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क्यों अचानक से बढ़ गई है ट्रेन हादसों की गिनती

स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया सिर्फ 25 प्रतिशत पटरियों की ज़रूरत पूरी कर पा रहा है

Debobrat Ghose

गुरुवार को महज 12 घंटों के दौरान एक के बाद एक तीन ट्रेनों का पटरी से उतरना रेलवे ट्रैक की सुरक्षा की डरावनी तस्वीर पेश करता है. पहला हादसा उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में गुरुवार सुबह 6.15 बजे हुआ, जहां हावड़ा-जबलपुर शक्तिपुंज एक्सप्रेस के 7 डिब्बे पटरी से उतर गए. वहीं दूसरा हादसा दोपहर में नई दिल्ली के मिंटो रोड ब्रिज के नजदीक हुआ, जहां रांची राजधानी एक्सप्रेस के दो डिब्बे बेपटरी हो गए.

सौभाग्य से हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ. जिस जगह ये हादसा हुआ वो दिल्ली के सबसे बड़े कमर्शियल और रेजीडेंशियल हब बाराखंबा-कनॉट प्लेस इलाके में है. ऐसे में कहा जा सकता है कि एक बड़ा हादसा टल गया. जबकि तीसरा रेल हादसा महाराष्ट्र में खंडाला के नजदीक हुआ, वहां एक मालगाड़ी के दो डिब्बे पटरी से उतर गए.


एक ही दिन में हुए इन तीन रेल हादसों के बीच हमें भूलना नहीं चाहिए कि, पिछले महीने भी दो बड़ी ट्रेन दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. पहली दुर्घटना उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुई थी, जहां पुरी-हरिद्वार उत्कल एक्सप्रेस हादसे की शिकार बनी. इस दुर्घटना में 23 यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि दर्जनों लोग घायल हुए थे. जबकि 28 अगस्त को नागपुर-मुंबई दूरंतो एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी.

इन दोनों दुर्घटनाओं के बीच भी देश में कुछ छोटे-मोटे रेल हादसे हुए. ऐसा लग रहा है कि रेल हादसों का ये अंतहीन सिलसिला थमने वाला नहीं है. हर दूसरे दिन कहीं न कहीं से किसी छोटे या बड़े रेल हादसे की खबर आ ही जाती है. ऐसे में रेल यात्रियों की सुरक्षा बड़ी चिंता का विषय बन गई है.

सुरेश प्रभु को हटाकर पीयूष गोयल को रेल मंत्री बनाया जा चुका है. रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ए के मित्तल की जगह अश्वनी लोहानी ने ले ली है, इसके अलावा कई अफसरों को निलंबित भी किया जा चुका है, लेकिन तमाम उठा-पटक के बावजूद भारतीय रेलवे की स्थिति जस की तस बनी हुई है. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि, रेलवे कर्मचारियों और अफसरों का लापरवाह और खतरनाक रवैया तबतक नहीं बदलने वाला, जबतक कि सुरक्षा के मुद्दे पर नीचे से ऊपर तक बड़े बदलाव नहीं होंगे.

रेलवे बोर्ड के एक पूर्व चेयरमैन ने फर्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान इस मामले में कई अहम जानकारियां दीं, उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि, "उम्मीद है कि इस बार जो हादसे हुए उनमें साजिश के तहत पटरियों पर तोड़फोड़ नहीं की गई होगी, और हादसों के पीछे आईएसआई या कोई दूसरे आतंकवादी संगठन का हाथ नहीं होगा.

दरअसल भारतीय रेलवे की पटरियों की सुरक्षा सबसे निम्न स्तर पर पहुंच चुकी है. पटरियों के नियमित रख रखाव से लेकर पुराने और जर्जर रेलवे ट्रैक को बदलने के लिए किसी तरह का कोई काम नहीं हो रहा है.”

रेलवे बोर्ड के इस पूर्व चेयरमैन ने नाम उजागर न करने की शर्त पर आगे बताया कि, “रेलवे के सुरक्षा विभाग में कर्मचारियों की भारी कमी है, लेकिन इसके बावजूद रेलवे ने अभी तक ग्रुप सी भर्ती परीक्षा का परिणाम घोषित नहीं किया है. रेलवे में फंड की कमी के चलते सुरक्षा से समझौता किया जा रहा है.

