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राज्यसभा चुनाव में NOTA की इजाजत नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा था कि नोटा की शुरुआत करके चुनाव आयोग मतदान नहीं करने को वैधता प्रदान कर रहा है

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यसभा चुनाव में ‘इनमें से कोई नहीं (नोटा)’ विकल्प की अनुमति देने से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने आयोग की अधिसूचना पर सवाल उठाते हुए कहा कि नोटा सीधे चुनाव में सामान्य मतदाताओं के इस्तेमाल के लिए बनाया गया है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने राज्यसभा चुनाव के मतपत्रों में नोटा के विकल्प की इजाजत देने वाली चुनाव आयोग की अधिसूचना को रद्द कर दिया.


यह फैसला शैलेष मनुभाई परमार की 2017 में दायर की गई याचिका पर आया है. पिछले राज्यसभा चुनाव में वह गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक थे जिसमें पार्टी ने सांसद अहमद पटेल को उतारा था.

परमार ने मतपत्रों में नोटा के विकल्प की इजाजत देने वाली आयोग की अधिसूचना को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि नोटा की शुरुआत करके चुनाव आयोग मतदान नहीं करने को वैधता प्रदान कर रहा है. चीफ जस्टिस ने तभी कहा था कि संभावना इसी बात की है कोर्ट चुनाव आयोग के नोटा बटन देने के प्रस्ताव के खिलाफ ही फैसला देगा.

गुजरात कांग्रेस के नेता ने कहा था कि राज्यसभा चुनाव में यदि नोटा के प्रावधान को मंजूरी दी जाती है तो इससे ‘खरीद-फरोख्त और भ्रष्टाचार’ को बढ़ावा मिलेगा.

परमार की ओर से सीनियर लॉयर अभिषेक मनु सिंघवी और एडवोकेट देवदत्त कामत ने दलीलें दीं. सिंघवी ने भी यही कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का विकल्प बहाल होने के बाद हार-जीत के लिए हॉर्स ट्रेडिंग, भ्रष्टाचार और असंवैधानिक तरीके बढ़ जाएंगे.

वहीं चुनाव आयोग का पक्ष एडवोकेट अमित शर्मा रख रहे थे. उनकी दलील थी कि अगर किसी के पास राइट टू वोट है तो उसके पास राइट नॉट टू वोट भी है.

(एजेंसी से इनपुट)