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सैफ-करीना के बेटे तैमूर अली खान के नाम पर विवाद क्यों?

इतिहास की घटनाअों को सांप्रदायिक चश्मे से देखने की कोशिश में हम अपने वर्तमान को भी रक्तरंजित कर देंगे

सुरेश बाफना

हिन्दी फिल्म अभिनेता सैफ अली खान और अभिनेत्री करीना कपूर ने अपने बेटे का नाम तैमूर अली खान पटौदी रखकर सात सौ साल पुराने इतिहास को फिर से ताजा कर दिया.

सोशल मीडिया पर हर बात पर अपनी राय रखने वालों ने फैसला सुना दिया कि बेटे का नाम तैमूर अली खान पटौदी रखकर सैफ-करीना ने भारतीयों का नरसंहार करनेवाले शासक तिमूर लंग को महिमामं‍डित कर दिया है.


भाषा और इतिहास कुछ और कहते हैं

कनाडा में रहनेवाले पाकिस्तानी मूल के लेखक तारिक फतेह ने ट्वीट करके कहा कि सैफ अली खान ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखकर यह साबित किया है कि या तो वे अशिक्षित हैं या अहंकारी हैं.

तारिक साहब को यदि भाषा विज्ञान या इतिहास की सही जानकारी होती तो शायद वे इस तरह की टिप्पणी नहीं करते.

फ़ारसी भाषा में ‘तिमुर’ शब्द का अर्थ लोहा होता है.

1336 में उज्बेकिस्तान के शहर केश में जन्मे तिमुर लंग के मूल धर्म को लेकर इतिहासकारों में एक राय नहीं है. लेकिन इस बात पर एक राय है कि अपनी सल्तनत की भौगोलिक सीमाअों का विस्तार करने के लिए तिमुर लंग ने इस्लाम धर्म का भरपूर इस्तेमाल किया.

उसको ‘इस्लाम की तलवार’ के रूप में भी जाना जाता था. तिमुर लंग के बारे में कहा जाता है कि जब वह किशोर था, तब चोट लगने से उसका एक पैर कमजोर हो गया था और वह लंगड़ाकर चलता था.

किशोर अवस्था में वह जानवरों की चोरी करता था. इसी किशोर ने वयस्क होने पर चंगेज खान की सल्तनत का विस्तार कर उसे टर्की, सीरिया, ईरान, इराक, मध्य एशिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर उत्तर-पश्चिम भारत तक फैला दिया.

इतिहासकारों का अनुमान है कि अपने सैन्य अभियानों के दौरान तिमुर लंग ने 1 करोड़ 70 लाख लोगों को मौत के घाट उतारा था. मारे जानेवालों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या हिंदुओं से अधिक रही है. इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि तिमुरलंग ने केवल हिंदुओं का ही नरसंहार किया था.

तैमूर शब्द को भाषा के साथ जोड़ा जाए तो उसका वह अर्थ नहीं है, जो ऐतिहासिक चरित्र तिमुर लंग के साथ जोड़कर आम तौर पर समझा जाता है. तिमुर लंग भी अन्य चौदहवीं शताब्दी के शासकों की तरह था, जो युद्ध व कूटनीति के माध्यम से अपनी सल्तनत की सीमाअों का विस्तार कर रहा था.

इतिहास की घटनाओं को वर्तमान से अलग रखना जरूरी

लोकतांत्रिक भारत में हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपने बच्चे का नामकरण किसी विदेशी भाषा के शब्द या ऐतिहासिक चरित्र के आधार पर कर सकता है.

इतिहास की घटनाअों को यदि सांप्रदायिक चश्मे से देखने की कोशिश की जाएगी तो हम अपने वर्तमान को भी रक्तरंजित कर देंगे.

पिछले कुछ सालों के दौरान हमारे देश में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी 500-1000 साल पुरानी घटनाअों के आधार पर अनावश्यक विवाद खड़ा करने की कोशिश हो रही है. बाबर के जमाने में जो कुछ हुआ, उसका बदला आज लिया जा रहा है. प्रसंगवश बाबर भी तिमुर लंग का वंशज रहा है.

इतिहास की घटनाअों को वास्तविक तथ्यों की बजाय धार्मिक भावनाअों के आधार पर विश्लेषित कर नए विवाद पैदा किए जा रहे हैं. इन विवादों का एकमात्र लक्ष्य राजनीतिक लाभ पाना है.

सोवियत संघ की कम्युनिस्ट क्रांति के जनक जोसेफ स्टालिन को विश्व के बड़े तानाशाह के तौर पर देखा जाता है, जिसने लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा था. तमिलनाडु के पूर्व मुख्‍यमंत्री एम.करुणानिधि ने अपने बेटे का नाम स्टालिन रखा तो किसी ने कोई विवाद खड़ा नहीं किया.

तिमुर लंग के एक बेटे का नाम शाहरुख था, जिसने उसकी मौत के बाद तख्त संभाला था. इस लिहाज से हिन्दी फिल्मों के बादशाह माने-जानेवाले शाहरुख खान को क्या अपना नाम बदल लेना चाहिए?