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सुषमा स्वराज की ट्रोलिंग : औरत की आजाद सोच और स्वतंत्र कार्यशैली को दबाने की कोशिश !

एक दिन पहले ही यूएन जब ये रिपोर्ट जारी करता है कि भारत दुनिया में रहने वाली महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है तो हमें ये सोचना चाहिए कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है

Swati Arjun

पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पर जिस शख्स को लगातार ट्रोल और हमले का शिकार बनाया गया वो भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज थीं. और जिस वक्त उन्हें इस हमले का शिकार बनाया गया वे देश से बाहर किसी दूसरे देश में अपने पद के अनुकूल ड्यूटी निभा रही थीं. लेकिन, वापस लौटने पर जब उन्होंने अपने ट्विटर टाइमलाइन पर उनको दी जा रही गालियां और कमेंट देखे तो उन्हें लाइक कर अपने फॉलोअर्स के साथ शेयर किया, जिसे बाद में हम सबने पढ़ा.

पहले उस कारण का जिक्र, जिसकी वजह से सुषमा स्वराज को इस हमले का शिकार होना पड़ा. वजह थी एक अंतरधार्मिक दंपति का उनसे वीजा के लिए मदद की गुहार लगाना और पासपोर्ट दफ्तर के एक अधिकारी के गलत बर्ताव की शिकायत करना, जिसका नाम विकास मिश्रा था. स्वराज ने तत्काल कार्रवाई करते हुए न सिर्फ पीड़ित दंपति को वीजा दिलवाया बल्कि आरोपी अधिकारी का ट्रांसफर भी कर दिया गया. हालांकि, अब ये मामला आगे बढ़ चुका है और दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप और नए सबूत सामने आ रहे हैं, लेकिन स्वराज इन सभी खुलासों से पहले ही ऑनलाइन ट्रोलिंग की शिकार हो गईं.


अब मौजूदा समय में किसी की सोशल मीडिया द्वारा की गई ट्रोलिंग, अब्यूजिंग या लिंचिंग कोई नई बात नहीं है. खासकर, तब जब सामने एक महिला हो. एक मुखर, सफल, मजबूत और स्वतंत्र महिला. ऐसी महिला जो अपने पांव पर खड़ी हो, जिसकी एक सामाजिक, व्यवसायिक और राष्ट्रीय पहचान हो. जो जिस क्षेत्र में कार्यरत हों, वहां पूरे दमखम से अपनी उपस्थिती दर्ज करा रही हो. जो देश और दुनिया में होने वाली हर घटना पर अपनी अलग राय रखती हो और जो किसी भी तरह का निर्णय लेने के लिए किसी पुरुष पर निर्भर न हो. हम सब इस पैटर्न के तहत होने वाले हमलों के आदि हो चुके हैं- या यूं कहे कि उसको लेकर अभ्यस्त हो रहे हैं. लेकिन विदेश मंत्री पर किया गया ये हमला अलग था- गंभीर और अमानवीय.

जैसे किसी ने कहा कि स्वराज का फैसला उन्हें डोनेट किए गए किसी मुस्लिम शख्स़ की किडनी के कारण है, या कि अच्छा होता कि वे मर गईं होतीं इत्यादि. इन कमेंट्स को पढ़कर ऐसा लगा कि कमेंट करने वाले देश की विदेश मंत्री नहीं बल्कि किसी आम पब्लिक पर्सनैलिटी को कोस रहे हैं- जैसे बरखा दत्त, सागारिका घोष, स्वरा भास्कर, राणा अयूब, मंदिरा बेदी, ट्विंकल खन्ना आदि. स्वराज से पहले स्मृति ईरानी, स्वाति मालिवाल और अल्का लांबा पर भी ऐसे हमले हो चुके हैं, लेकिन इन सबकी तुलना में स्वराज का कद काफी बड़ा है.

वे देश की विदेश-मंत्री होने के अलावा वे एक बेहद सम्मानित राजनेता हैं.

वे देश की विदेश-मंत्री होने के अलावा वे एक बेहद सम्मानित राजनेता हैं, लगातार सात बार संसद सदस्य रह चुकी हैं, दिल्ली की मुख्यमंत्री और संसद में प्रतिपक्ष की नेता भी. कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर न सिर्फ भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं बल्कि पीएम मोदी के मंत्रीमंडल की सबसे प्रखर नेताओं में से एक हैं. इतना कि बीमारी के दौरान महीनों काम से दूर रहने के बाद भी उनकी जगह किसी और मंत्रालय का काम सौंपने के बारे में भी सोचा न गया.  सुषमा स्वराज की महत्ता क्या है ये न सिर्फ उनकी पार्टी और नेताओं को पता है बल्कि विपक्ष को भी- तभी उन पर हुए इन निजी हमलों का कांग्रेस पार्टी ने भी ट्वीट के ज़रिए विरोध किया.

