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घाटी में आतंकवाद की नई रणनीति का हिस्सा है बैंक और हथियार लूटना

बैंकों पर धावा बोलने और लूटने को आतंकियों की बौखलाहट और बदली रणनीति का हिस्सा समझा जा रहा है

Manish Kumar

जम्मू-कश्मीर में बीते चार दिन से बैंक आतंकवादियों के निशाने पर हैं. आतंकवादी बैंकों में अचानक से आते होते हैं और हथियार लहराकर वहां लूटपाट कर चलते बनते हैं. इस दौरान वो लोगों का खून बहाने से भी नहीं चूकते.

गुरुवार को आंतकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के काकापोरा इलाके के एक बैंक से 3 लाख रुपये लूट लिए. इससे कुछ घंटे पहले ही पुलवामा में ही वाहीबुघ गांव के एक देहाती बैंक से 4 संदिग्धों ने 5 लाख रुपए लूट लिए थे. मंगलवार को दो अज्ञात बंदूकधारियों ने कुलगाम जिले में ही इलाकाई देहाती बैंक की यारीपुरा शाखा से 65 हजार रुपए लूट लिए.


जबकि, मई के पहले दिन आतंकवादियों ने कुलगाम जिले में जम्मू और कश्मीर बैंक की एक कैश वैन पर हमला कर उसकी सुरक्षा में तैनात पांच पुलिसकर्मियों समेत सात लोगों की हत्या कर दी. बाद में वो पुलिसकर्मियों के ऑटोमैटिक हथियार लूटकर भाग गए.

कश्मीर घाटी में बैंक लूट की घटनाओं में अचानक काफी तेजी आई है (फोटो: फेसबुक से साभार)

बैंकों पर ताबड़तोड़ धावा बोलने और लूटने को आतंकवादियों की बौखलाहट और बदली रणनीति का हिस्सा समझा जा रहा है. कश्मीर में बंदूक के बल पर बैंक लूटने का इतिहास पुराना है. घाटी के आतंकवाद के आग में झुलसने के बाद 90 के दशक में आतंकवादियों ने बैंकों को लूटने का जो काम शुरू किया, वो अब तक जारी है.

जेहाद और आजादी का नारा लगाने वाले आतंकवादी धड़ाधड़ बैंक लूट क्यों कर रहे हैं. इसकी कोई एक वजह नहीं है. कई बातें हैं जो उनकी बदली रणनीति का इशारा करती हैं.

कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं आतंकी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले साल 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद से कश्मीर में बैंक लूटने की कई वारदात हुई हैं. इससे इशारा मिलता है कि आतंकवादी कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं. सरकार की सख्ती की वजह से हवाला से होने वाला लेनदेन भी लगभग थम गया है. टेरर फंडिंग और आतंकी संगठनों के फाइनेंस पर बुरा असर पड़ा है.

500 और 1000 के नोट बंद होने से आतंकवादियों के पुराने नोट बेकार हो गए हैं. सरहद पार बैठे अपने आका के आदेश पर आतंकियों को कश्मीर के पत्थरबाजों को पेमेंट करना होता है. ये पेमेंट कैश में होता है ऐसे में पुराने नोट खराब हो जाने से पिछले कुछ महीनों में उनके पास फंड की कमी हो गई है.

जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों पर नोटबंदी की गहरी मार पड़ी है

बैंकों को लूटकर फंड हासिल करने की नई रणनीति

घाटी में हिंसा जारी रखने, हथियार खरीदने और भाड़े के आतंकवादियों को देने के लिए आतंकी संगठनों को पैसों की जरूरत पड़ती है. सीमा पर चौकसी और सख्ती के चलते आतंकियों को सरहद पार से पैसा नहीं पहुंच पा रहा है. पैसे को मोहताज हो चुके आतंकियों ने ऐसे में बैंकों को लूटकर फंड हासिल करने की नई रणनीति अपनाई है.

बैंक लूटने से जहां इन्हें बड़ी रकम मिल जाती है वहीं, बैंक जो कि सरकार और प्रशासन की छवि से जुड़े होते हैं, उसे लूटकर सरकार को चैलैंज करना भी उनका मकसद होता है. कश्मीर घाटी में अलग-अलग बैंकों की लगभग 1500 शाखाएं हैं. आतंकियों की मंशा है कि, बैंक लूट की वारदात बढ़ने से सरकार उनकी हिफाजत में अधिक सुरक्षाबलों को तैनात करने पर मजबूर होगी. इससे आतंकवाद के खिलाफ अभियान में जवानों की संख्या में कमी आएगी.

कश्मीरियों के मन में असुरक्षा और डराना है मकसद

बैंकों को लूटने वाले आतंकी नहीं चाहते कि कश्मीरी बैंकों में अपना पैसा नहीं जमा करें. बैंक चूंकि सरकार के प्रतिष्ठान होते हैं ऐसे में अगर आम कश्मीरी उसमें अपना पैसा रखता है तो एक तरह से वो भारत सरकार की नीतियों का  समर्थन करता है. आतंकवादियों को यह बात कबूल नहीं इसलिए वह बैंको पर हमला कर आम कश्मीरी के मन में असुरक्षा और डर पैदा करना चाहते हैं.

लगातार लूट की वारदातों से बैंकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं (फोटो: फेसबुक से साभार)

नोटबंदी लागू होने के बाद घाटी के ज्यादातर लोगों ने अपने पैसे बैंकों में जमा करना शुरू कर दिया है. आतंकवादी बैंकों को लूटकर लोगों को डराना चाहते हैं, ताकि वह पहले की तरह अपना पैसा बैंकों में जमा करने की जगह अपने पास रखें. लोगों के पास पैसा रहने पर आतंकी जब चाहते हैं, उनसे पैसे ले लेते हैं.

नोटबंदी के पहले कई कश्मीरी अपनी मर्जी से जमात-ए-इस्लामी और इस जैसे दूसरे आतंकी संगठनों को आजादी के नाम पर चंदा देते थे.

दक्षिण कश्मीर के चार जिलों में सबसे अधिक वारदातें

अनंतनाग, पुलवामा, कुलगाम और शोपियां में घाटी के दूसरे इलाके की तुलना में आतंकवादियों को लोकल लोगों का अधिक समर्थन मिलता है. यह भी एक वजह है कि यहीं पर बैंक लूटने और पुलिसकर्मियों से हथियार छीनने की सबसे ज्यादा वारदातें हुई हैं.

सुरक्षा एजेंसियों की मानें तो ज्यादातर स्थानीय आतंकवादी हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल हो गए हैं. हिजबुल मुजाहिदीन कश्मीर का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन है, जिसका मुखिया सैय्यद सलाउद्दीन है.

कश्मीर में सुरक्षाबलों के लिए बैंकों को लूटपाट का शिकार होने से रोकना बड़ी चुनौती है (फोटो: पीटीआई)

हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल होने वाले ज्यादातर आतंकियों के पास हथियार नहीं हैं लेकिन उन्हें सरहद पार से हथियार चलाने की बाकायदा ट्रेनिंग मिली होती है. ऐसे में बैंकों की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों पर हमला कर हथियार छीनना उन्हें आसान रास्ता नजर आता है.