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कश्मीर पर UNHCR की रिपोर्ट : जमीनी हकीकत और तथ्य कम, चीन-पाकिस्तान के लिए सुविधा ज्यादा

इस बात की प्रबल संभावना है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHCR) की रिपोर्ट की पहल चीन और पाकिस्तान के इशारे पर की गई हो.

Prakash Katoch

कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK)में कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर जारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHCR) की रिपोर्ट पर विवाद खड़ा हो गया है. भारत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस रिपोर्ट को भ्रामक, पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रह से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया है. विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र में कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए कहा है कि, UNHCR की रिपोर्ट पूरी तरह से पूर्वाग्रह से प्रेरित है और गलत तस्वीर पेश करने का प्रयास कर रही है.

दरअसल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में दोनों जगहों पर मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की अंतरराष्ट्रीय जांच कराने की मांग की गई है.


कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र की 49 पेज की पहली रिपोर्ट में नियंत्रण रेखा (LoC) के दोनों ओर के हालात का जिक्र किया गया है. इनमें जम्मू-कश्मीर (कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख क्षेत्र) और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (आजाद जम्मू-कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान) का इलाका शामिल है. लेकिन रिपोर्ट में में फोकस सिर्फ जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों पर किया गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि जुलाई 2016 और अप्रैल 2018 के दौरान कश्मीर में सुरक्षाबलों ने हाथों करीब 145 नागरिक मारे गए. लेकिन रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि मारे गए 145 लोगों में से कितने लोग आतंकवादी थे या कितने लोगों का संबंध पाकिस्तान से था. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उपरोक्त अवधि के दौरान कश्मीर में सशस्त्र समूहों (चरमपंथियों) के हाथों भी 20 नागरिक मारे गए.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHCR) के कमिश्नर जैद बिन राअद अल हुसैन ने जम्मू-कश्मीर में ज्यादा से ज्यादा संयम बरतने की मांग की है. वहीं हुसैन ने भारतीय सुरक्षाबलों पर कोई मुकदमा नहीं चलाने के रवैए की निंदा की है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों में भारतीय सुरक्षाबलों पर कोई मुकदमा नहीं चलता है, क्योंकि उन्हें 1990 के नियम के तहत ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य में लागू सशस्त्र बल (जम्मू-कश्मीर) विशेषाधिकार अधिनियम, 1990 (AFSPA) और जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम, 1978 जैसे विशेष कानूनों ने सामान्य विधि व्यवस्था में बाधा, जवाबदेही में अड़चन और मानवाधिकार उल्लंघनों के पीड़ितों के लिए उपचारात्मक अधिकार में दिक्कत पैदा की है.

हुसैन ने जम्मू-कश्मीर के हालात को लेकर मानवाधिकार काउंसिल से एक जांच आयोग गठित करने की मांग की है. हुसैन ने कहा कि 18 जून से जेनेवा में मानवाधिकार काउंसिल का तीन सप्ताह का सत्र (सेशन) शुरू हो, जहां जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के सभी मामलों और राज्य में सामूहिक कब्रों की स्वतंत्र जांच के लिए आयोग के गठन पर विचार किया जाए.

भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की इस एकतरफा रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है. भारत ने रिपोर्ट को झूठ से परिपूर्ण और भ्रामक, पक्षपातपूर्ण और पूर्वाग्रह से प्रेरित करार दिया है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट तथ्यों से परे झूठ का पुलिंदा है. भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने के लिए रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर असत्यापित जानकारियां जुटाई गईं हैं. विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा:

'संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की रिपोर्ट भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है. पूरा जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है. पाकिस्तान ने आक्रमण करके जोर-जबरदस्ती से भारतीय राज्य के एक हिस्से पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है. हम पाकिस्तान को लगातार अवैध और जबरन कब्जे वाले क्षेत्र को खाली करने के लिए कहते आ रहे हैं. रिपोर्ट में भारतीय क्षेत्र का विवरण गलत तरीके से पेश किया गया है.

यह शरारतपूर्ण, भ्रामक और अस्वीकार्य है. 'आजाद जम्मू-कश्मीर' और 'गिलगित-बाल्टिस्तान' का कोई अस्तित्व नहीं है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पूर्वाग्रह से प्रेरित है. इसमें जानबूझकर उन मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की अनदेखी की गई है जिनमें जम्मू-कश्मीर राज्य समेत भारत के हर नागरिक को संविधान के तहत गारंटी दी जाती है. भारत का संविधान देश में स्वतंत्र न्यायपालिका, मानवाधिकार आयोग, स्वतंत्र, निर्भीक और जीवंत मीडिया और एक सक्रिय सिविल सोसायटी को संरक्षण प्रदान करता है.'

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत ने अपने प्रति व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHCR) को सूचित करते हुए गहरी चिंता जताई है. भारत ने कहा है कि व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने पर संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. भारत का कहना है कि ऐसी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट से भारत की दृढ़ता और इच्छाशक्ति कमजोर नहीं हो सकती है.

