view all

संभव नहीं है यूनिफॉर्म सिविल कोडः लॉ कमिशन के अध्यक्ष

उन्होंने कहा कि फैमिली लॉ में धर्म के अनुसार संशोधन की सिफारिश करेंगे, प्रत्येक धर्म की समस्याओं को चिन्हित करेंगे और उसके अनुसार हल निकाला जाएगा

FP Staff

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड की संभावनाओं को खारिज करते हुए लॉ कमिशन के अध्यक्ष जस्टिस बलबीर सिंह चौहान ने कहा कि यह मुमकिन नहीं है. उन्होंने कहा, ऐसा करने का कोई विकल्प नहीं है. ऐसा करना संविधान का उल्लंघन है.

न्यूज 18 से बात करते हुए जस्टिस चौहान ने बताया कि निजी कानूनों को कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें संवैधानिक सुरक्षा मिलती है. यूसीसी के विचार को त्याग कर 21वां लॉ कमिशन कई पर्सनल लॉ में विशिष्ठ संशोधनों का सुझाव देने वाला है.


यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों बना मुद्दा?

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड भी लोगों के बीच मुद्दा बन गया था. जस्टिस चौहान का कहना है कि यह संभव नहीं है. हम फैमिली लॉ में धर्म के अनुसार संशोधन की सिफारिश करेंगे. हम प्रत्येक धर्म की समस्याओं को चिन्हित करेंगे और उसके अनुसार हल निकाला जाएगा. हम यूनिफॉर्म सिविल कोड को नहीं ला सकते क्योंकि हम संविधान के बाहर नहीं जा सकते.

उन्होंने कहा कि संविधान के तहत मिले छूट का सम्मान किया जाना चाहिए. यूसीसी संविधान के सार को भंग कर सकती है. संविधान ने कई लोगों को छूट दी है. यहां तक कि सिविल प्रोसिड्योर कोड और क्रिमिनल प्रोसिड्योर कोड में भी छूट है इसलिए हम संविधान का उल्लंघन नहीं कर सकते.

यूनिफॉर्म सिविल कोड समाधान नहीं है और यह समग्र अधिनियम नहीं हो सकता. आप यह नहीं कह सकते कि संविधान को भूल जाएं. देश में रह रहे लोग इस पर सवाल करेंगे कि क्या उनका यहां सम्मान होगा.

पर्सनल लॉ में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता

जब जस्टिस चौहान से पूछा गया कि क्या तीन तलाक पर आए फैसले ने पर्सनल लॉ में न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति दी है. इस पर उनका कहना था कि पर्सनल लॉ पवित्र है. इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता. पर्सनल लॉ धारा 25 के तहत संविधान में है. इसे कभी भी हटाया नहीं जा सकता. यह एक गलतफहमी है. हम संविधान का उल्लंघन नहीं कर सकते. यहां तक कि अगर कोई ऐसे कानून के साथ आता है, जो संविधान का उल्लंघन करता है, तो उसे भी हटा दिया जाएगा.

मुस्लिम कानून को लेकर जो हमें सुझाव मिला है, वह यह है कि निकाहनामा में अनुबंध की तरह ही एक ऐसी शर्त होनी चाहिए जिससे ट्रिपल तलाक को समाप्त कर दिया जाए. जस्टिस चौहान ने कहा कि अगर सरकार कानून नहीं ला पाती तो यह अनुबंध ही लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा कि लॉ कमिशन को उन पहलुओं में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है, जिन पर पहले ही अदालत ने फैसला दे दिया है.

लॉ कमिशन ने पहले यूसीसी पर आम जनता से सुझाव मांगा था। 50 हजार से ज्यादा लोगों ने प्रतिक्रिया दी. जस्टिस चौहान ने बताया कि प्रतिक्रियाओं को देखने के बाद यह महसूस हुआ कि वो ज्यादातर ट्रिपल तलाक पर थीं. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा निपट गया है तो उनसब का कोई फायदा नहीं है.