view all

सुषमा जी, किडनी के बाकी जरूरतमंदों की भी मदद कीजिए

किडनी ट्रांसप्लांट की राह में आड़े आते हैं देश के बनाए कठोर कानून

Nalini R Mohanty

ये बड़ी खुशी की बात है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन कामयाब रहा.

शनिवार को सुषमा का ऑपरेशन दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ. उनकी सेहत में तेजी से सुधार हो रहा है. अगले कुछ हफ्तों में उनके ठीक होकर अपना कामकाज संभाल लेने की उम्मीद है.


सुषमा स्वराज, मोदी सरकार की कामयाब मंत्रियों में से एक हैं. वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि चमकाने, तमाम देशों से रिश्ते सुधारने में सफल रही हैं. इसमें उनके कामकाज, छवि और बोलने के शानदार अंदाज का बड़ा रोल रहा है.

जिस तरह उन्होंने अपनी बीमारी और इलाज को दुनिया के सामने रखा. उससे उन्होंने बहुत से लोगों को अपना मुरीद बना लिया. उनके मुकाबले जयललिता की बीमारी और इलाज दोनों ही रहस्यों के पर्दे में रहे.

सुषमा स्वराज का किडनी ट्रांसप्लांट सफल

हम ये उम्मीद करते हैं कि पूरी तरह से ठीक होने के बाद सुषमा स्वराज उन लोगों के बारे में भी सोचेंगी. जो बरसों से किडनी ट्रांसप्लांट के लिए मंजूरी मिलने का इंतजार कर रहे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक देश भर में ऐसे पांच लाख लोग हैं. हम सबको पता है कि अगर किसी की पहुंच अच्छी नहीं है. या वो खास  शख्सियत नहीं है, तो उसे किडनी ट्रांसप्लांट की इजाजत लेने में बेहद मुश्किल होती है.

इस वजह से हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है.

किडनी ट्रांसप्लांट के नियम बेहद कड़े हैं. अगर आपका कोई परिजन या रिश्तेदार आपको किडनी देने को तैयार हो जाता है, तब तो आपको दिक्कत नहीं होती.

प्रतीकात्मक फोटो

निजी अस्पतालों में कम समय में ये काम हो जाता है. हां, ये बात और है कि इसमें बहुत पैसे लग जाते हैं. वहीं, सरकारी अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट की इजाजत लेने की प्रक्रिया इतनी जटिल है, कि उसमें बहुत वक्त लग जाता है.

नियम के मुताबिक अस्पताल की कमेटी ट्रांसप्लांट कराने वाले और डोनर की पड़ताल करती है. पूछताछ करती है, कागजात देखती है, तब कहीं जाकर ट्रांसप्लांट की इजाजत मिल पाती है.

किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया काफी जटिल

अगर मरीज के रिश्तेदार सरकारी मशीनरी पर तेज काम करने का दबाव बना सकते हैं, तब तो ठीक है. जिसको ये पता है कि सरकारी अस्पतालों में काम कैसे होता है, वह तो अपने लिए जल्दी से मंजूरी हासिल कर लेता है.

लेकिन जो प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार करते हैं. जिन्हें यह नहीं पता होता कि आखिर काम होता कैसे है. वह महीनों और कई बार बरसों तक परेशान रहते हैं.

ऐसे सभी मामलों में देर होती है मगर अंधेर नहीं. यानि इजाजत देर-सबेर मिल ही जाती है. यह तब होता है जब कोई परिजन या रिश्तेदार किडनी देने वाले हों.

मगर करीबी रिश्तेदार की परिभाषा एकदम साफ है. किडनी लेने वाले के माता-पिता, संतान, दादा-दादी, नाना-नानी, पोते-पोती, पति-पत्नी या भाई-बहन ही करीबी परिजन माने जाते हैं.

अगर किडनी देने वाला इनमें से एक है तो ज्यादा परेशानी नहीं होती. लेकिन अगर, ये करीबी रिश्तेदार, किसी के पास नहीं हैं, तो किडनी ट्रांसप्लांट के लिए मरीज को लंबा इंतजार करना पड़ सकता है.

करीबी रिश्तेदार के सिवा अगर कोई और शख्स आपको किडनी दान करना चाहता है. तो नियमों के मुताबिक वह यह काम आपसे लगाव की वजह से ही करना चाहे, तभी ट्रांसप्लांट की इजाजत मिलेगी.

कोई पैसे लेकर किडनी दान करना चाहता है तो इसकी मंजूरी नहीं मिलेगी. ऐसे नियम की वजह से बहुत से जरूरतमंद लोगों को किडनी नहीं मिल पाती.

किडनी दान देने वाली रिश्तेदार नहीं

अब किडनी के जरूरतमंद लोगों को ऐसे लोग कहां से मिलेंगे. जो लगाव और प्यार की वजह से किसी को किडनी दान देने को राजी होंगे. ऐसे ऑफर तो बड़े लोगों को ही मिल सकता है.

सेलेब्रिटीज के लिए ही उनके फैन मोहब्बत में किडनी दान देने को राजी हो जाएंगे. अगर किसी दिन पता चले कि अमिताभ बच्चन को किडनी की जरूरत है. तो हजारों लोग उनकी चाहत में ऐसा करने को राजी हो जाएंगे.

सुषमा स्वराज एक बड़ी राजनेता हैं. उनके मामले में भी तो ऐसा ही हुआ. जैसे ही ट्विटर पर सुषमा स्वराज ने किडनी ट्रांसप्लांट की जानकारी दी. सैकड़ों लोगों ने उन्हें किडनी दान देने का ऑफर दिया.