लेकिन सवाल उठता है कि सुषमा ही क्यों? इन हमलों ने ये तो साबित कर ही दिया कि हम जिस आईटी सेल और पेड ट्रोल्स की बातें लगातार करते आ रहे हैं उनमें भी एक बड़ा वर्ग ऐसा छिपा है जो- किसी पार्टी या विचारधारा से प्रभावित नहीं है. ये लोग जरूरत पड़ने पर अपने नेताओं पर भी हमलावर हो सकते हैं– अगर वे उनकी सोच के खिलाफ जाते हैं तो.

इस पूरे मसले पर अगर ध्यान से विचार करें तो- इन ट्रोल्स का गुस्सा सुषमा पर इसलिए फूटा क्योंकि उन्होंने मुस्लिम से शादी करने वाली हिंदु लड़की की मदद की थी. जिस अधिकारी पर गाज गिरी वो न सिर्फ बहुसंख्यक बल्कि ब्राह्मण जाति से था, जिसने आग में घी डालने का काम किया और पूरा मामला बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का हो गया. और निशाने पर एक महिला विदेशमंत्री आ गईं. क्योंकि इस देश में महिला होना भी माईनॉरिटी की श्रेणी में ही आता है.

हमलावर कोई भी हो चाहे वो हमारे सामने खड़ा हो या वर्चुअल दुनिया में बिना चेहरे या नाम के मौजूद हो. उसकी मानसिकता हमेशा उस आवाज को चुप कराने की होती है जिसकी संख्या कम होती है. लेकिन उसकी आवाज अक्सर मुखर और बुलंद होती है. वो हमेशा गुट बनाकर आता है और भीड़ की शक्ल में एक अकेले और निहत्थे व्यक्ति पर हमला करता है.

ज्य़ादा दिन नहीं हुए जब साल 2016 के अमेरिकी आम चुनावों के ठीक बाद अमेरिका के सैंनफ्रांसिस्को स्थित ट्विट के हेडक्वार्टर में निराशा का माहौल था, कई लोग फूट-फूट कर रो रहे थे, ऐसा इसलिए नहीं था कि वहां के सभी कर्मचारी डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बने जाने नाखुश थे बल्कि ऐसा इसलिए था कि वे सब इस बात से दुखी थे कि चुनावों के दौरान वे जिस कंपनी या प्लैटफॉर्म के लिए काम कर रहे हैं उसकी वजह से उनके देश में एक बहुत ही गंदा और ज़हरीला माहौल तैयार हो गया था. जिसका ख़ामियाजा डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को उठाना पड़ा.

ट्रंप के मुकाबले ज्यादा लोकप्रिय और अनुभवी होने के बावजूद हिलेरी क्लिंटन पर जिस तरह से निजी हमले किए गए, उसने अमेरिकी चुनाव का नतीजा ही बदलकर रख दिया. हालांकि- इसके पीछे ट्रंप का ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया कंपनियों में निवेश भी एक बड़ा कारण बनकर सामने आया. ये अलग बात है कि चुनाव के नतीजों के बाद ट्विटर के दफ़्तर में काम कर रहे सैकड़ों लोगों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. जबकि दोनों नेताओं के बीच ट्वीटर वॉर आज तक जारी है. लेकिन हिलेरी जहां अपने हमलों में राजनीतिक और नीतिगत मुद्दे उठाती हैं, वहीं ट्रंप के हमले अक्सर निजी होते हैं जिनमें वे हिलेरी की उम्र, रंग-रूप, उनके पति बिल क्लिंटन के साथ उनके रिश्ते, मोनिका लेविंस्की मुद्दा और उनकी लंबाई तक पर हमला होता है.

ट्रंप ने खुलेआम हिलेरी चुनाव प्रचार के दौरान एक बदसूरत महिला भी कहा था. सुषमा स्वराज की इसी पहचान ने उन्हें एक आम से खास महिला बना दिया है. जो स्वाभाविक तौर पर उन्हें ट्रोल्स या हमलावरों की नजर में एक आसान शिकार बनाता है. उनकी एक स्वतंत्र राष्ट्रीय छवि ने उन्हें अपनी ही पार्टी के समर्थकों के गुस्से का शिकार बना दिया. स्वराज पहली महिला नहीं हैं जो इस सबकी शिकार हुईं हैं, उनसे पहले अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन, भारत में कई महिला पत्रकारों और सेलिब्रिटीज के साथ भी ऐसा हो चुका है.

