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नदियों को इंसान का दर्जा तो मिला, लेकिन चुनौतियां और भी हैं

तीन नदियों और कई कुदरती संसाधनों को कानूनी तौर पर इंसान के बराबर का दर्जा मिला है

Neeraj Bajpai

अगर ब्रिटेन में किसी आदमी को तितलियां मारने की सजा हो सकती है. न्यूजीलैंड में एक नदी को इंसान का कानूनी दर्जा हासिल हो सकता है. ऐसे में भारत भला कैसे पीछे रहे. हमारे देश में तो कुदरती संसाधनों की भरमार है. हमारे यहां नदियां पवित्र मानी जाती हैं. कई नदियों को तो देवी कहकर पूजा जाता है.

हाल के दिनों में तीन नदियों और कई कुदरती संसाधनों को कानूनी तौर पर इंसान के बराबर का दर्जा मिला है. इससे अधिकारियों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. चुनौती ये कि वो कैसे अदालत का आदेश लागू करें. इन कुदरती चीजों के अधिकारों की सुरक्षा करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है.


पर्यावरण के खिलाफ जिस तरह से कदम उठाए जा रहे हैं, ऐसे में दुनिया भर में प्रदूषण फैलाने वालों, संसाधनों का दोहन करने वालों, उन्हें नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई काबिले-तारीफ है. हाल के दिनों में कुछ ऐसे मामले आए हैं जिससे पर्यावरण संरक्षण और नुकसान पहुंचाने वालों पर सख्त जुर्माने पर नए सिरे से बहस हो रही है.

मिसाल के तौर पर हाल में हुई चौंकाने वाली कुछ घटनाओं को ही लीजिए. ब्रिटेन में एक शख्स पर तितलियां मारने के जुर्म में केस चलाया गया. न्यूजीलैंड में एक नदी को इंसान का दर्जा दिया गया. हमारे देश में उत्तराखंड में हाल ही में नदियों, जंगलों और ग्लेशियर्स को इंसान की बराबरी का कानूनी दर्जा दिया गया है.

गंगा और यमुना को इंसानी दर्जा

दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती (फाइल)

पिछले महीने उत्तराखंड हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि गंगा और यमुना जिंदा इंसानों जैसी नदियां हैं. जब तक लोग इस आदेश को समझ पाते, तब तक इसी अदालत ने कई और कुदरती संसाधनों को इंसान की बराबरी का दर्जा दे डाला.

जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की बेंच ने आदेश दिया कि गंगोत्री और यमुनोत्री समेत सभी ग्लेशियर, नदियां, बरसाती नाले, झीलें, हवा, चरागाह, जंगल, तराई वाले इलाके, घास के मैदान, झरने भी जीव ही हैं. इन्हें भी इंसानों के बराबर ही हक हासिल हैं.

अदालत ने गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियरों पर खास मेहरबानी दिखाई. कोर्ट ने कहा कि गंगोत्री, हिमालय के सबसे बड़े ग्लेशियर्स में से एक है. हालांकि पिछले पच्चीस सालों से ये लगातार घट रहा है. ये करीब 850 मीटर तक पीछे हट चुका है. इसी तरह यमुनोत्री ग्लेशियर भी तेजी से कम हो रहा है. अदालत ने कहा कि ग्लेशियर में जमा पानी धरती पर मीठे पानी का सबसे बड़ा जरिया हैं.

हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि भारत में जिस तरह के अधिकार और कर्तव्य आम नागरिकों को हासिल हैं, वैसे ही हक इन ग्लेशियर्स को भी मिलें. इससे इनकी हिफाजत की जा सकेगी. इन्हें कोई भी नुकसान पहुंचाने का मतलब लोगों ने किसी इंसान पर जुल्म किया है. उन पर कानून के हिसाब से मुकदमा चलेगा.

अदालत ने अपने आदेश की व्याख्या करते हुए कहा कि, 'किसी इंसान के अधिकार और कर्तव्य समाज और सरकार को ठीक तरीके से चलाने के लिए तय किए जाते हैं. ये अधिकार इंसानों के अलावा दूसरी कुदरती चीजों को भी दिए जा सकते हैं. ताकि उसकी हिफाजत हो सके.'

अदालत ने ये भी साफ किया कि कानूनी अधिकार, मानवाधिकारों से अलग हैं. जैसे बहुत सी कंपनियों को कानूनी अधिकार हासिल होते हैं. इन्हें लागू कराने का काम कुछ लोगों का होता है. कुदरती संसाधनों के बारे में अदालत के इस आदेश के बाद, सरकार और दूसरे लोगों को इन अधिकारों को संजीदगी से लेना होगा. ग्लेशियर जैसे संवेदनशील संसाधनों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे.