जैसा कि अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि सुषमा स्वराज को किडनी देने के लिए चालीस साल की एक महिला को चुना गया, जो उनकी रिश्तेदार नहीं है.

अब चूंकि सुषमा एक कद्दावर नेता हैं. मोदी सरकार में सीनियर मंत्री हैं. तो उनका ट्रांसप्लांट कम वक्त में हो गया. सुषमा ने अपनी बीमारी की जानकारी 16 नवंबर को ट्विटर पर सार्वजनिक की थी. और दस दिसंबर को किडनी ट्रांसप्लांट हो भी गया.

चार हफ्ते से भी कम समय में ये प्रक्रिया पूरी हो गई. इतने कम समय में किडनी देने वाले का चुनाव हो गया. दोनों के मेडिकल टेस्ट पूरे हो गए. मंजूरी की सारी प्रक्रिया भी पूरी कर ली गई और ट्रांसप्लांट सफल हो गया.

दूसरे जरुरतमंदों के बारे में अब सोचें 

भारत में इतने कम समय में किडनी ट्रांसप्लांट का ये रिकॉर्ड ही कहा जाएगा. जिसमें ऐसे इंसान से किडनी ली गई जो पीड़ित का रिश्तेदार नहीं था.

लेकिन ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सुषमा की शख्सियत ही ऐसी है. वो मंत्री हैं. देश को उनकी जरूरत है. ऐसे में उनकी खराब सेहत को ठीक करने के लिए जो भी करना था, जल्द से जल्द करना था.

लेकिन पार्टी और सरकार की सीनियर नेता होने के नाते सुषमा स्वराज को अब उन लोगों के बारे में सोचना चाहिए. जो सरकारी सिस्टम की ढिलाई के चलते किडनी ट्रांसप्लांट की इजाजत मिलने का इंतजार कर रहे हैं. इनमें से बहुत से लोगो को मंजूरी की रोशनी दिखाई नहीं पड़ती.

इसकी सबसे बड़ी वजह वह कमेटी होती है जो किडनी ट्रांसप्लांट की इजाजत देती है. कमेटी यह यकीन नहीं कर पाती कि कोई गैर-रिश्तेदार इंसान किसी को बिना किसी लगाव या जुड़ाव के किडनी दान करने को राजी हो गया.

सच तो यह है कि किडनी डोनर अक्सर समाज के गरीब तबके के होते हैं. ऐसे लोगों को किडनी दान देने के लिए दलाल राजी करते हैं. इसके बदले में उन्हें कुछ पैसे मिल जाते हैं.

सिस्टम से लाचार होकर मजबूरी में 'जुगाड़'

ऐसा नहीं है कि किडनी के मरीज ऐसा चाहते हैं. ऐसा उन्हें देश के सिस्टम के आगे लाचार होकर मजबूरी में करना पड़ता है. उनके पास दो ही रास्ते होते हैं. या तो पैसे देकर अपने लिए किडनी का 'जुगाड़' कर लें. या फिर सिस्टम के भरोसे बैठे रहें.

किडनी के बहुत से ट्रांसप्लांट गैर-कानूनी तरीके से होते हैं. अगर मामला सामने आ जाता है तो किडनी लेने और देने वाले के अलावा परिवार और रिश्तेदारों को भी कानूनी झंझटों से जूझना पड़ता है.

कई बार बिचौलिये और डॉक्टर तक जेल जाते हैं.

ये कानून बहुत सख्त है. बाकी कानूनों की तरह इस कानून का भी ताकतवर लोग अपने हिसाब से इस्तेमाल कर लेते हैं.

ये लोग सिर्फ 'लगाव' की वजह से किडनी दान करने वाले गैर रिश्तेदारों को ढूंढ निकालते हैं. लेकिन यह कानून उन लोगों का दुश्मन बन जाता है जो ईमानदारी से सिस्टम का पालन करते हुए किडनी ट्रांसप्लांट कराना चाहते हैं.

(मीडिया में आई खबर के मुताबिक दिल्ली के एक प्रोफेसर ने केरल के एक अनजान शख्स को किडनी देने की पेशकश की थी. लेकिन ऐसे मामले बेहद कम होते हैं).

कानून बदलवाने का काम करें

सुषमा स्वराज अपनी राजनैतिक पहुंच का इस्तेमाल कर यह कानून बदलने का काम कर सकती हैं. जिससे लोगों की मदद हो सके. इसमें इंसानियत का पहलू जुड़ सके. ताकि गरीबों का शोषण न हो. वो दलालों को किडनी बेचने पर मजबूर न हों.

सरकार ये कानून क्यों नहीं बनाती कि एक तयशुदा रकम के बदले में कोई किडनी दान कर सकता है. दान देने वाला चाहे तो उसे अपनी किडनी के बदले मोल-भाव करने की इजाजत हो. आखिर में तय रकम किडनी दान करने वाले के खाते में जमा हो जाए, तभी ट्रांसप्लांट हो.

इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक सिस्टम बनाया जाए. इससे किडनी देने और लेनेवाले, दोनों का ही भला होगा.

बदकिस्मती यह है कि हमारे नेता कभी भी जरूरत के समय काम नहीं आते. सेहत के मोर्चे पर तो वह और भी नाकाम हैं, क्योंकि इससे उनके सियासी हित नहीं सधते.

सुषमा स्वराज जिन्होंने खुद किडनी की बीमारी और ट्रांसप्लांट के दौर को झेला है. वह शायद दूसरे मरीजों का दर्द समझ सकें.

उन्हें चाहिए कि वह ऐसा कानून बनाने में मदद करें, जिससे सबका भला हो. उन्हें लाखों लोगों की दुआएं मिलेंगी.