सुरक्षा से संबंधित मामलों के लिए रेलवे को तकनीकी विशेषज्ञों से लैस एक आंतरिक ऑडिट टीम गठित करने की जरूरत है. देश में तकनीकी विशेषज्ञों की कमी नहीं है, रेलवे में खुद कई बेहतरीन तकनीकी विशेषज्ञ मौजूद हैं, वहीं कई रिटायर्ड कर्मचारियों की भी मदद ली जा सकती है. लेकिन रेल मंत्रालय इसके लिए विदेशी विशेषज्ञों को तरजीह दे रहा है, जबकि वो विदेशी हमारी जमीनी हकीकत से जरा भी परिचित नहीं हैं.”

रेलवे ट्रैक की सुरक्षा का मुद्दा इकलौती बुनियादी समस्या नहीं है, बल्कि कई इसके पीछे और कारक भी हैं, जो इस संकट को बढ़ा रहे हैं.

कर्मचारियों की कमी

भारतीय रेलवे इन दिनों कर्मचारियों की भारी कमी से जूझ रहा है, पिछले कुछ समय से सबसे ज्यादा कमी खासतौर पर पटरियों की सुरक्षा वाले विभाग में है. जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है हालात और बदतर होते जा रहे हैं, यानी लोग कम हैं, और उनपर काम का बोझ लगातार बढ़ रहा है. मोटे तौर पर, आज की तारीख में देश भर में रेलवे के विभिन्न विभागों में 1.80 लाख पद खाली हैं.

ऑल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन (एआईआरएफ) के महासचिव शिवगोपाल मिश्रा के मुताबिक, "रेलवे में सबसे महत्वपूर्ण तो उन 70 हजार ट्रैकमैन की कमी है, जो गेट मैन, की मैन, गैंग मैन और सिग्नलिंग स्टाफ के तौर पर रेलवे ट्रैक की सुरक्षा के लिए काम करते हैं. रेलवे में हर साल लगभग 40 हजार कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं, लेकिन नए लोगों की भर्ती नहीं हो रही है.

इस साल दिसंबर के अंत तक रेलवे में अनुमानित 2.20 लाख कर्मचारियों की कमी हो जाएगी. हालांकि रेलवे ने 1 लाख पदों को भरने के लिए एक आदेश जारी किया है, लेकिन भर्ती प्रक्रिया पूरा होने में दो साल का वक्त लग जाएगा. अभी हालत ये है कि रेलवे ट्रैक सुरक्षा विभाग के पास फिलहाल जरूरत से आधे कर्मचारी ही हैं.

उपकरणों और साजो-सामान की कमी

रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग और रेलवे यूनियनों का कहना है कि, रेलवे ट्रैक के रखरखाव और नवीनीकरण में उपकरणों और साजो-सामान का अभाव भी एक बड़ी बाधा है. लखनऊ डिवीजन के एआईआरएफ ने हाल ही में एक सर्वेक्षण कराया था, जिससे पता चला है कि, उस डिवीजन के 247 किमी. ट्रैक का नवीकरण लंबे अरसे से अटका हुआ है. ऐसा हाल सिर्फ लखनऊ डिवीजन का नहीं है, बल्कि रेलवे के सभी 68 डिवीजन इन समस्याओं और अभावों से जूझ रहे हैं.

एआईआरएफ महासचिव शिवगोपाल मिश्रा का कहना है कि, "मांग के आगे साजो-सामान और उपकरणों की आपूर्ति बेहद कम है. स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (एसएआईएल) रेल पटरियों का एकमात्र आपूर्तिकर्ता है, लेकिन उससे रेलवे की सिर्फ 25 फीसदी मांग ही पूरी हो पाती है. वहीं रेलवे की खरीद नीति भी दोषपूर्ण है. जिसके नतीजे में ट्रैक का रखरखाव, मरम्मत और नवीनीकरण का काम लगातार पिछड़ रहा है. इन हालात में रेलवे ट्रैक की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती. लिहाजा ट्रेनों के पटरी से उतरने जैसे हादसे अगर रोजाना होने लगें तो हमें हैरत नहीं होनी चाहिए.

