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सुरेश प्रभु की इस्तीफे की पेशकश: बहुत देर कर दी प्रभु आते-आते?

ट्रेनों की लेटलतीफी देखकर मुसाफिर तो यही कह रहे होंगे कि हे प्रभु तूने इतनी देर क्यों कर दी

Amitesh

रेल मंत्री सुरेश प्रभु के इस्तीफे की पेशकश के बाद रेल मुसाफिर अब राहत की सांस ले रहे होंगे. स्टेशन पर भागते-दौड़ते मुसाफिर अब रेल के डिब्बे में बैठने से घबराने के बजाए मन ही मन सोच रहे होंगे, बस अब चंद दिनों की बात है. प्रभु से छुटकारा जो मिलने वाला है.

रेल में यात्रा करने से डर रहे हैं यात्री


सुरेश प्रभु की अंतरात्मा की आवाज बाहर आ गई है. प्रधानमंत्री से मिलकर प्रभु ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफे की पेशकश कर दी है. लेकिन, रेलवे मुसाफिरों को लग रहा होगा कि काश प्रभु की अंतरात्मा पहले ही इस तरह की आवाज दे रही होती. शायद इतने हादसे ना होते और हादसे के शिकार लोगों की जिंदगी बच गई होती.

फिर भी देर आए दुरुस्त आए. देर से ही सही प्रभु ने रेलवे में सुधार की अपनी कोशिश को अब अलविदा कहने का मन बना लिया है. हो सकता है कि उन्हें इस बात का आभास भी हो गया हो कि अगर वो अंतरात्मा की आवाज नहीं सुनते तो फिर उनको ज्यादा बड़ा सदमा लग सकता है. रेल मंत्रालय के पद से उनकी विदाई हो सकती है.

ऐसे में प्रभु ने पहले ही अपनी तरफ से पद त्यागने की इच्छा जता दी. कैबिनेट में फेरबदल होने वाला है. लेकिन, फेरबदल के पहले लगातार दो रेलवे दुर्घटनाओं ने पूरे मंत्रालय और काम करने के तरीके पर सवाल खड़े कर दिए.

पहले मुजफ्फरनगर के पास खतौली में उत्कल एक्सप्रेस की दुर्घटना और फिर उसके तुंरत बाद कानपुर के पास औरैया में कैफियत एक्सप्रेस के डंपर से टकराने की घटना ने रेल यात्रियों को अंदर से डरा कर रख दिया.

ऐसे में सुरेश प्रभु को लगने लगा कि उनकी विदाई हो सकती है, लिहाजा प्रधानमंत्री से मिलकर अपने पद से हटने की इच्छा जता दी. हालांकि प्रधानमंत्री ने उन्हें थोड़ा इंतजार करने को कहा है.

क्या प्रभु को रक्षा मंत्रालय देने की तैयारी में हैं पीएम?

प्रधानमंत्री मोदी ने सुरेश प्रभु को तात्कालिक राहत ही दी है. संकेत साफ है कि अगले कैबिनेट विस्तार में रेलवे मंत्रालय से उनकी छुट्टी हो सकती है.

हालांकि, प्रभु कैबिनेट में बने रहेंगे या उन्हें दूसरा कोई मंत्रालय दिया जाएगा, इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. इस वक्त रक्षा मंत्रालय से लेकर पर्यावरण मंत्रालय तक खाली है. दोनों जगहों में कोई फुलटाइम मंत्री नहीं है.

ऐसे में सुरेश प्रभु के रेलवे मंत्रालय से हटाकर रक्षा मंत्रालय भेजे जाने को लेकर भी कयास लगाए जा रहे थे. हालांकि यह कयास सुरेश प्रभु के पहले के परफॉर्मेंस के आधार पर ही लगाया जा रहा था. रेलवे से उनकी विदाई की अटकलें पहले से ही लगाई जा रही थीं, लेकिन, हालिया रेल दुर्घटनाओं ने इन अटकलों को हकीकत में बदल दिया है.

अब सवाल है कि रेल मंत्रालय में इस तरह के प्रदर्शन करने के बाद सुरेश प्रभु को क्या रक्षा जैसे बड़े मंत्रालय की जिम्मेदारी दी जा सकती है. इसको लेकर बड़ा सवाल बना हुआ है. अगर ऐसा नहीं हो पाया तो फिर सुरेश प्रभु एक बार फिर से अपने पुराने पर्यावरण मंत्रालय वापस भेजे जा सकते हैं.

वाजपेयी सरकार में पर्यावरण मंत्री रह चुके सुरेश प्रभु एक बार फिर से नदियों को जोड़ने की परियोजना पर काम करते दिख सकते हैं.

रेलवे में सुधार के नाम पर आनन-फानन में मोदी सरकार में लाए गए सुरेश प्रभु का कार्यकाल रेलवे में सुधार के बजाए रेल हादसों के लिए ज्यादा याद किया जाएगा.

मोदी सरकार के पहले कैबिनेट विस्तार में ही सुरेश प्रभु को सीधे रेल मंत्री बना दिया गया. उस वक्त वो किसी सदन के सदस्य भी नहीं थे. सदन की बात तो दूर प्रभु बीजेपी के भी सदस्य नहीं थे. लेकिन, शिवसेना से इस्तीफा और बीजेपी की सदस्यता दिलाकर उनकी कैबिनेट में इंट्री हुई थी.

मंजिल तक नहीं पहुंचा पाए सुरेश प्रभु!

प्रभु की तरफ से बुलेट ट्रेन चलाने की बात होती रही, लेकिन, मानवीय गलतियों के चलते हो रहे हादसों और लापरवाही से प्रभु के कार्यकाल में सैकड़ों लोगों की जान चली गई. पटरियों की मरम्मत और रेलवे सेफ्टी की बात महज कागजों में ही सिमट कर रह गई. यहां तक कि ट्रेनों की लेटलतीफी ने रेल में सफर करने वाले मुसाफिरों को परेशान कर दिया.

अपने रेल मंत्री के कार्यकाल के दौरान सुरेश प्रभु ट्विटर पर ही चहकते रह गए. ट्विट करने पर बच्चों को दूध से लेकर बीमार मुसाफिरों को जरूरी दवाईयों की व्यवस्था भी हुई. लेकिन, रेल की लेटलतीफी और हादसों ने प्रभु के इन सभी कामों पर पानी ही फेरने का काम किया.

सुरेश प्रभु के कार्यकाल के दौरान रेलवे ने यात्री किराए में बढ़ोत्तरी भी नहीं की. लेकिन, पिछले दरवाजे से फ्लेक्सी फेयर प्लान के तहत राजधानी, शताब्दी जैसी ट्रेनों में यात्रियों से पैसे भी वसूले गए. पिछले दरवाजे से की जा रही इन कोशिशों पर भी सवाल खड़े होते रहे. फिर भी, यात्रियों को अपनी जान की परवाह ज्यादा दिख रही थी.

अगर सुरेश प्रभु सही सलामत रेलवे यात्रियों को अपनी मंजिल तक पहुंचाने में सफल हो जाते तो शायद आज उन्हें इस कदर नैतिकता की दुहाई नहीं देनी पड़ती. उन्हें नैतिकता के नाम पर इस्तीफे की पेशकश ना करनी पड़ती.

लेकिन, प्रभु के इस्तीफे की पेशकश के बाद भी उनकी छवि सुधरती नहीं दिख रही है. बल्कि रेलवे मुसाफिर तो यही कह रहे होंगे कि हे प्रभु तूने इतनी देर क्यों कर दी.