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नानाजी देशमुख को भारत रत्न: ऐसे स्वयंसेवक जिन्होंने गांधी को भी किया मन से स्वीकार

नानाजी का जन्म 11 अक्टूबर सन 1916 को बुधवार के दिन महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था

FP Staff

नानाजी देशमुख को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से नवाजा गया है. नानाजी ताउम्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे, लेकिन उन्होंने समाजसेवा का भी काम किया और देश के बड़े विचारकों में भी गिने जाते रहे. लेकिन सबसे बड़ी बात थी उनका उदार सर्वग्राही दृष्टिकोण, जिसके चलते उन्होंने ना केवल महात्मा गांधी, बल्कि जयप्रकाश नारायण को भी मन से स्वीकार किया.

नानाजी ने कभी विवाह नहीं किया. वो सबको अपना कहते रहे. जाने माने पत्रकार स्वर्गीय प्रभाष जोशी ने उनके बारे में लिखा, नानाजी देशमुख को सब संघी मानते हैं, लेकिन वो खुद को एकनिष्ठ स्यवंसेवक कहते थे. वो खुलकर कहते थे कि मैं गांधी को मानता हूं. आखिर गांधी को मानने वाले संघ में कितने लोग हैं? नानाजी देशमुख ऐसे शख्स भी थे, जिनके मित्र और परिवार गांधी, मार्क्स, सावरकर, अरविंद और एडम स्मिथ सबको मानने वालों में रहे.


मोरारजी सरकार में मंत्री नहीं बने

1977 में मोरारजी ने जनता पार्टी के तब के जनसंघ घटक में से जिन तीन लोगों को मंत्री बनाने का ऐलान किया, उनमें एक नानाजी थे. नानाजी को उद्योग मंत्री होना था, लेकिन वे नहीं बने. इसके सालभर बाद ही उन्होंने राजनीति से संन्यास लेकर रचनात्मक कार्य में लगने की घोषणा की. दिल्ली में उन्होंने अपने मित्र दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर एक शोध संस्थान बनाया, जो देशभर में काम करता है.चित्रकूट का ग्रामोदय विश्वविद्यालय भी गांधी के ग्राम स्वराज्य की कल्पना के आधार पर उन्हीं की देन है.

बचपन गरीबी में बीता

नानाजी का जन्म 11 अक्टूबर सन 1916 को बुधवार के दिन महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था. जब वो छोटे थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया. बचपन गरीबी एवं अभाव में बीता. वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखा में जाया करते थे.

हेडगेवार से मुलाकात हुई

जब वो 9वीं कक्षा में अध्ययनरत थे, उसी समय उनकी मुलाकात संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार से हुई. वो बालक नानाजी के कामों से बहुत प्रभावित हुए. मैट्रिक की पढ़ाई पूरी होने पर डा. हेडगेवार ने नानाजी को आगे की पढ़ाई करने के लिए पिलानी जाने का परामर्श दिया. आर्थिक मदद की भी पेशकश की. लेकिन उन्होंने किसी की आर्थिक मदद नहीं ली.

डेढ़ साल तक मेहनत करके पैसा इकट्ठा किया. फिर 1937 में पिलानी गये. पढ़ाई के साथ-साथ संघ के कामों में भी लगे रहे. सन् 1940 में उन्होंने नागपुर से संघ शिक्षा वर्ग का प्रथम वर्ष पूरा किया. फिर नानाजी आगरा में संघ का कार्य देखने लगे.

नानाजी के जमीनी कार्य ने उत्तर प्रदेश में जनसंघ को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी. 1957 तक जनसंघ ने उत्तरप्रदेश के सभी जिलों में अपनी इकाइयां खड़ी कर लीं. इस दौरान नानाजी ने पूरे उत्तर प्रदेश का दौरा किया, जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही भारतीय जनसंघ उत्तर प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गई.

कर्मयोगी नानाजी ने 27 फ़रवरी, 2010 को अपनी कर्मभूमि चित्रकूट में अंतिम सांस ली. उन्होंने देह दान का संकल्प पत्र बहुत पहले ही भर दिया था. इसलिए देहांत के बाद उनका शरीर आयुर्विज्ञान संस्थान को दान दे दिया.

(न्यूज़18 के लिए संजय श्रीवास्तव)