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आखिरी सांसें गिन रहा है 'तीन तलाक’, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू

लगता है कि तीन तलाक के दिन अब पूरे होने को हैं

Nazim Naqvi

उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. बीते मंगलवार उन याचिकाकर्ताओं के लिए जो, सर्वोच्च न्यायालय से ‘तीन-तलाक’ और हलाला विवाह को समाप्त करने की फरियाद कर रहे हैं, सुमंगल बन कर आया.

बीते 9 मई को ‘इंडियन मुस्लिम फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी’ के कार्यकर्ताओं ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके बुजुर्ग मौलवी मौलाना शाहबुद्दीन सलाफ़ी फ़िरदौसी के बयान से मीडिया को रु-ब-रु कराया.


मौलाना फ़िरदौसी ने ‘तीन-तलाक’ और ‘हलाला-विवाह’ की कड़े शब्दों में निंदा की. उन्होंने इसे गैर-इस्लामी और महिलाओं पर अत्याचार करने का हथियार बताया. तीन-तलाक बोलकर फौरन विवाह तोड़ना, इस्लाम का मजाक और बेटियों के खिलाफ क्रूरता भरा कदम है. ‘हलाला’ महिलाओं की गरिमा और उनके सम्मान पर डकैती डालने जैसा है.'

माना जा रहा है कि यह बयान उन याचिकाकर्ताओं के समर्थन में आया है जो तीन तलाक और हलाला-विवाह को खत्म करने की फरियाद कर रहे हैं.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दी अहम व्यवस्था

मंगलवार को ही इलाहाबाद हाई कोर्ट की वेबसाइट पर एक न्यायिक आदेश अपलोड किया गया. इसमें ‘तीन तलाक’ प्रथा के संदर्भ में, हाई कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के तहत, शादी एक अनुबंध है जिसे एकतरफा रूप से नहीं तोड़ा जा सकता है.

यह टिप्पणी आक़िल जमील की याचिका को खारिज करते हुए की गई. आक़िल जमील की पत्नी ने एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराते हुए जमील पर आरोप लगाया है कि उसने दहेज के लिए उस पर अत्याचार किया और जब मांगें पूरी नहीं हुई तो तीन-तलाक के जरिए विवाह तोड़ दिया.

पिछले मंगलवार को ही जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द के मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व में 25 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके निवास पर मिला. दो घंटे तक चली इस मुलाकात में सांप्रदायिक हिंसा, तीन तलाक और गौ-रक्षा जैसे विषयों पर मुसलामानों ने प्रधानमंत्री को अपनी समस्याओं से अवगत कराया.

अखबार में छपी खबरों के मुताबिक प्रधानमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की लोकतांत्रिक बनावट समाज के सभी वर्गों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देती है. साथ ही फिर अपना अनुरोध दोहराया कि वे ‘तीन तलाक’ का राजनीतिकरण करने से बचें.

9 मई को ही ‘तीन तलाक’ के राजनीतिकरण का पहला शिकार हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान तीन मूर्ति भवन के नेहरू स्मारक संग्रहालय में ‘तीन तलाक’ पर अपना व्याख्यान दे रहे थे.

'तीन तलाक प्रथा, संविधान, कुरान और इंसान के खिलाफ'

आरिफ़ मोहम्मद खान काफी खुश दिख रहे थे. आज उनके पास खुश होने की हर वजह मौजूद थी. ‘तीन तलाक’ की मुखालफत के लिए जिसपर ‘कुफ्र’ का फतवा लगा हो, उसे आज तीस साल बाद जब सामाजिक सुधार के लिए एक जोश दिखाई दे रहा हो तो वह खुश होगा ही.

खान ने कहा, 'तीन तलाक प्रथा, संविधान, कुरान और इंसान सबके खिलाफ है. मैं जब खड़ा हुआ तो मुझपर मजहब त्यागने का इल्जाम लगाया गया. आज मैं ये देखकर खुश हूं कि सामाजिक सुधार के लिए मुस्लिम महिलाएं खुद अपनी लडाई लड़ रही हैं'.