सीमापार के आतंकवाद से देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए भारत सभी आवश्यक उपाय करेगा. भारत का साफ कहना है कि, बिना किसी संदेह के यह रिपोर्ट दुर्भावनापूर्ण और शरारती है. क्योंकि रिपोर्ट में पाकिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन का तो जिक्र किया गया है, लेकिन वहां के आंकड़े नहीं दिए गए हैं. जबकि भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की बाकायदा संख्या जारी की गई है.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बलूचिस्तान का कोई उल्लेख नहीं है, जहां पाकिस्तानी सेना द्वारा बिना रोक-टोक के नरसंहार किया जा रहा है और अतीत में जहां बड़ी तादाद में सामूहिक कब्रें मिलने की जानकारी मिल चुकी है. रिपोर्ट में पाकिस्तान द्वारा आतंक के एक्सपोर्ट (निर्यात) का भी कोई जिक्र नहीं है.

अफगानिस्तान में पाकिस्तान प्रोयोजित आतंकवाद को लेकर भी रिपोर्ट में कुछ भी नहीं कहा गया है. जबकि यूनाइटेड नेशंस असिस्टेंस मिशन इन अफगानिस्तान (UNAMA) समय-समय पर यह कहता आ रहा है कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में बेखौफ होकर ऑपरेट कर रहे हैं. कायदे में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वार) और वहां सक्रिय आतंकवादी समूहों का जिक्र किया जाना चाहिए था.

रिपोर्ट में गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान की सैन्य अदालतों में असंवैधानिक तरीके से लोगों की हत्याओं का भी उल्लेख नहीं किया गया है. 1949 में कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएन कंवेंशन) के प्रस्ताव में पाकिस्तान से PoK से अपनी सेना वापस हटाने को कहा गया था. यानी तब संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर में पाकिस्तानी आक्रमण, घुसपैठ और अवैध कब्जे की बात को स्वीकार किया था.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHCR) के कमिश्नर ज़ैद बिन राअद अल हुसैन अपने विचित्र तौर-तरीकों के लिए विख्यात हैं. यहां तक कि कई बार वह अपने चार्टर से परे भी चले जाते हैं. सितंबर 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान पर निशाना साधा था. हुसैन ने तब ट्रंप को कट्टर और पक्षपाती तक कह डाला था.

यही नहीं हुसैन ने रूस को भी लपेटे में ले लिया था. जिसके बाद रूस ने हुसैन के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में औपचारिक शिकायत दर्ज कराते हुए कहा था कि, UNHCR कमिश्नर अपनी सीमा के परे जा रहे हैं, उन्हें अपनी हद में रहना चाहिए और पद का ख्याल करना चाहिए.

उसी साल दिसंबर में हुसैन ने ड्रग माफिया की हत्याओं के लिए फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे की निंदा की थी. जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप डुटेर्टे ने जवाब दिया था कि वह संयुक्त राष्ट्र को जलाकर खाक कर देंगे. यूनाइटेड नेशंस मिलिट्री ऑब्जर्वेशन ग्रुप इन इंडिया एंड पाकिस्तान (UNMOGIP) तैनात होने के बावजूद, अगस्त 2016 में हुसैन ने मांग की थी कि, भारत और पाकिस्तान 'स्वतंत्र पर्यवेक्षकों' को कश्मीर में आने-जाने की इजाजत दें.

हाल ही में दो ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिनसे पता चलता है कि संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को रिश्वत दी जा सकती है. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के तंत्र में चीन भी हस्तक्षेप कर रहा है. क्योंकि यह जगजाहिर है कि UNHCR कैसे चीन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे बुरे बर्ताव और उनकी सुरक्षा की अनदेखा कर रहा है.

शी जिनपिंग (रायटर इमेज)

इससे तो यही लगता है कि UNHCR चीन के आगे नतमस्तक होकर उसकी जायज-नाजायज इच्छाओं की पूर्ति कर रहा है.हालांकि इस मामले में अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को रिश्वत दी जा रही है या नहीं.

इस बात की प्रबल संभावना है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHCR) की रिपोर्ट की पहल चीन और पाकिस्तान के इशारे पर की गई हो. क्योंकि रिपोर्ट में पाकिस्तान का उल्लेख बड़ी अधीरता के साथ किया है ताकि उसे संदेह से बचाया जा सके. UNHCR की रिपोर्ट की टाइमिंग पर भी सवालिया निशान है. क्योंकि यह रिपोर्ट फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के पूर्ण और कार्यकारी समूह की 24 से 29 जून के बीच होने वाली बैठकों से ठीक पहले आई है. रिपोर्ट के जरिए शायद FATF की बैठकों में पाकिस्तान के बचाव की रणनीति हो सकती है.

क्योंकि पूरी संभावना है कि FATF की आगामी बैठक में पाकिस्तान को ग्रे लिस्टेड किया जा सकता है. इस मामले में चीन के लिए पाकिस्तान का बचाव कर पाना मुश्किल है. लिहाजा UNHCR की रिपोर्ट का इस्तेमाल पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के मुद्दे को निक्रिय करने के लिए किया जा सकता है. भारत ने रिपोर्ट को खारिज करते हुए अपना जवाब पहले ही दे दिया है. ऐसे में भारत के लिए यह उचित समय है कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को मुक्त कराने के लिए आवाज बुलंद करे और दृढ़ता के साथ कदम बढ़ाए.