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मोगली गर्ल: इस बार जंगल में एक कली खिली है

बहराइच जिला के पास के जंगल में बंदरों के झुंड के साथ 10 साल की एक लड़की को देखा गया

Neeraj Bajpai

हम सब के बचपन का सुपरहीरो मोगली तो आपको याद ही होगा न! लेकिन बड़े होने के बाद हम सबको मालूम है कि मोगली, द जंगल बुक का एक मशहूर चरित्र था. सिर्फ एक कहानी का पात्र.

लेकिन अब हमारे सामने एक और मोगली आ गई है, वह न तो एक बंदर है और न ही भेड़िया है, बल्कि एक सामान्य इंसान है जो दुर्घटनावश उत्तर प्रदेश के घने फैले जंगलों में भटक गई थी और अब वो एक बंदर या किसी दूसरे डरे हुए जंगली जानवरों की तरह व्यवहार करती है. इसलिए लोगों ने उसका नाम भी मोगली रख दिया है.


कहां नजर आई थी मोगली 

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचली हिस्से में पड़ता है बहराइच जिला जहां पास के जंगल में बंदरों के एक झुंड के साथ 10 साल की एक लड़की को देखा गया.

स्थानीय अस्पताल में देखने आने वाले लोग अभी भी इस मोगली बालिका को कौतूहल भरी नजरों से देखते हैं मानो वो अभी भी चिड़ियाघर की या जंगल की रहने वाली है.

लोगों को उसके भीतर जंगल बुक की कहानी का मोगली नजर आ रहा है जो रुडयार्ड किपलिंग की जंगल की कहानियों का हीरो था. मोगली भारत के पेंच इलाके में रहने वाला एक जंगली बच्चा था और जंगल में भेड़ियों के साथ उसके बड़े प्यारे रिश्ते थे.

उसकी आदतें भी बंदरों की तरह हैं 

देखने वाले बताते हैं कि अपने सामान्य मानव अंगों के बावजूद ये जंगल बालिका गुर्राती है, फुफकारती है, बुदबुदाती है. जाहिर तौर पर वह न तो कोई बोली समझती है न बोलती है.

बहराइच अस्पताल में उसकी देखभाल करने वालों के लिए हालात आसान नहीं हैं. उसके हाव-भाव बंदरों की तरह हैं और वैसा ही उसका व्यवहार भी है.

बहराइच जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डीके सिंह ने इस लेखक से कहा कि वह अब ठीक हो रही है और अब अपने पैरों पर खड़े रहने की कोशिश भी करती है.

अब उसमें बदलाव होता हुआ दिख रहा है 

वह 25 जनवरी 2017 को रेंगने वाली हालत में अस्पताल पहुंची थी और तब उसका वजन केवल 15-16 किलोग्राम था, लेकिन अब यह लगभग दुगना हो गया है. अभी भी उसके बढ़े हुए नाखून और लंबे बाल हैं और पास जाने पर कभी-कभी तो वह काटने और चिल्लाने भी लगती है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश पुलिस के एक उपनिरीक्षक सुरेश यादव अपने 20 जनवरी की रात को मोतीपुर फॉरेस्ट रेंज में कतरनिया घाट पर पेट्रोलिंग ड्यूटी पर थे. वहीं उन्हें ये बच्ची मिली थी, जो कि कंपकंपाती सर्दी के बाद भी दूसरे जानवरों की तरह बिना कपड़ों के ही सामान्य थी.

क्या थी उसके मिलने की कहानी 

हुआ यूं कि पेट्रोलिंग के दौरान अचानक उनके और उनके साथ चल रहे पुलिस जवानों के कदम अपनी जगह जैसे जम से गए जब उन्हें एक चंचल लड़की बंदरों के साथ जंगली खेल-कूद में मशगूल नजर आई.

पुलिस ने कहा कि बंदरों के साथ सामान्य गतिविधियां करते इस लड़की को देख कर वे दंग रह गए. उन्होंने देखा कि लड़की बंदरों के जैसे ही तरह-तरह की आवाजें निकालने और पेड़ों से कूदने में व्यस्त थी.

पुलिसकर्मियों ने तुरंत ही लड़की को उन बंदरों के चंगुल से बचाने का सोच लिया. काफी जद्दोजहद भरी कोशिश के बाद आखिरकार वे बंदरों को दूर भगाने में कामयाब रहे और उन्होंने उस जंगल बालिका को खींच लिया.

इसके बाद नाराज बंदरों ने पुलिस को डराने के लिए कूद-फांद शुरू कर दीं. पुलिस वाले तब बिलकुल हैरान रह गए जब लड़की ने भी उन पर बुरी तरह से गुर्राना शुरू कर दिया.

उस बच्ची को मिहिपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया क्योंकि उसके पूरे शरीर में चोट लगी थी. कुछ समय बाद जब वह बेहोश हो गई तो उसे जल्दी जिला अस्पताल ले जाना पड़ा जहां अब वह तेजी से ठीक हो रही है.

जिस वक्त उसे जंगल में देखा गया उसने कोई कोई कपड़े नहीं पहन रखे थे और उसके नाखून और बाल बेतरतीब बढ़े हुए थे.

गांव वालों ने पहले भी देखा था 

पुलिस ने कहा कि ग्रामीणों ने भी कुछ दिन पहले ऐसी ही कुछ अजीब सी चीजें देखी थीं. लेकिन इन बंदरों के बीच दखलंदाजी करने की उनकी हिम्मत नहीं पड़ी. इसलिए पुलिस को सूचित किया गया था. जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि, 'लड़की अभी भी चिल्लाना शुरू कर देती है और इंसानों को देख कर उसका व्यवहार असामान्य हो जाता है.

जब उसे बर्तन में खाना दिया जाता है, तो वह तुरंत प्लेटें उलट देती है और फिर कुछ मिनट तक उनको घूरने के बाद फिर वह जल्दी से ब्रेड उठाकर जानवरों की तरह खाना शुरू कर देती है.

वक्त लगेगा लेकिन उसके ठीक होने की है उम्मीद

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि लड़की को सामान्य रूप से व्यवहार करने में अभी समय लगेगा. सबसे पहले तो उसे ब्रश करना, स्वच्छ रहना, नहाना, कपड़े पहनना जैसी रोज की आदतें सीखनी होंगी.

उस बच्ची को शुक्रवार को किशोर न्याय बोर्ड ले जाया गया था, लेकिन वहां से निर्देश मिला कि लड़की को अस्पताल में ही एकांत में रखा जाए जहां सिर्फ कुछ पहचाने लोग ही उसके आस-पास रहें ताकि वह सामान्य हो सके.

कई डॉक्टरों का मानना है कि उसके मनोवैज्ञानिक इलाज में थोड़ा समय लग सकता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और यूएनआई (यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया) के पूर्व प्रमुख और सम्पादक रहे हैं)