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बंदूक और बमों से नहीं डरने वाली भोले की फौज, अमर है और अमर रहेगी अमरनाथ यात्रा

सोमवार को हुए हमले श्रद्धालुओं का विश्वास नहीं डिगा सके और अमरनाथ यात्रा बिना रुके लगातार जारी रही

Kinshuk Praval

अमरनाथ यात्रा पर आतंकी हमला भी असर नहीं डाल सका. भोले के भक्तों की फौज नए जोश के साथ बाबा बर्फानी के दर्शन के लिये उन रास्तों से आगे बढ़ चली जहां दहशतगर्दों ने खून बहाया.

निहत्थे श्रद्धालुओं पर गोलियां बरसाने वाले आतंकवादियों को करारा जवाब देते हुए यात्रियों का नया जत्था बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिये निकल पड़ा. मंगलवार की सुबह 3 बजे जम्मू से पहलगाम और बालटाल के लिए इस जत्थे को रवाना किया गया. भोले बाबा के दर्शन को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह देखने को मिला. शिव के भक्त जोश के साथ हर-हर महादेव और बम भोले जैसे जयकारे लगाते हुए बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए आगे बढ़ गए.


आतंकी हमले से जिंदगी कुछ पलों के लिये थम जाती है लेकिन ठहरती नहीं है. फिर जब जज्बा भक्ति का हो तो आतंकियों की गुस्ताखी की फिर बिसात क्या. एक बार फिर अमरनाथ यात्रियों ने अपने हौसलों से आतंकियों की दहशत को नेस्तनाबूत कर दिया. अमरनाथ यात्रा दोगुने जोश के साथ भोले के दर्शन के लिये जारी है क्योंकि जब सर्वशक्तिमान से बड़ा कोई नहीं हो तो फिर दहशतगर्दों की औकात क्या? यही वजह है कि अमरनाथ यात्रियों का मनोबल आतंकी हमला भी नहीं डिगा सका है.

बाबा बर्फानी के दर्शन के लिये निकले यात्रियों ने अपनी आंखों से वो खूनी मंजर देखा. अपने साथियों को मरते देखा. हमले में लोगों को घायल होते देखा. चीख-पुकार के उस शोर में जिंदगी और मौत के फासले को करीब से देखा. लेकिन इन सबके बावजूद आस्था पर आतंक को हावी नहीं होने दिया. भक्ति का कारवां एक बार फिर उसी जोश के साथ आगे बढ़ चला.

इससे पहले भी साल 2000 से लगातार तीन साल तक अमरनाथ यात्रियों पर हमले हुए. कई तीर्थयात्री हमले में मारे गए. लेकिन उसके बावजूद आस्था का प्रवाह रुका नहीं. आतंकियों ने तमाम कोशिशें कर धार्मिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश की. हिंदू तीर्थयात्रियों पर आतंकी हमला सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने के लिये भी सोची-समझी साजिश थी. लेकिन उसके बावजूद आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सके.

1 अगस्त, 2000 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 17 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी. कुल 25 लोग मारे गए थे. केंद्र में उस वक्त की एनडीए की सरकार थी. हमले के लिए लश्कर-ए-तैयबा को जिम्मेदार माना गया था. लेकिन साल 2008 से 2016 तक घाटी में विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी के दौर के बावजूद कभी अमरनाथ यात्रियों को निशाना नहीं बनाया गया.

90 के दशक की शुरुआत में कश्मीर में आतंक चरम पर था. उस वक्त आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार ने अमरनाथ यात्रा को बंद कराने के लिये हमले की कोशिश की थी. लेकिन घाटी के स्थानीय आतंकियों की मदद ना मिल पाने से साजिश कामयाब नहीं हो सकी थी.

आतंकी चरवाहे के वेश में आए थे. उन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारने के लिये बस पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. ये विडंबना ही है कि सोलहवीं सदी में एक मुस्लिम चरवाहे ने ही अमरनाथ गुफा का पता ढूंढा था. अब चरवाहे के वेश में आतंकी अमरनाथ यात्रियों को ढूंढ कर निशाना बना रहे हैं.

लेकिन आतंक से आस्था की राह कभी रुकी नहीं है. इस बार अमरनाथ यात्रियों पर हमला कर आतंकियों ने अपनी ही मौत की सेल्फी ले ली है.