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TISS REPORT: मुजफ्फरपुर के उलट बिहार के सात ऐसे शेल्टर होम्स जो उम्मीद जगाते हैं

TISS की रिपोर्ट सिर्फ हैवानियत की कहानी बयान नहीं करती, ऐसे शेल्टर होम्स भी हैं जो उम्मीद की किरण जगाते हैं

Alok Kumar

मुजफ्फरपुर बालिका गृह सेक्स स्कैंडल 'ब्रांड बिहार' की मुहिम पर एक काला धब्बा बनकर सामने आया है, लेकिन टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की ऑडिट रिपोर्ट सिर्फ हैवानियत की कहानी बयान नहीं करती. इनमें सात ऐसे शेल्टर होम्स का भी जिक्र है जिनकी जमकर प्रशांसा की गई है और इन्हें पूरे देश के लिए मिसाल बताया गया है.

TISS ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संसाधनों की भारी कमी और सरकारी संरचनात्मक ढांचे में गड़बड़ियों के बीच ये शेल्टर होम्स उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आए हैं. हम एक-एक कर सातों शेल्टर होम्स के बारे में आपको बताते हैं. ये टिस की टीम के अनुभवों पर आधारित है.


1. ऑब्जर्वेशन होम, दरभंगा- कैंपस में घुसते ही खुशनुमा अहसास होता है. यहां रहने वाले बच्चों के साथ फ्री ग्रुप डिस्कशन में लगा मानो एक अलग ही मनोहारी दुनिया में जी रहे हैं. किसी ने भी किसी तरह की हिंसा की शिकायत नहीं की. स्टाफ और बच्चे सबने मिलकर सुंदर बगीचा तैयार किया है. फ्लावर गार्डन और किचन की साफ-सफाई देखने लायक है. बच्चों के लिए यहां के अधीक्षक सिर्फ मैनेजर का काम नहीं करते. वो खाली समय मिलते ही खुद इन्हें पढ़ाने में जुट जाते हैं.

कैंपस में मनोरंजन की पर्याप्त व्यवस्था है. बच्चों के लिए बैडमिंटन, वॉलीबॉल के कोर्ट बनाए गए हैं. सभी स्टाफ ने खुलकर बात की. वे सभी हमसे कुछ सीखना चाहते थे.

2. चिल्ड्रन होम, बक्सर- निर्धारित जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर यहां के स्टाफ बच्चों के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं. इससे एक सकारात्मक माहौल पैदा हुआ है. सभी स्टाफ मेंबर बच्चों के साथ समय बिताते हैं. इस संस्था के पास प्रशिक्षित शिक्षक या क्राफ्ट ट्रेनर नहीं है. इसकी कमी यहां के स्टाफ ही पूरा कर देते हैं. सभी बच्चों की पसंद का खयाल रखा जाता है. कुछ तो पेंटिंग कर रहे थे. इन लोगों ने खुद की मेहनत से एक लाइब्रेरी भी तैयार की है. ये चीजें छोटी लग सकती हैं पर बच्चों के मस्तिष्क पर इसका बहुत ही सकारात्मक असर होता है.

3. अडप्शन सेंटर, सारण- यहीं की बुनियादी संरचना भी अच्छी है और स्टाफ समर्पण भाव से काम करते हैं. कॉर्डिनेटर के पद पर काम कर रही महिला पूरे स्टाफ के लिए रोल मॉडल है. बच्चे हेल्दी मिले और बहुत खुशमिजाज दिखे. जब हमने पूछा कि फंड की कमी के बावजूद वो कैसे मैनेज कर लेते हैं तो जवाब मिला कि संगठन की सेक्रेटरी अपने बाकी प्रोजेक्ट्स का पैसा जरूरत पड़ने पर यहां लगाती हैं. किसी सूरत में बच्चों की जरूरतों से कोई समझौता नहीं किया जाता. सेक्रेटरी ने बताया कि वो इस सेंटर को मंदिर समझते हैं और उन्हें इस बात का गौरव है कि बिछड़े हुए बच्चों की सेवा का मौका मिला है.

4. चिल्ड्रन होम, कटिहार- यहां के मैनेजमेंट ने कभी यहां रह चुके ऐसे पुराने बच्चों को खोजा जो पढ़-लिखकर आगे बढ़ गए. अब वो यहां आकर छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं. इससे सिर्फ टीचर की कमी नहीं पूरी होती बल्कि बच्चों के दिलो-दिमाग पर पॉजिटिव असर होता है. यहां बारी-बारी से बच्चों को मॉनीटर बनाया जाता है जिसमें उनमें लीडरशिप की भावना आती है.

5. गर्ल्स चिल्ड्रन होम, भागलपुर- जगह की कमी के बावजूद इस संस्था ने शानदार काम किया है. यहां सभी बच्चों का जन्मदिन सेलिब्रेट किया जाता है. कोशिश होती है कि हमेशा उत्सव जैसा माहौल रहे. बच्चों को इस बात का अहसास है कि उनकी देखभाल करने के लिए कोई है.

6. ब्वॉयज चिल्ड्रन होम, पूर्णिया- इसे चलाने के लिए जिम्मेदार संस्था जिले के सम्मानित लोगों को बारी-बारी से कैंपस में बुलाती है और बच्चों के साथ उनकी बातचीत कराई जाती है. ये संस्था मोबाइल ऐप पुलिस लाइट का इस्तेमाल बच्चों के परिजनों को खोजने के लिए करती है.

7. शांति कुटीर, नालंदा- ये एक वृद्धाश्रम है. यहां रहने वाली महिलाओं के प्रति संस्था का सम्मान तारीफ के लायक है. इस संस्था के एक छोटे से फैसले ने महिलाओं को खुश कर दिया. ये हर शाम कैंपस के बाहर मंदिर जाना चाहती थीं और वहां कुछ समय बिताना चाहती थीं. उन्हें इसकी आजादी दे दी गई. इससे माहौल काफी अच्छा हुआ. संस्था इस बात का ध्यान रखती है कि जब वे बाहर जाएं तो उनकी सेवा के लिए एक स्टाफ भी साथ जाए.