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उन्होंने कहा,  'इसे कुरान विरोधी मैं इसलिए कह रहा हूूं क्योंकि अल्लाह ने, सूरा ‘अत तलाक’ की पहली ही आयत में कहता है, ‘ऐ नबी, तुम लोग औरतों को तलाक दो तो उन्हें उनकी ‘इद्दत’ (अवधि) के लिए तलाक दिया करो और इद्दत के समय की ठीक-ठीक गिनती करो और अल्लाह से डरो जो तुम्हारा रब है. फिर जब वे अपनी (इद्दत की) अवधि के अंत पर पहुंचें तो या तो उन्हें भले तरीके से (अपने निकाह में) रोक रखो, या भले तरीके से उनसे अलग हो जाओ. और दो ऐसे आदमियों को गवाह बना लो जो तुममें से इंसाफ करने वाले हों और (ऐ गवाह बनने वालों) गवाही ठीक-ठीक अल्लाह के लिए अदा करो’(सूरा 65: 1-2).

खान सवाल करते हैं, 'बताइए इसमें तीन बार तलाक कहकर एक तरफा फैसला करने का हुक्म कहां है.'

खान आगे कहते हैं, 'मैं इसे पूरी तरह से मानव विरोधी इसलिए कहता हूं (जरा इस मानसिक पीड़ा का अंदाजा लगाइए) क्योंकि एक युवा मुस्लिम लड़की इस समझ के साथ बड़ी होती है कि शादी के बाद उसका शौहर (अगर चाहे) तो कभी भी उसे उसके वैवाहिक घर से बाहर निकाल सकता है. ये घोर मानव-विरोधी और अनैतिक है.'

'1986 में जागरूकता न के बराबर थी. लोग ‘मुस्लिम पर्सनल-लॉ’ के खिलाफ बोलने से डरते थे. लेकिन अब हालात बहुत बदल चुके हैं. बड़ा सुकून मिलता है ये देखकर कि आज मुस्लिम औरतें मुल्लायियत का बहादुरी से सामना कर रही हैं. कुरान अपनी आयत (7.157) में नबूअत (पैग़म्बरी) की रूपरेखा निर्धारित करते हुए कहता है, 'वह उन्हें उनके भारी बोझ और गुलामी की जंजीरों से आजाद कराता है.' इसलिए हर ईमान रखने वाले का ये फर्ज है कि वह मजहब की मध्यस्ता करने वालों से अपने आपको आजाद करें और ईश्वरीय आज्ञा का पालन करे.'

तस्वीर: प्रतीकात्मक

आरिफ मोहम्मद खान जब कुरान का हवाला देकर बात करते हैं तो ये साफ समझ में आता है कि मुल्ला किस तरह मुसलमानों को तरक्की के रास्ते पर पीछे धकेलता है, जबकि अल्लाह बार-बार इंसान को आगे बढ़ने की हिदायत देता है.

आरिफ़ कहते हैं कि 'कुरान खुले तौर पर कहता है तुम वो काम करो जिनसे इंसानियत की भलाई हो, अगर दुनिया के लिए खुद को कूड़ा-करकट बनोगे तो अल्लाह तुम्हें बर्बाद कर देगा और तुम्हें दूसरे इंसानों से बदल देगा.'

अब सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

पिछले मंगलवार 9 मई इसलिए बहुत महत्वपूर्ण बन गया क्योंकि दो दिन बाद यानी आज से सर्वोच्च न्यायालय ‘तीन-तलाक़’, हलाला-विवाह और बहुविवाह जैसी समस्याओं की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई शुरू करने जा रहा है.

हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मुसलमानों के दूसरे संगठन इस बीच 'जागरूकता अभियान' चला रहे हैं. साथ ही 5 करोड़ लोगों से पर्सनल लॉ के समर्थन में एक हस्ताक्षर अभियान भी जारी है ताकि उसे सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखा सके. अब देखना ये है कि सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला किसके पक्ष में देता है.