कनाडा की महिला नेताओं में से एक रैचेल एने नोटले साल 2015 से अलबर्टा प्रांत की प्रमुख हैं, लेकिन अपने राजनीतिक विचारों के लिए उन्हें भी जान से मार दिए जाने की धमकी दी जाती है, ठीक इसी तरह से वहां की मुस्लिम उदारवादी नेता इक़रा खालिद को इस्लामोफोबिया के खिलाफ़ विवादित प्रस्ताव संसद में लाने के बाद न सिर्फ उन्हें उनकी हैसियत दिखाने की धमकी दी जाती है बल्कि उनके खिलाफ़ नस्लीय और पुरुषवादी हमलों का डर दिखाया जाता है. नोबेल विजेता पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई भी कई बार अपनी विचारों को लेकर ट्रोल हुईं हैं.

वापस अपने देश में लौटें ये लिस्ट बेहद लंबी है जिसमें लेखिका शोभा डे और अदाकारा प्रियंका चोपड़ा से लेकर भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिथाली राज और पत्रकार-एंकर फाए-डिसूज़ा, एक्टिविस्ट कविता कृष्णन और मीना कंडास्वामी भी शामिल हैं. साउथ की अदाकारा रह चुकीं खुश्बू को भी अक्सर अपने विचारों और मुसलमान होने का खामियाजा सोशल मीडिया पर उठाना पड़ता है. इन सभी महिलाओं को उनके द्वारा दिए गए किसी राजनीतिक या सामाजिक बयान या विचार के जवाब में उनपर निजी और अमानवीय हमले किए गए हैं. जिसमें उनकी हत्या से लेकर रेप, गैंगरेप और विद्रुप मानसिक उत्पीड़न का डर दिखाया जाता है.

हमलावर कोई भी हो चाहे वो हमारे सामने खड़ा हो या वर्चुअल दुनिया में बिना चेहरे या नाम के मौजूद हो- उसकी मानसिकता हमेशा उस आवाज को चुप कराने की होती है जिसकी संख्या कम होती है- लेकिन उसकी आवाज़ अक्सर मुख़र और बुलंद होती है. वो हमेशा गुट बनाकर आता है और भीड़ की शक्ल में एक अकेले और निहत्थे व्यक्ति पर हमला करता है. उसे लगता है कि जो अकेला है या जिसकी गिनती बहुसंख्यकों से कम है, पर वो अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है....पहले उसे कुचलो. स्वराज और ये सभी महिलाएं इसी मानसिकता की शिकार हैं. चार साल तक सफलतापूर्वक देश की विदेशमंत्री की हैसियत से काम करते हुए कभी भी ऐसा मौका नहीं आया है जब उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए देश के नागिरकों के साथ भेदभाव किया हो- और शायद इसलिए उनके प्रशंसकों और समर्थकों में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो विभिन्न पार्टियों के नेता और फॉलोअर्स हैं. शायद इसी पहचान ने स्वराज को एक आम से ख़ास का दर्जा दे दिया है- जो स्वाभाविक तौर पर उन्हें ट्रोल्स या हमलावरों की नज़र में एक आसान शिकार बनाता है.

हम चाहे इसे हमारी सामाजिक मूल्यों में गिरावट मान लें या गंभीर मुद्दों का सामान्यीकरण लेकिन जैसे रेप और बलात्कार जैसे शब्द अब हमें झकझोरते नहीं वैसे ही ट्रोलिंग जैसे शब्द भी हमारी आम जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं, कहीं न कहीं हम इन्हें स्वीकार्यता दे रहे हैं. ये हमारे जीवन में आ रहे नैतिक गिरावट की सार्वजनिक मंचों पर अभिव्यक्ति भर है. डिजिटल माध्यमों ने जिस तरह से हमारी जिंदगियों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है उसमें असल और वर्चुअल का फर्क मिटता जा रहा है.

एक दिन पहले ही यूएन जब ये रिपोर्ट जारी करता है कि भारत दुनिया में रहने वाली महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है तो हमें ये सोचना चाहिए कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है. हिंसा सिर्फ बलात्कार और हत्या नहीं होती- हिंसा की शुरुआत उस सोच से होती है जहां आप एक महिला को उसकी आजाद सोच और स्वतंत्र कार्यशैली का स्वागत उसके न होने या खत्म हो जाने या मर जाने से करते हैं. कन्या भ्रूण हत्या और सती प्रथा जैसी परिपाटी शायद इसी सोच का नतीजा है.

सोचकर देखें- कि दुनिया के इन तमाम देशों की इन ताकतवर और आजादख्याल महिलाओं को सार्वजनिक और राजनीतिक मंचों पर जब अपनी बात कहने, रखने या व्यक्त करने, या किसी संस्थागत या राजनीतिक फैसला लेने पर मरने या मार देने की बात कही जाए- उस देश या समाज में एक आम महिला के लिए घर की चारदिवारी के भीतर अपने मन की बात कहने के लिए कितनी हिम्मत की जरूरत पड़ती होगी और ट्रोलिंग की असल शुरुआत कहां से हो जाती है.