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बजट 2017: नकद चंदे पर पाबंदी कर पाएगा राजनीतिक बदलाव?

राजनीतिक दल किसी एक आदमी से बीस हजार चंदा दिखाने के बजाय दस लोगों से दो-दो हजार मिलने का दावा कर सकते हैं

RN Bhaskar

आम बजट में सरकार ने राजनीतिक दलों के नकद चंदा लेने की सीमा बीस हजार से घटाकर दो हजार कर दी है. मीडिया के तमाम लोग इसे चुनाव सुधारों की दिशा में उठा बहुत बड़ा कदम बता रहे हैं.

लेकिन आप इस एलान को ध्यान से पढ़ें तो इसे कोई सुधार नहीं माना जाएगा. पहली बात तो ये कि नकद चंदा लेने की पाबंदी बीस हजार से घटाकर दो हजार कर दी गई है. आखिर ये कौन सा सुधार हुआ?


यहां ध्यान देने वाली बात है कि ये पाबंदी नकद चंदे पर की गई है. यानी राजनीतिक दल किसी एक आदमी से बीस हजार चंदा दिखाने के बजाय दस लोगों से दो-दो हजार मिलने का दावा कर सकते हैं. याद रहे कि मायावती तो यही करती रही हैं. उनका दावा है कि उन्हें ज्यादातर चुनावी चंदा एक-एक रुपए करके मिलता है.

बेनामी ही रहेगा चंदे का स्रोत

अब अगर जो दो हजार रुपए राजनीतिक दलों को मिला है वो बेनामी ही रहना है तो क्या फायदा हुआ? जब तक जनता को इस चंदे का स्रोत नहीं पता चलेगा, तब तक नकद चंदा लेने की पाबंदी एक रुपए हो, एक हजार हो, दो हजार, बीस हजार या दो लाख, क्या फर्क पड़ता है?

राजनीतिक दलों को अपना रिटर्न दाखिल करते वक्त सिर्फ दान देने वालों की संख्या ही तो बढ़ाकर दिखानी होगी.

लेकिन, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ये भी कहा है कि लोग अब तीन लाख से ज्यादा नकद लेनदेन नहीं कर पाएंगे. राजनीतिक दल, दान दाताओं से चेक या डिजिटल माध्यम से चंदा ले सकेंगे. अगर ये नियम लागू किया जाता है, तो इससे राजनीतिक चंदे का रंग-रूप पूरी तरह बदल जाएगा.

कितना कारगर होगा चुनावी बॉन्ड 

चेक से राजनीतिक चंदा लेने के लिए वित्त मंत्री ने आरबीआई एक्ट में बदलाव की बात कही है. जिसके बाद सरकार इलेक्टोरल बांड यानी चुनावी बॉन्ड जारी करेगी. दान देने वाले ये बॉन्ड तयशुदा बैंकों से खरीद सकेंगे. ये बॉन्ड वो राजनीतिक दलों को दे सकेंगे.

फिर तमाम पार्टियां इन बॉन्ड्स को भुना सकेंगी. अब चूंकि दानदाता अपने खातों में उस पार्टी का नाम नहीं बताएंगे जिसको उन्होंने चंदा दिया है, न ही पार्टियां दानदाताओं का नाम अपने खाते में दर्ज करेंगी- ऐसे में बॉन्ड के जरिए चंदा देने वालों के नाम नहीं उजागर होंगे.

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हालांकि ये आइडिया बुरा नहीं, मगर इसे लागू करना उतना व्यवहारिक नहीं दिख रहा है. हर चुनावी बॉन्ड में एक सीरियल नंबर होना चाहिए. ये नंबर बैंक के खातों में दर्ज होगा. साथ ही इसे खरीदने वाले का नाम भी दर्ज होना चाहिए.

अब अगर बैंक में ऐसा रजिस्टर नहीं होगा, तो राजनीतिक दल फर्जी बॉन्ड छपवा सकते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे कि फर्जी स्टांप पेपर के तेलगी घोटाले में हुआ था. इसमें महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल का भी नाम आया था. ये बॉन्ड भी उसी तरह के होंगे जैसे शेयर घोटाले के आरोपी हर्षद मेहता ने जारी किए थे.

अगर चुनावी बॉन्ड में एक सीरियल नंबर भी होगा और इसे लेने वाले का नाम भी दर्ज किया जाएगा, तो सत्ताधारी दल आसानी से बैंकों से इन दाताओं के नाम और चंदे की रकम का पता लगा लेंगे. हां, जनता को इसकी जानकारी नहीं होगी. लेकिन कुछ खास लोग और सरकार चला रही पार्टी के पास ये जानकारी आसानी से पहुंच जाएगी.

चुनाव सुधार तभी सही से लागू हो सकते हैं, जब तीन लाख से ज्यादा के नकद लेनदेन पर पाबंदी सख्ती से लागू की जाए. जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक सुधारों की वास्तविकता पर शक करने की पूरी वजह बनती है.