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निर्भया गैंगरेप: जान बचाने के लिए आरोपियों के पास बचे हैं तीन ऑप्शन

क्षमा देने का फैसला पूरी तरह से राष्ट्रपति का निजी निर्णय नहीं होता

Bhasha

निर्भया गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है. दोषी मुकेश, विनय, अक्षय और पवन की अपील खारिज करते हुए सर्वोच्च अदालत ने ये निर्णय दिया.

हालांकि बचाव पक्ष के पास कुछ कानूनी अधिकार हैं जिसके चलते वो इस फैसले कि खिलाफ अपील कर सकते हैं. इन तीन रास्तों का इस्तेमाल कर सकता है बचाव पक्ष:-


फैसले के खिलाफ चारों आरोपी सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं. पुनर्विचार याचिका पर कार्यवाही करने वाली बेंच में, फांसी की सजा सुनाने वाली पीठ से ज्यादा सदस्य होने चाहिए. इस मामले में, तीन और जजों को पुनर्विचार याजिका पर कार्यवाही करने वाली बेंच में शामिल होना होगा.

अगर इस याचिका के बावजूद फांसी की सजा स्थगित नहीं होती है, तो बचाव पक्ष कोर्ट में 'क्युरेटिव पिटीशन' डाल सकता है. 2002 में 'रूपा अशोक हुर्रा और अशोक हुर्रा' केस में भी बचाव पक्ष ने इसी याचिका का इस्तेमाल किया था.

अंत में दोषियों के पास फांसी की सजा के खिलाफ, राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने का भी विकल्प होगा. संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार राष्ट्रपति फांसी की सजा को माफ कर सकते हैं, दोषियों को क्षमा दे सकते हैं, सजा को खारिज कर सकते हैं या फिर उसे बदल भी सकते हैं.

हालांकि, क्षमा देने का फैसला पूरी तरह से राष्ट्रपति का निजी निर्णय नहीं होता. उन्हें केंद्रीय मंत्रीमंडल से सलाह करके इस फैसले को अमली जामा पहनाना होता है.

(साभार: न्यूज़18)