टाल दिया है. इसलिए वित्त मंत्री व्यय करने के सबसे आसान उपलब्ध साधन सरकारी घाटे का इस्तेमाल करने से परहेज करेंगे.

सरकारी घाटा यानी राजकोषीय घाटा बढ़ाने से महंगाई का खतरा बढ़ जाता है, साथ ही विश्व में भारत की सार्वभौमिक साख पर भी आंच आती है. अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों का भी सरकारी घाटे को नियंत्रित रखने का दबाव रहता है. इसलिए वित्त मंत्री सरकारी घाटे को बढ़ाकर व्यय को पूरा करने का खतरा मोल नहीं ले सकते हैं.

करों के माध्यम से राजस्व बढ़ाने का सदाबहार विकल्प वित्त मंत्री के पास है. कर राजस्व बढ़ाने के लिए कर दरों की बढ़ोतरी का आसान विकल्प रहता है. जिसका इस्तेमाल हर वित्त मंत्री करता है. लेकिन इस बार वित्त मंत्री के पास इस विकल्प के इस्तेमाल की गुंजाइश न के बराबर है.

फोटो: आसिफ खान/फर्स्टपोस्ट हिंदी

सरकार दे सकती है आयकर में राहत

नोटबंदी से मचे हाहाकार को कम करने के लिए आयकर में राहत देना अब वित्त मंत्री की मजबूरी बन चुका है. आयकर सरकार के राजस्व संग्रह का एक बड़ा स्रोत होता है. वैसे भी वित्त मंत्री सार्वजानिक रूप से आयकर में राहत देने के साफ संकेत दे चुके हैं. इसलिए अब इससे मुंह फेरना वित्त मंत्री के लिए असंभव है.

जेटली आयकर में कितनी राहत दे पायेंगे, अब यही सबसे बड़ी देखने की बात है. कॉरपोरेट टैक्स से केंद्र सरकार को खासा राजस्व मिलता है, लेकिन कॉरपोरेट टैक्स में बढ़ोतरी की गुजाइंश वित्त मंत्री दो साल पहले ही खत्म कर चुके हैं. कॉरपोरेट टैक्स को विश्व मानकों के अनुरूप करने का सार्वजानिक वादा वित्त मंत्री का है. कॉरपोरेट जगत ने इस कर में दर कटौती का भारी दबाव बना रखा है.

अप्रत्यक्ष करों यानी उत्पाद, सर्विस टैक्स की दरों में बढ़ोतरी का रास्ता, प्रस्तावित वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के चलते सैद्वांतिक रूप से बंद हो चुका है. जीएसटी को 1 अप्रैल 2017 से लागू होना है, जो अब टलता नजर आ रहा है. सितंबर 2018 तक भी यह लागू हो जाता है तो स्थायी रूप से एक बड़ी बटेर सरकार के हाथ लग जाएगी, क्योंकि इससे कर राजस्व में भारी बढ़ोतरी की उम्मीद है. इससे सरकार को बड़ी राहत मिलेगी.

कर दरों में बढ़ोतरी के अलावा राजस्व संग्रह में वृद्धि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि पर भी निर्भर करती है. इसमें सुधार के लिए हर संभव मोदी सरकार कोशिश करेंगी.

इस बार बजट में वित्त मंत्री को विनिवेश, सार्वजानिक उपक्रमों के लाभांश और रिजर्व बैंक के विशेष लाभांश पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ेगा. सार्वजानिक उपक्रमों में विनिवेश का लक्ष्य वित्त मंत्री बढ़ा सकते हैं, सार्वजानिक उपक्रमों पर ज्यादा लाभांश देने के लिए दबाव बना सकते हैं. आखिर में वित्त मंत्री की नजरें रिजर्व बैंक पर टिकी हुईं हैं.

नोटबंदी के कारण दो-ढाई लाख करोड़ रुपये को एक मुश्त अकस्मात लाभ की उम्मीद सरकार को है. इससे सरकार का राजस्व कोटा समाप्त होना लाजिमी है. फिर सरकार भरपूर ढंग से आयकर में राहत दे पाएगी, गरीब, किसानों और निम्न और मध्य वर्ग के लिए सार्वजानिक व्यय में वृद्धि कर पाएगी और सार्वजनिक निवेश बढ़ाने में भी सरकार का हाथ तंग नहीं रहेगा.