पैसों की कमी

वित्तीय संसाधनों का अभाव रेलवे ट्रैक की सुरक्षा में एक और बड़ी अड़चन है. शिवगोपाल मिश्रा के मुताबिक, "ये एक दुष्चक्र है, ट्रैक के रखरखाव और नवीकरण के लिए पर्याप्त फंड जुटाना एक कठिन और बोझिल काम है. पैसों की कमी से न सिर्फ ट्रैक के सुरक्षा स्टाफ में नए कर्मचारियों की भर्ती रुकी पड़ी है, बल्कि इससे ट्रैक के नवीकरण के काम में भी काफी देरी हो चुकी है. हम ये मुद्दे सुरेश प्रभु समेत कई पूर्व रेल मंत्रियों और रेलवे बोर्ड चेयरमैन के सामने उठा चुके हैं, लेकिन किसी ने भी हमारी बात पर गौर नहीं किया. रेलवे के साथ सरकार का ये सौतेला व्यवहार समझ से परे है.”

पटरियों पर हद से ज्यादा बोझ

जनता को लुभाने के लिए सरकारें गाहे-बगाहे ट्रेनों की संख्या में इजाफे का ऐलान करती रहती हैं. इससे न सिर्फ खस्ताहाल पटरियों पर बोझ बढ़ता है, बल्कि हादसों का खतरा भी बढ़ जाता है. रेल बजट के दौरान हर साल नई ट्रेनें (खासकर सुपरफास्ट) चलाने की घोषणाएं भी हादसों को दावत देती हैं, क्योंकि पुराने और कमजोर हो चुके रेलवे ट्रैक अब और ज्यादा ट्रेनों का बोझ उठाने के काबिल नहीं बचे हैं.

रेलवे में सुरक्षा उपायों के मुद्दे पर संसद की स्थायी समिति की एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि, 2015-16 के दौरान अलग-अलग प्रकार की ट्रेन दुर्घटनाओं में जो 64 लोग मारे गए थे, उनमें से 36 लोगों की मौत ट्रेनों के पटरी से उतरने की वजह से हुई. रिपोर्ट में कहा गया है कि, टूटी और खस्ताहाल पटरियों (खासकर भीड़भाड़ वाले इलाकों में), खराब वेल्डिंग, कार्य स्थल पर अपर्याप्त सुरक्षा इंतजाम, रोलिंग स्टॉक में खामियां (वैगन और कोच में खराबी) और लोको पायलटों द्वारा खतरे के वक्त सिग्नल (एसएपीएडी) देने में गलती की वजह से सबसे ज्यादा रेल हादसे होते हैं.

काकोदकर कमेटी की रिपोर्ट में क्या है?

रेलवे की सुरक्षा की समीक्षा के लिए सितंबर 2011 में एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित की गई थी, जिसकी कमान परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और मशहूर वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोदकर को सौंपी गई थी. अपनी रिपोर्ट में काकोदकर ने भारतीय रेलवे की जर्जर तस्वीर को सबके सामने पेश किया. रिपोर्ट के मुताबिक ट्रेनों की लेट-लतीफी और गड़बड़ी की अहम वजह बुनियादी सुविधाओं और संसाधनों का अभाव है. इसके अलावा कार्यात्मक स्तर पर सशक्तिकरण की कमी भी हालात और बिगाड़ देती है.

काकोदकर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है, "खराब बुनियादी ढांचे और संसाधनों की कमी का असर रेलवे के प्रदर्शन पर पड़ रहा है. वहीं आर्थिक स्तर पर भारतीय रेलवे ढहने के कगार पर आ चुका है. इसकी हालत तबतक नहीं सुधरेगी, जबतक कि कुछ ठोस उपाय नहीं किए जाएंगे. इनमें सुरक्षा का मुद्दा सबसे अहम है, क्योंकि इससे बुनियादी ढांचे के रखरखाव की अनदेखी हो रही है"

एक नया आदेश

नए रेलमंत्री का कार्यभार संभालने के बाद पीयूष गोयल ने पुराने रेलवे ट्रैक को जल्द से जल्द बदलने का आदेश जारी किया है. उन्होंने रेलवे बोर्ड के अफसरों को निर्देश दिया है कि, वो नई पटरियों की खरीद में तेजी लाएं, ताकि अरसे से लंबित पड़े ट्रैक बदलने का काम पूरा हो. रेल यात्रा को सुरक्षित और सुखदाई बनाने की जिम्मेदारी गोयल के अलावा रेलवे बोर्ड के नए अध्यक्ष अश्वनी लोहानी पर भी है. उन्हें अपनी काबिलियत से ये साबित करना होगा कि, रेल यात्रा के दौरान मुसाफिर रात में चैन की नींद सो सकते हैं.