अदालत ने आदेश दिया कि, 'अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए हम गंगोत्री और यमुनोत्री ग्लेशियर्स, नदियों, धाराओं, छोटी नदियों, झीलों, हवा, चरागाह, वादियों, जंगलों तराई वाले इलाकों, घास के मैदानों और झरनों को कानूनी मान्यता देते हैं. इन्हें इंसानों की तरह ही कानूनी अधिकार हासिल होंगे. इन पर संवैधानिक कर्तव्य भी लागू होंगे. हम ये आदेश इसलिए दे रहे हैं ताकि इन संसाधनों की हिफाजत हो सके. इनके अधिकारों का उल्लंघन करना और इन्हें नुकसान पहुंचाना इंसान को नुकसान पहुंचाने के बराबर ही जुर्म माना जाएगा'.

दिल्ली में यमुना का हाल

अदालत ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव और नमामि गंगे प्रोजेक्ट के निदेशक प्रवीण कुमार, गंगा सफाई अभियान के प्रमुख ईश्वर सिंह, नमानि गंगे प्रोजेक्ट के कानूनी सलाहकर, उत्तराखंड सरकार के महाधिवक्ता, चंडीगढ़ जुडिशियल एकेडमी के निदेशक बलराम गुप्ता और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील एम सी मेहता को इंसानी दर्जा पाने वाली इन कुदरती चीजों का संरक्षक बहाल किया.

अदालत ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि इन नदियों, झीलों और ग्लेशियर के पास रहने वाले लोगों को भी इनकी निगरानी के काम में शामिल किया जाए.

अदालत ने गंगा के पुनरुद्धार और पर्यावरण बचाने की कोशिश के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की तारीफ भी की. अदालत ने कहा कि हाल ही में न्यूजीलैंड की संसज ने 'टे उरेवेरा एक्ट 2014' को पास करके 'उरेवेरा नेशनल पार्क' को तमाम कानूनी अधिकार दिए थे.

न्यूजीलैंड में भी नदी को इंसानी दर्जा

इससे पहले 21 मार्च को हाई कोर्ट ने गंगा और यमुना को जिंदा इंसान के बराबर माना था और उन्हें आम इंसानों के अधिकार देने का आदेश दिया था. ये आदेश न्यूजीलैंड की एक अदालत के आदेश के कुछ दिनों बाद ही आया था. न्यूजीलैंड की संसद ने व्हांगानुई नदी को इंसानी हक अदा किए थे.

बहुत से लोग मानते हैं कि ये नदी पवित्र है. न्यूजीलैंड के आदिवासी माओरी इवी लोग इसकी पूजा करते हैं. अब इस नदी की नुमाइंदगी यही लोग करेंगे.

न्यूजीलैंड के 'ट्रीटी ऑफ वाईटांगी निगोशिएशंस' मंत्री क्रिस्टोफर फिनलेसन ने कहा कि टे अवा टुपुआ बिल का पास होना ऐतिहासिक कदम है. इसके लिए व्हांगानुई इवी लोगों ने लंबी लड़ाई लड़ी है. ताकि वो व्हांगानुई नदी पर अपने हक को हासिल कर सकें. ये लड़ाई 1870 से चली आ रही थी.

भारत में गंगा को सबसे पवित्र नदी माना जाता है. ये देश की सबसे प्रदूषित नदी भी है. इसमें रोजाना जहरीले केमिकल और गंदगी मिलते हैं. कई शहरों का सीवेज गंगाव में गिरता है. करीब ढाई हजार किलोमीटर लंबी गंगा नदी गंगोत्री से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है. यमुना इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी है. यमुना नदी भी उत्तराखंड से शुरू होती है.

कुदरती संसाधनों को लेकर हाल ही में कई विचित्र घटनाएं हुई हैं. ब्रिटेन के ब्रिस्टॉल शहर में 57 साल के फिलिप कलेन को जान बूझकर तितलियां पकड़कर मारने का मुजरिम घोषित किया गया. फिलिप ने ऐसा समरसेट और ग्लूसेस्टरशायर में साल 2015 में किया था. ब्रिटिश मीडिया के मुताबिक ये फैसला ब्रिस्टॉल के मजिस्ट्रेट ने सुनाया. जिन लार्ज ब्लू फ्लाई तितलियों को फिलिप ने मारा, उनकी नस्ल बेहद दुर्लभ है. उनके खात्मे का खतरा मंडरा रहा है. ये नीली तितलियां 1979 में विलुप्त हो गई थीं. लेकिन संरक्षण के तमाम प्रयासों की मदद से इस नस्ल को फिर से जिंदा करने में कामयाबी हासिल हुई. इन तितलियों को ब्रिटेन में कई कानूनी अधिकार हासिल हैं.